ग्रह और रत्नों का मानव जीवन पर प्रभाव और उसकी महत्वता :-
आज संपूर्ण विश्व में रत्न और ज्योतिष के आपसी संबंध को सर्वसम्मति से स्वीकारा जा चुका है। वास्तव में रत्न और ज्योतिष आपस में गहराई से गुथे हुए हैं। प्रत्येक ग्रह का अपना एक रत्न विशेष होता है। जो उस ग्रह की शुभ दशा में उसकी शक्ति और जातक पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को बढ़ाता है ,और अशुभ दशा में उसकी शक्ति और जातक पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को कम करता है या फिर समाप्त करता है।
वैज्ञानिकों की राय है कि संसार के प्रत्येक जीव में परिवर्तन होता रहता है। बड़े-बड़े ग्रहों के प्रभाव प्रत्येक जीव ,पेड़ ,पौधे ,पत्थरों ,खनिज पदार्थों ,धातुओं और प्रत्येक वस्तु पर विभिन्न काल में विभिन्न रूपों में पडते रहता है। मनुष्य ,पशु और वनस्पतियों पर सबसे अधिक प्रभाव सूर्य डालता है। सूर्य के प्रभाव और उससे निकलने वाली विभिन्न रंगों की किरणों और विधुत की लहरें संसार की प्रत्येक वस्तु पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालती रहती है। इन लहरों और प्रभावों से संसार जीवित है।
चांद से निकलने वाली किरणों के प्रभाव से समुद्र में बड़े-बड़े ज्वार भाटा और तूफान तक उठने लग जाते हैं। हिंदू धर्म में पूर्णमासी के दिन का बहुत महत्व दिया गया है। चांद के घटने बढ़ने से मार्केट के भावों में मंदी और तेजी पर भारी प्रभाव पड़ता है।
आयुर्वेदिक पुस्तकों में लिखा है कि जड़ी,बूटियों को पूर्णमासी के समय ही दवाओं के लिए तोड़ा जाए। उस समय पेड़ों ,पौधों और बूटियों में अधिक गुण और रस पैदा हो जाता है। जिन पेड़ों और पौधों में दूधिया रस होता है ,चांद के प्रकाश के प्रभाव से उनके दूध रस और गुणों में वृद्धि हो जाती है। और सूर्य की किरणों में तेजी आ जाने पर वह दूधिया रस सूख जाता है।
चंद्रमा की किरणों के प्रभाव से मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों में उत्तेजना और जोश बढ़ जाता है। जंगल के पशुओं के मस्तिष्क में चंद्रमा की किरणों से उत्तेजना पैदा हो जाती है। और जंगली पशु ,पक्षी और कीड़े मकोड़े अधिक शोर मचाने लग जाते हैं। कई रोगी चंद्रमा के प्रकाश को देखते रहते हैं तो वह अंधे हो जाते हैं और दृष्टि से संबंध रखने वाली स्नायु चांद के प्रकाश से प्रभावित होकर निष्क्रिय हो जाती है।
संसार के विभिन्न ग्रह भूमि की प्रत्येक वस्तु पर विभिन्न रूपों में अच्छे बुरे प्रभाव डालते रहते हैं भूमि से निकलने वाले खनिज(मिनरल्स) ,पत्थर और रत्न ,सब इन ग्रहों के भ्रमण से प्रभावित होते रहते हैं। जो पत्थर ,रत्न या धातु जिस ग्रह नक्षत्र में परवरिश पाता है ,उसी ग्रह और राशि में पैदा होने वाले मनुष्य के पास यदि उसी ग्रह और नक्षत्र से संबंध रखने वाली धातु ,पत्थर या रत्न है तो वह व्यक्ति की कमजोरियों और ग्रह की बुरी दृष्टि से उसको बचाता है।
उदाहरण के रूप में यदि कोई मनुष्य अंधेरी रात में पैदा हुआ ,जब चांद या तो नहीं था या उसकी किरणें बहुत कमजोर थी। तो उस मनुष्य में चांद की किरणों की कमी से जो रोग या कमजोरियां पैदा हो गई है उन स्नायुविक कमजोरियों और रोगों को आप मोती जो समुद्र में चांद की किरणों के प्रभाव से सीप के अंदर उत्पन्न होता है और जिस में चंद्रमा की किरणों की शक्ति का भंडार है, धारण कर दूर कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति के रोग मोती धारण करने या मोतियों से बनी दवाइयां खिलाकर उसके जन्म के समय जो प्राकृतिक कमी रह गई है ,उसको दूर किया जा सकता है। ऐसे समय में पैदा होने वाले मनुष्य प्राय स्नायुविक दुर्बलता के रोगी होते हैं।
सूर्य की किरणों की अधिकता और दोपहर को पैदा होने वाला व्यक्ति जोशीला और क्रोधी हो सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का संबंध सूर्य मंडल के बड़े-बड़े ग्रहों ,जैसे सूर्य ,चंद्र ,गुरु, मंगल ,शुक्र ,शनि आदि से है। और प्रत्येक रत्न में किसी एक ग्रह की शक्तियां भरी हुई है। ग्रहों के घूमने पर भूमि में दबे होने पर भी ग्रहों की लहरों और प्रभाव जमीन में दबे रत्नों में प्रवेश करते रहते हैं।
नीलम का शनि ग्रह से घनिष्ठ संबंध है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि धारण करने वाले को नीलम सूट कर जाय ,तो थोड़े समय में ही उसकी कंगाली ,बुरे दिन, बेरोजगारी ,औरशत्रुओं का अंत हो जाता है। परंतु बिना सोचे समझे किसी ऐसे व्यक्ति को पहना दिया जाए ,जिसकी राशि उसके अनुकूल नहीं है। तो ऐसी दशा में उसको बहुत समय तक पहने रखने से उस व्यक्ति को हड्डियों की क्षय, स्नायु दुर्बलता ,यकृत के रोग ,संग्रहणी आदि रोग हो जाते हैं।
जिस व्यक्ति की राशि में सूर्य बहुत शक्तिशाली है। यदि वह माणिक धारण कर ले तो, सूर्य पहले ही शक्तिशाली होने के कारण उसके शरीर में पित्त जो पहले ही बहुत अधिक थी। माणिक जिससे गरम किरणें निकलती है ,के कारण गर्मी बढ़ कर उसको तीव्र ज्वर और पित्त संबंधित रोग हो जाएंगे। अंत किसी रत्न विशेषज्ञ से सलाह लिए बिना रत्न, उप रत्न अत्यधिक हानिकारक हो सकते हैं।