ज्योतिष में ग्रह – ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव

ज्योतिष में ग्रह, रत्न, रंग और ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव

इस पोस्ट में हम ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव के बारे में जानेंगे और यह जानकारी भी प्राप्त करेंगे की की किस प्रकार मानव जीवन पर ग्रहों,रंगो और रत्नों का प्रभाव रहता है।

जिस तरह प्रकाश का ग्रहों से संबंध है. ग्रहों का रत्नों से सीधा संबंध है। अंततः परोक्ष तथा प्रत्यक्ष रूप में रत्न और रंग का अटूट संबंध है। प्रत्येक रंग की रश्मियाँ एक विशिष्ट प्रकार के रंग में विकसित होती हैं। कहना चाहिए ! प्रत्येक रत्न में एक विभिन्न रंग का होता है। अथवा हर रत्न अपने में एक विशेष रंग समाहित रखता है।

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किरण चिकित्सा का अधिक स्तोत्र यह रत्न ही है। विज्ञान सम्मत तथ्य है कि इन रत्नों की रंगीन किरणें विभिन्न रोगों के संबंध में अपना चमत्कारिक प्रभाव दिखाती हैं। जब किसी ग्रह विशेष की किरणें मानव शरीर को उचित परिमाण से स्पर्श नहीं करती तब उनके अभाव में वह विभिन्न रोगों से परेशानियां आती है। रत्न धारण द्वारा उस रंग की किरणों की आपूर्ति हो जाती है। प्राचीन चिकित्साजन इसी सिद्धांत पर बड़े-बड़े असाध्य रोगों का उपचार कर देते थे।

सौरमंडल का प्रत्येक ग्रह एक विशिष्ट वर्ण का प्रकाश फैलाता है। उसकी किरणें उसी रंग में विस्तृत होकर समस्त ब्रह्मांड का स्पर्श करती है। सृष्टि का प्रत्येक प्राणी उन किरणों से प्रभावित होता है। जन्म के समय शिशु इन्ही किरणों से प्रभावित होता है और आजीवन वह व्यक्ति उसी प्रभाव से संचालित रहता है।

ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव
ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव

सौरमंडल में नौ ग्रह ,27 नक्षत्र ,12 राशियां है। जिनका प्रकाश ,रश्मियाँ पृथ्वी के प्रत्येक जीव,पशु ,मानव तथा वनस्पति को जीवनी शक्ति, क्रियाशीलता तथा चेतना प्रदान करती है। जिस प्रकार पौधों के लिए धूप ,हवा ,पानी ,खाद और प्रकाश आवश्यक है। ठीक उसी तरह प्राणी के लिए ग्रहों की किरणों का स्पर्श आवश्यक होता है। यह बात अलग है कि किस ग्रह की रश्मियाँ कब किसके साथ अनुकूल या प्रतिकूल हो जाती हैं। सभी ग्रहों की रश्मियाँ सर्वथा अनुकूल नहीं होती। किसी स्थिति और परिणाम विशेष में वह लाभप्रद रहती हैं ,और किसी में घातक हो जाती हैं।

कौन सा रत्न कैसा प्रभाव डालता है। यह जानने के लिए आवश्यक है कि हम प्रत्येक ग्रह का प्रभाव क्षेत्र जान ले। अर्थात यह मालूम करें कि मनुष्य के जीवन में कोई ग्रह उसके किन-किन कार्यों ,विचारों ,अंगो,रोगों आदि को प्रभावित करता है। प्रत्येक मनुष्य की शारीरिक संरचना ,मानसिक स्तिथि ,विवेक शक्ति ,भावना ,कल्पना कार्य, क्षमता ,रुचि ,प्रकृति ,व्यहवार ,व्यवहारिक जीवन के आयामों में भिन्नता होती है।

ग्रहों की प्रकृति और स्वभाव

सूर्य:-

लाल रंग का यह परम तेजस्वी ग्रह मानव के शिरोभाग, हृदय, पीठ ,नाड़ी संस्थान, अस्थि पंजर ,दाएं नेत्र और ज्ञान ,मानसिक ,शुद्धता, आत्म संयम,रुचि ,स्वास्थ्य आदि का पोषक है। यह व्यक्ति को पिता तथा भाई का सुख उपलब्ध कराता है। व्यवहारिक जीवन में यह मनुष्य की न्याय क्षेत्र ,यांत्रिकी, रत्न व्यवसाय ,औषधि निर्माण ,चित्रकला ,राजपाट ,राज्यसेवा ,धूतक्रीड़ा आदि का संरक्षक होता है।

सूर्य – स्वास्थ्य के लिए यह परम पोषक होने पर भी पित्तज होता है। इसकी प्रतिकूलता पित्त विकार ,पित्तज रोगों की उत्पत्ति करती है। वैसे पाचन संस्थान का पोषक होने के नाते यह ग्रह व्यक्ति की भूख प्रतिप्त करता है। इसकी प्रतिकूलता को शांत करने के लिए आचार्यों ने माणिक रत्न धारण करने का परामर्श दिया है। माणिक के अभाव में इसका उपरत्न लालडी भी धारण किया जा सकता है।लालडी को लाल या सूर्यमणि भी कहते हैं।

चंद्रमा:

सूर्य के प्रकाश से ज्योतित सफेद चांदनी छिड़कने वाला ग्रह चंद्रमा सर्वाधिक शोभन, शांति दायक और चर्चित ग्रह है। यह मानव के शरीर में मनसतत्व का नियंत्रक ,स्मरण शक्ति ,बुद्धि ,भावना ,रक्त, वामनेत्र, फेफड़ा ,छाती जैसे अंगों का नियंत्रक है।

व्यवहारिक जीवन में यह मनुष्य की कलात्मक अभिरुचि का क्षेत्र देखता है। ललित कला ,काव्य ,साहित्य सृजन ,गीत ,नाट्य ,औषधि तथा अन्न का व्यवसाय, लवण, जल ,सिंचन कार्य ,आयात निर्यात ,कांच का सामान ,संपदा ,मातृ पक्ष ,यश, मानसिक उद्वेग आदि क्षेत्रों का कारक होता है।

मानव जीवन के इन विषयों पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव रहता है। शुभ चंद्र की स्थिति इन विषयों में मनुष्य को सुख समृद्धि देती है। जबकि प्रतिकूल चंद्रमा दोष युक्त होने पर इन विषयों में व्यक्ति को हानि पीड़ा और संत्रास मिलता है।

मंगल:-

मनुष्य के शरीर में मंगल का प्रभाव बहुत प्रबल रूप में रहता है। जहाँ शारीरिक संरचना में यह गर्भ ,गर्भपात ,भ्रूण हत्या ,रक्त विकार, कर्ण रोग ,चर्म तथा पित्त दोष, शिरोभाग ,अंडकोष आदि को प्रभावित करता है। वही यह अनेक प्रवत्तियों को भी नियंत्रित करता है जैसे :-
वीरता ,धैर्य,उग्रता ,साहसिक कार्य ,युद्ध ,रक्तपात ,मारपीट ,संघर्षप्रियता आदि। व्यक्ति की साहसिक क्षेत्र में सफलता ,असफलता ,सेना तथा आरक्षी विभाग में रुचि, देशभक्ति ,ओज तेज और पराक्रम का निर्णायक मंगल ही होता है।

बुध:-

बुध एक सौम्य शांत ग्रह है। यद्यपि बुद्धि का स्वामी है।,पर अन्य क्षेत्रों पर भी इसका पर्याप्त प्रभाव रहता है। शरीर में वक्ष, वाणी ,मस्तिष्क ,शिरोभाग ,आंत्र संरचना ,वायु, तथा रक्त में दोष ,भौतिक पीड़ा ,शिरोभाग आदि बुध के द्वारा ही नियंत्रित होता है।

बुध की निर्बल स्थिति में मानव अनेक प्रकार के रोगों से आक्रांत हो जाता है। जैसे विस्मृति शिरो पीड़ा ,भ्रांति ,श्वास ,खांसी ,वाणी दोष ,मुख्य ,कुष्ठ, कंठ विकार ,श्वास रोग और दुषल्पनाएं आदि।

व्यवहारिक जीवन में बुध प्रभावित मनुष्य व्यवसाय ,बैंक ,बीमा ,शेयर ,व्यापार, सामूहिक व्यवसाय आदि में विशेष रुचि लेता है। चिंतन और प्रतिभा के क्षेत्र में बुध ही वह ग्रह है जो व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करता है। ज्योतिष, सामुद्रिक, क्रीड़ा ,मनोविज्ञान आदि विषयों के प्रति मानव में रुझान उत्पन्न करने का श्रेय बुध को ही प्राप्त है।

बृहस्पति:-

बृहस्पति को पौराणिक संदर्भ में देवताओं का गुरु कहा जाने वाला यह एक ऐसा प्रभावशाली और विशालकाय ग्रह है जो अपनी तेजस्विता के लिए प्रख्यात है। शारीरिक दृष्टि से यह मानव देह की दृढ़ता ,कंठ रोग, वात विकार ,गुप्त इंद्रिय के दोष का नियंत्रण करता है।
वैसे यह विद्वता ,तीर्थाटन , शुभ कार्य ,धर्म ,कर्म ,कृषि और संपत्ति का भी नियामक है।

प्रमुख रूप से बृहस्पति का प्रभाव मानव के इन क्षेत्रों की ओर प्रेरित करता है :-

लेखन ,प्रकाशन ,साहित्य सर्जन ,अध्यात्म ,तंत्र मंत्र ,वेद शास्त्र ,राजनीति ,प्रशासन, न्याय विभाग ,सदाचार ,विवेक ,सादगी ,तथा सौम्य व्यवहार।

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शुक्र:-

शुक्र श्रृंगार ,सज्जा और कलात्मकता का पोषक ग्रह है। सुंदरता ,विलास और ज्ञान का प्रतीक है। इसका प्रभाव व्यक्ति में काम शक्ति। कान के रोग, गुप्तइंद्रिय ,वीर्य ,नेत्र ,रक्त की स्थिति का नियंत्रण करता है।

शुक्र प्रभावित व्यक्ति बड़े चंचल ,उदार, ओजस्वी, निश्चल , विलासी और इंद्रिय सुख के दास होते हैं। साथ ही उनमें रूप ,सौंदर्य ,प्रतिष्ठा और नृत्य संगीत के प्रति प्रबल अनुराग भी रहता है।

प्रणय ,पशुधन ,पुरातत्व ,लेखन सामग्री ,विलासिता की वस्तुएं ,प्रसाधन सामग्री, परिवार ,वाहन सुख ,भौतिक समृद्धि ,अभिनय , मादकतानुराग, स्पर्धा, चिकित्सा विज्ञान ,तंत्र मंत्र ,गुप्त विध्या बोध , भाषण शक्ति, लेखन, काव्य सृजन स्वच्छता, व्यवस्था ,श्रृंगार प्रेम ,और भावुकता ,आदि के क्षेत्र में शुक्र ग्रह प्रबल कारक होता है।

शनि:-

शनि की गणना सर्वाधिक क्रूर ग्रह के रूप में होती है। तथापि इसके प्रभाव का एक आयाम शुभ भी है। जहां यह शरीर में वात संस्थान ,पुरुषत्व ,स्नायु मंडल और गृह प्रदेश को प्रभावित करता है, वही इसके द्वारा प्रेरित मानव नीच प्रवृत्तियों से ग्रस्त होता है। आपराधिक कृत्य चोरी ,डकैती ,ठगी ,विष प्रयोग ,दुष्ट संगति ,पारिवारिक कलह ,दांपत्य कटुता ,वैर विरोध की उत्पत्ति में शनि का अस्तित्व प्रधान रहता है।
शनि की अशुभ स्थिति में मनुष्य कुविचारी ,नीच कर्म कर्ता और पतित हो जाता है।

यदि शनि अनुकूल हो तो व्यक्ति को काले रंग से सम्बंधित व्यवसाय ,लोहा व्यवसाय ,प्रस्तर व्यवसाय, यांत्रिकी, तैलीय पदार्थ ,चर्म उद्योग ,आदि में सहायक भी सिद्ध होता है।
बौद्धिक रूप से संपन्न व्यक्ति शनि की अनुकूलता पाकर सिद्ध संत ,सन्यासी ,वकील, दार्शनिक और योगी भी हो जाते हैं।

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राहु:-

यह पाप ग्रह व्यक्ति में अनिंद्रा, बकवास, परछिंद्रान्वेषण की भावना उत्पन्न करता है। मादक पदार्थ ,कौतुक , इंद्रजाल ,भूत प्रेतों से संपर्क ,प्रचार कार्य ,घपला ,चमत्कार, राजनीति ,प्रशासन ,आकस्मिक कार्य ,आत्म प्रशंसा ,प्रभुत्व ,मध्यस्था आदि के संबंध में व्यक्ति का जीवन राहु से सर्वाधिक प्रभावित होता है।

केतु:-

यह भी पाप ग्रह है और लगभग राहु जैसा ही इसका भी प्रभाव है। किसी व्यक्ति के जीवन में उसके ,व्यवहार ,और रोगों आदि का निर्णय केतु की स्थिति के अनुसार ही किया जाता है।

सामान्यत केतु का अध्ययन करके हम किसी मनुष्य के संबंध में इन विषयों की जानकारी सरलता से कर सकते हैं – जैसे शारीरिक गठन ,दुर्बलता, चर्म रोग, व्यभिचार प्रवती ,अपराध ,समृद्ध व्यवसाय, तरक्की ,साहसिक कृत्य ,समुद्र यात्रा, अनैतिक विचार आदि।

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