रत्नों का रहस्यमय संसार|रत्नों का संसार

रत्नों का संसार

रत्नों का संसार विस्तृत है तो है ही ,प्राचीन भी है। प्राचीन काल से ही भारत में रत्नों का विविध रूपों में प्रयोग होता आया है। यह भी नहीं कि रत्नों के गुण धर्म की पहचान भी आधुनिक हो। हमारे मनीषियों को सभी पत्थरों के गुणों का पूर्णरूपेण ज्ञान था। आज तो हम मात्र उनके बताए गुणों के आधार पर रत्नों का प्रयोग भर करते है करते हैं।

चाहे वह प्राचीन काल रहा हो या वर्तमान मनुष्य का आकर्षण सुंदर रत्नों एवं मूल्यवान पत्थरों के प्रति रहा है। जमाने की प्रगति के साथ-साथ उनको तराशने व सवांरने की कला भी उन्नति करती रही है। शताब्दियों पूर्व क्रिश्चयन युग के आरंभ में विभिन्न प्रकार के क्वार्ट्ज़ तथा अन्य कठोर पत्थर तराशे व पॉलिश किए जाते थे। इनसे मूर्तियों का निर्माण किया जाता था। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार का कलात्मक कार्य और सजावटी सामान भी बनाया जाता था।

पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के खनिजों में से एक बड़ी मात्रा अपनी दुर्लभता, कठोरता, पायदारी ,सुंदर रंगो और विशिष्ट चिन्हों की वजह से स्वयं को अति मूल्यवान बना देती है।

शताब्दियों पूर्व और आज के वैज्ञानिक युग में भी रत्नों और मूल्यवान पत्थरों के बीच भिन्नता रही है अर्थात दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं। प्राकृतिक तौर पर शब्द “रत्न” प्रत्येक पत्थर के लिए प्रयोग किया जा सकता है। चाहे वह मूल्यवान हो या साधारण पत्थर या वह कैमियोज या इंटाग्लिओ के लिए प्रयोग किया जाता था ,और जिनसे सरकारी या निजी गुप्त दस्तावेजों व पत्रों आदि पर मोहर आदि लगाने का कार्य लिया जाता था, भी रत्न कहला सकते हैं।

मूल्यवान पत्थर शब्द जो कि आज बहुप्रचलित है केवल उन खनिजों के लिए प्रयोग किया जाता है जो कि अत्यंत दुर्लभ ,अति सुंदर ,पायदार, आकर्षक रंगों वाले और प्राय त्रुटिहीन होते हैं। उनका मूल्य भी अत्यधिक होता है तथा उनका उपयोग केवल आभूषणों के लिए किया जाता है। साधारणत इनमें हीरा, माणिक्य, नीलम व पन्ना आदि रत्न सम्मिलित है। जिनको पहलदार तराश कर मूल्यवान धातुओं में जड़ा जाता है। मूंगा ,मोती व अंबर आदि की गणना भी मूल्यवान पत्थरों में ही की जाती है। जबकि यह कोई खनिज पत्थर नहीं है।

साधारणत मनुष्य सदैव उन खनिजों में रुचि लेता रहा है जो कि प्राकृतिक तौर पर बहुतायत से उपलब्ध है ,क्योंकि उनकी कमी नहीं होती। वह सरलता पूर्वक तराशें जा सकते हैं और सुंदरता में भी कोई बहुत अधिक कम नहीं होते। ऐसे रत्न अल्पमोली कहलाते हैं। नए-नए खनिज स्तोत्रों के मिलते रहने से उनका मूल्य चढ़ता उतरता रहता है।
रत्न शब्द का प्रयोग पहले की अपेक्षा अब अधिक गहरे अर्थों में किया जाने लगा है। कोई भी खनिजों की सुंदर, टिकाऊ और दुर्लभ हो तथा जो तराशने व पॉलिश करने के पश्चात आभूषण के रूप में प्रयोग किया जा सके ,वह रत्न कहलाता है। खनिजों के बहुत से प्रकार रत्न कहलाते हैं।

रंग रत्नों का मुख्य गुण है। करीब-करीब सभी मूल्यवान रत्न रंगीन होते हैं ,तथा नेत्रों को आकर्षित करते हैं। रंग ही एक ऐसा गुण है जो नदी में बहते हुए पत्थरों को भी एक दूसरे से अलग करता है और जिनके द्वारा एक कुशल रत्न तराश यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमुक पत्थर तराशने में पॉलिश करने के पश्चात नेत्रों को आकर्षित करने लगेगा।

रत्नों के बाद दूसरा गुण उनका त्रुटिहीन होना है। उनमें दरारे ,बिंदु ,चीर, गड्ढे आभाहीनता तथा अन्य दोष आदि ना हो ,अर्थात वह सुष्मदर्शी से भी नजर ना आते हो। इस उद्देश्य के लिए 10-15 पावर का सूक्ष्मदर्शी लेंस प्रयोग किया जाता है। रत्नों की कीमत इसी गुण पर ज्यादा निर्भर करती है। हीरा, माणिक,पन्ना व नीलम इसी गुण के कारण अधिक मूल्य प्राप्त करते हैं।
टिकाऊपन रत्नों का तीसरा आवश्यक गुण है। इसके अतिरिक्त दुर्लभता सदैव रत्नों का महत्व बढ़ाती रहती है।

तीन अति लोकप्रिय रत्न पत्थर कार्नेलियन ,लारजवर्त और फिरोजा हैं जो की बहुतायत से 5000 वर्ष से भी अधिक समय से प्रयोग होते आ रहे हैं और यह दुर्लभ भी नहीं है। फिर भी अत्यधिक पसंद किए जाते हैं। कार्नेलियन तो बहुत ही आम है जबकि लाजवर्त और फिरोजा भी इतने दुर्लभ रत्न नहीं है। इन रत्नों की लोकप्रियता केवल एक ही कारण से है वह है इनका फैशनेबल होना।

फैशन ही एक ऐसा गुण है जो किसी भी रत्न की लोकप्रियता और महत्व एवं मूल्य को बढ़ा देता है। केवल हीरा ही इस बात से अलग रहा है। कई 100 वर्षों से हीरा बतौर रत्न लोकप्रिय रहा है। फैशन बदलते रहे ,विभिन्न रत्नों के महत्त्व में उतार-चढ़ाव आता रहा ,परंतु इसकी लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आई है। जबकि यह 2000 सालों से भी पूर्व से बतौर रत्न प्रयोग होता आया है। यह रत्न हमेशा से ही रत्नों में एक विशिष्ट स्थान रखता आया है।

इसी प्रकार प्राचीन समय से ही माणिक्य भी रत्न के बतौर प्रयोग किया जाता रहा है। फिर भी 60 वर्ष पूर्व इसकी मांग में भारी कमी आ गई थी। क्योंकि तब नकली मणिको की बाजार में भरमार हो गई थी। जिसके कारण इसका फैशन नहीं रहा था। इसके पश्चात फैशन ने फिर नई करवट ली और माणिक फिर एक लोकप्रिय रत्न बन गया।

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