ब्लू सफायर(नीलम )
नीलम को शनि ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना गया है। इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। नीलमणि ,इंद्रनील ,नीलम तथा अंग्रेजी में इसे ब्लू सफायर कहते हैं। यह मुख्यतः नीले रंग का होता है। किंतु इसके अतिरिक्त यह हल्के आसमानी तथा मोर पंख के समान रंग वाला भी होता है। इंद्रनील नीलम सदैव मोर के पंख के समान गहरे रंग का होता है। इंद्रनील को बैंकॉक का नीलम भी कहते हैं। सिलोनी नीलम हल्के नीले या हल्के आसमानी रंग का पारदर्शी रत्न होता है।
ब्लू सफायर(नीलम ) का जन्म
ब्लू सफायर एलुमिनियम तथा ऑक्सीजन का यौगिक होता है। इसमें अल्प मात्रा में कोबाल्ट मिला रहने से इसका रंग नीला होता है। नीलम विभिन्न प्रकार की शिलाओं में पाए जाते हैं। श्रीलंका में यह नाइस शीला में तामड़े (गार्नेट)के साथ मिलते हैं। भारत में नीलम कश्मीर घाटी में पाया जाता है। विदेशों में नीलम बर्मा ,श्रीलंका, बैंकॉक ,थाईलैंड ,रोडेशिया तथा आस्ट्रेलिया आदि देशों में पाया जाता है।
ब्लू सफायर(नीलम ) की विशेषता एव धारण करने से लाभ
नीलम के विषय में कहा जाता है कि यह अपने शुभ या अशुभ प्रभाव को कुछ ही घंटों में प्रकट करने वाला रत्न होता है। यदि शनिवार के दिन मध्यान में इसे दूध में गंगा जल से स्नान कराकर विधिवत मंत्रों सहित धारण किया जाए ,तो यह शनि की साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव दूर करता है।
यदि नीलम अनुकूल पड़े तो धन-धान्य ,सुख ,संपत्ति ,यश, मान सम्मान ,आयु ,बुद्धि, बल तथा वंश की वृद्धि करता है। मुख कांति तथा नेत्रों की ज्योति को बढ़ाता है।
नीलम धारण करने पर यदि निम्नलिखित प्रभाव प्रकट हो तो इसे उतार देना चाहिए:-
यदि रात्रि में बुरे यहां भयानक स्वप्न दिखाई दें ,यदि चेहरे की आकृति में अंतर आ जाए अथवा नेत्र रोग हो जाए ,यदि कोई आकस्मिक ,दुर्घटना, चोरी ,हानि ,रोग या अन्य अनिष्ट कर प्रभाव दिखाई दे।
ब्लू सफायर(नीलम ) की पहचान
असली ब्लू सफायर की पहचान निम्नलिखित है:-
ब्लू सफायर को धूप में रखने से उसमें से नीले रंग की किरणें सी निकलती हुई प्रतीत होती हैं।
कांच के गिलास में पानी भरकर उसमें ब्लू सफायरडाल दिया जाए तो पानी में नीले रंग की किरणें सी निकलती हुई प्रतीत होती हैं।
ब्लू सफायर बहुत साफ नहीं मिलता इसमें थोड़ा बहुत रेशा होता ही है।
यह चिकना, स्वच्छ ,चमकदार अच्छे पानी का तथा पारदर्शी रत्न होता है।
ब्लू सफायर(नीलम ) धारण विधि
नीलम की अंगूठी सोने या चांदी या लोहे में बनवाकर शनिवार के दिन कच्चे दूध और गंगाजल से स्नान कराकर निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण के साथ मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।
मन्त्र:- “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
जो व्यक्ति नीलम धारण करने में असमर्थ हो उन्हें कटैला ,लाजवर्त , काला स्टार या काला हकीक धारण करना चाहिए। इन रत्नों के धारण करने से भी शनि की साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव कम होता है। इन्हें भी नीलम की भांति ही धारण किया जाता है।