हीरा कब व कैसे धारण करें |हीरे की विशेषता एव धारण करने से लाभ

हीरा

हीरा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना गया है। इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। हीरा ,हीरक ,वज्र, मणिवर तथा अंग्रेजी में इसे डायमंड कहते हैं। यह रत्नराज भी कहा जाता है ,क्योंकि अन्य रत्नों की अपेक्षा यह बहुत कीमती तथा दुर्लभ रत्न होता है। हीरा सबसे अधिक कठोर रत्न होता है। इसके इसी गुण के कारण कांच काटने में इसका उपयोग किया जाता है।

हीरे का जन्म

प्राय हीरा कोयले की खानों में जन्म लेता है। अपनी भौतिक संरचना के अनुसार हीरा विशुद्ध रवेदार कोयला ही है। इसमें किसी दूसरे तत्व की मिलावट नहीं है। इसे जलाने पर भी यह सारा का सारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनकर उड़ जाता है। इसके अतिरिक्त यह नदी आदि के प्रवाह तथा इधर-उधर भूमि से प्राप्त होता है।

भारत में हीरा बुंदेलखंड के पन्ना नामक नगर। मध्य प्रदेश। तमिलनाडु। उड़ीसा तथा गुजरात प्रदेशों में प्राप्त होता है। विदेशों में हीरा ब्राजील। दक्षिण अफ्रीका। बेल्जियम तथा रोडेशिया आदि देशों में प्राप्त होता है।

हीरे की विशेषता एव धारण करने से लाभ

हीरे की प्रमुख विशेषता है कि यह सर्वाधिक कठोर रत्न होता है। इसकी इसी विशेषता के कारण इसे वज्र भी कहा जाता है। हीरा धारण करने से शुक्र ग्रह जनहित समस्त दोष शांत हो जाते हैं। धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। औषधि के रूप में इसकी भस्म धातु दौर्बल्य आदि रोगों में प्रयोग की जाती है।

हीरा किसे धारण करना चाहिए

हीरा शुक्र का रत्न है। शुक्र जिस कुंडली में शुभ ग्रहों का स्वामी हो उसके जातक को हीरा धारण करना शुभ फलदायक होगा।

लग्न के अनुसार हीरा रत्न धारण।

1.मेष लग्न के लिए शुक्र द्वितीय और सप्तम का स्वामी होने के कारण प्रबल मारकेश है। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल और शुक्र में परस्पर मित्रता नहीं है। तब भी कुंडली में यदि शुक्र स्वग्रही हो या अपनी उच्च राशि में हो या शुभ स्थिति में हो तो शुक्र की महादशा में हीरा धारण करने से धन प्राप्ति ,दांपत्य सुख ,विवाह सुख ,वाहन सुख हो सकता है। परंतु साथ ही साथ मारक प्रभाव भी हो सकता है।

2.वृषभ लग्न के लिए शुक्र लग्नेश है। अंतत इस लग्न के जातक स्वास्थ्य लाभ ,आयु, बुद्धि, तथा जीवन में उन्नति प्राप्त करने के लिए सदा ही हीरा धारण कर सकते हैं। शुक्र की महादशा में यह विशेष रूप से शुभ फलदायक है।

3.मिथुन लग्न के लिए शुक्र द्वादश और पंचम का स्वामी होता है। पंचम त्रिकोण में उसकी मूल त्रिकोण राशि पड़ती है। अंततः इस राशि के लिए शुक्र शुभ माना गया है। इसके अतिरिक्त शुक्र और लग्नेश बुध में परस्पर मित्रता है। इस कारण से शुक्र की महादशा में हीरा धारण करने से संतान सुख ,बुद्धि ,बल, यश ,मान सम्मान ,तथा भाग्यउन्नति प्राप्त होती है। यदि हीरा पन्ना के साथ धारण किया जाए तो और भी शुभ फलदायक बन जाएगा।

4.कर्क लग्न के लिए शुक्र चतुर्थ और एकादश का स्वामी है। ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार शुक्र इस लग्न के लिए शुभ ग्रह नहीं माना जाता। इसके अतिरिक्त लग्नेश चंद्रमा और शुक्र में परस्पर मित्रता नहीं है। फिर भी चतुर्थ और एकादश कुंडली के शुभ भाव होते हैं। अंततः शुक्र की महादशा में हीरा धारण किया जाए तो वह अत्यंत शुभ फलदायक होगा।

5.सिंह लग्न के लिए शुक्र तृतीय और एकादश का स्वामी होने के कारण शुभ ग्रह नहीं माना जाता। परंतु यदि एकादश का स्वामी होकर कुंडली में लग्न ,द्वितीय ,चतुर्थ, पंचम ,नवम ,दशम या एकादश में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में हीरा धारण करने से धन प्राप्ति तथा मान सम्मान में वृद्धि होगी।

6.कन्या लग्न के लिए शुक्र द्वितीय और नवम का स्वामी होने से अत्यंत शुभ और योगकारक ग्रह माना जाता है। अंततः हीरा धारण करने से इस लग्न के जातक को हर प्रकार की उन्नति प्राप्त होगी। शुक्र की महादशा में हीरा धारण करना विशेष रूप से शुभ फलदायक होगा। हीरा यदि पन्ने के साथ धारण किया जाए तो और भी उत्तम फल प्राप्त होगा।

7.तुला लग्न के लिए शुक्र लग्न का स्वामी है। अंततः इस लग्न के जातक इसको निसंकोच सदा रक्षा कवच की तरह धारण कर सकते हैं। इसके धारण करने से स्वास्थ्य लाभ ,आयु में वृद्धि ,यश ,मान ,प्रतिष्ठा तथा धन की प्राप्ति होती है। शुक्र की महादशा में तो हीरा अवश्य धारण करना चाहिए।

8.वृश्चिक लग्न के लिए व्य्य भाव तथा सप्तम भाव का स्वामी होता है। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल और शुक्र परस्पर मित्रता नहीं है। अंततः इस लग्न के जातक को हीरा धारण नहीं करना चाहिए।

9.धनु लग्न के लिए शुक्र छठे और एकादश का स्वामी होने के कारण शुभ ग्रह नहीं माना गया है। इसके अतिरिक्त शुक्र लग्नेश बृहस्पति का शत्रु है। तब भी यदि एकादश का स्वामी होकर कुंडली में शुक्र द्वितीय ,चतुर्थ ,पंचम ,नवम, एकादश या लग्न में स्थित हो तो शुक्र की महादशा में हीरा धारण करने से आर्थिक लाभ और भाग्यउन्नति होगी।

10.मकर लग्न तथा कुंभ लग्न के लिए क्रमशः पंचम तथा दशम और चतुर्थ और नवम का स्वामी होने के कारण शुक्र अत्यंत शुभ और योग कारक ग्रह माना गया है। इन दोनों के लिए जातक को हीरा धारण करने से हर प्रकार से उन्नति प्राप्त होगी। शुक्र की महादशा में तो इनको हीरा अवश्य धारण करना चाहिए। हीरा यदि नीलम के साथ धारण किया जाए तो और भी उत्तम फलदायक होगा।

11.मीन लग्न के लिए शुक्र तृतीय और अष्टम का स्वामी होने के कारण अत्यंत आशुभ ग्रह माना गया है इस लग्न के जातक को हीरा कभी धारण नहीं करना चाहिए।

हीरे की पहचान

असली हीरे की पहचान निम्नलिखित है:-

असली हीरे पर किसी वस्तु से खरोचिया रगड़ का निशान नहीं पड़ता। इसकी चमक स्थाई होती है तथा स्पर्श करने पर यह ठंडा प्रतीत होता है।

असली हीरे को धूप में रखने से उसमें से चारों और इंद्रधनुषी किरणे सी निकलती हुई प्रतीत होती है।

सर्वाधिक कठोर होते हुए भी हीरा भंगुर होता है ,तथा हाथ से गिरने पर टूट जाता है।

हीरा विद्युत का कुचालक होता है। इसके इसी गुण के कारण हीरे की अंगूठी पहने हुए व्यक्ति को विद्युत का झटका नहीं लगता।

हीरे को अधिक गर्म करने पर उसका रंग कुछ हल्का हो जाता है। किंतु ठंडा होने पर उसका रंग पुन पूर्ववत्त हो जाता है।

हीरा धारण विधि

हीरे की अंगूठी सोने या चांदी में बनवाकर शुक्रवार के दिन अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। धारण करने से पूर्व इसे कच्चे दूध और गंगाजल से स्नान कराकर निम्नलिखित मंत्र के उच्चारण के साथ धारण करना चाहिए

मन्त्र:- ओम ग्राम ग्रीम ग्रूम शुक्राय नमः

हीरे को अंगूठी में इस प्रकार जड़वाना चाहिए कि उसका निचला हिस्सा खुला रहे, जिससे सूर्य की किरणें शरीर में प्रवेश कर सकें।

अत्यधिक महंगा होने के कारण जो व्यक्ति हीरा नहीं पहन सकते वह उसके स्थान पर सफेद पुखराज भी धारण कर सकते हैं। किंतु जो व्यक्ति सफेद पुखराज भी धारण नहीं कर सकते, वे उसके उपरत्न जरकन ,स्फटिक या सफेद हकीक भी धारण कर सकते हैं। इन उपरत्नों को भी हीरे की भांति ही धारण किया जाता है। इनके धारण करने से भी शुक्र जनित दोष शांत होते हैं।

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