मेष लग्न के अनुसार रत्न धारण।
मेष लग्न में लाल मूंगा।
इस लग्न में मंगल लग्नेश होता हैं। मेष लग्न में ,मंगल लग्नेश और अष्टमेश होते हैं। यद्यपि इसमें मंगल के अष्टमेश दोष में कमी आती है। अंततः लग्नेश के रूप में मंगल का रत्न मूंगा धारण करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य ,मान सम्मान ,यश आदि में वृद्धि होती है। यह उसकी आयु ,विद्या ,और धन की वृद्धि के लिए भी अनुकूल रहता है। तथापि मूंगा धारण करने से पहले जन्म कुंडली में इसकी स्थिति का ठीक से अवलोकन करना जरूरी रहता है। अन्यथा मूंगा दोनों तरह के प्रभाव प्रदान करता है। एक तरफ यह व्यक्ति को मान ,सम्मान ,पद ,प्रतिष्ठा और धन आदि प्रदान करता है। तो दूसरी तरफ यह प्रतिकूल स्थिति के कारण रोग ,पारिवारिक कलह ,अथवा पति-पत्नी के मध्य मतभेद का कारण भी बन जाता है।
मेष लग्न में मोती।
मेष लग्न में चंद्रमा चतुर्थेश ,सूर्य पंचमेश ,और बृहस्पति नवमेश एव द्वादश बन जाते हैं। अंततः इस लग्न के जातकों के लिए उपयुक्त दशा काल में चंद्रमा के लिए मोती ,सूर्य के लिए माणिक और बृहस्पति के लिए पीला पुखराज धारण करना भी अनुकूल रहता है। मोती धारण करने से छाती से संबंधित रोगों का शमन होता है। व्यक्ति के मन को शांति और बल मिलता है। यह माता के स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी रहता है। पिता की आयु में भी वृद्धि कारक रहता है। यह धन में वृद्धि के साथ-साथ जातक को लोकप्रियता भी प्रदान करता है।
मेष लग्न में माणिक्य।
इन जातकों के लिए लाल माणिक्य धारण करना भी उपयोगी रहता है। माणिक धारण से व्यक्ति की विश्लेषणात्मक क्षमता में वृद्धि होती है। यह पेट रोगों का शमन कर आत्मबल बढ़ाता है। यह राज्य कृपा का पात्र बना देता है। पुत्र की प्राप्ति और पुत्रों की सुख शांति वृद्धि के लिए भी यह उपयोगी साबित होता है। यह व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि कारक बनता है। अर्थात मेष लग्न के जातकों के लिए मोती और माणिक्य धारण करना जमीन ,जायदाद और संतान सुख के साथ-साथ विद्या प्राप्ति के लिए भी अनुकूल रहता है।
लेकिन यह भी देखना जरुरी है की इन जातकों की जन्म कुंडली में चंद्र और सूर्य राहु शनि अधिष्ठत राशि के स्वामी नहीं होने चाहिए और ना ही चंद्रमा छठे ,आठवें और बारहवें भाव में राहु के साथ स्थित स्थित होना चाहिए। अन्यथा इनके लिए मोति या माणिक्य धारण करना अनुकूल नहीं होगा। ऐसे व्यक्ति को मोती और माणिक्य आदि पर्याप्त सावधानी पूर्वक परीक्षण के बाद ही धारण करने चाहिए।
अगर मेष लग्न के जातक मूल्यवान माणिक धारण नहीं कर सकते ,तो वह माणिक की जगह लाडली ,लाल रंग का एमिथिस्ट या सूर्यकांत मणि या लाल रंग का अगेट भी धारण कर सकते हैं।
मोती की जगह चंद्रकांत मणि ,मूंगा की जगह संगमूंगी ,एमिथिस्ट की जगह लाल जैस्पर भी धारण कर सकते हैं।
मेष लग्न में पीला पुखराज।
मेष लग्न वालों के लिए बृहस्पति नवम और द्वादश भाव के स्वामी रहते हैं। पर बृहस्पति मुख्यत नवम भाव का फल ही प्रदान करते हैं। अंततः बलवान बनकर बृहस्पति जातक को राज्य कृपा , सरकारी नौकरी में सफल बनाते हैं। ऐसे व्यक्ति सरकारी नौकरी या राजनीति में उच्च सफलताओं के लिए उपयुक्त समय पर पर्याप्त सावधानी पूर्वक बृहस्पति का रत्न पीला पुखराज भी धारण कर सकते हैं। यद्यपि कई बार बृहस्पति द्वादश भाव का फल प्रदान करते हुए व्यक्ति के ऊपर अनावश्यक खर्च का बोझ भी डाल देता है या अनावश्यक कार्यों में संलग्न कर देते हैं।
मेष लग्न वालों के लिए पीला पुखराज धारण करने से पिता का सहयोग ,पैतृक संपत्ति के साथ आयु वृद्धि होती है। यह जातक के लिए भाग्यकारक आर्थिक स्तोत्र खोलने वाला और विघ्न बाधाओं को दूर करने वाला भी सिद्ध होता है। यह जातक की छोटी बहन के लिए भी स्वास्थ्य कारक सिद्ध होता है या अविवाहित बहन के शीघ्र विवाह में सहायक बनता है।
यद्यपि मेष लग्न वालों के लिए नीलम ,हीरा ,पन्ना या गोमेद(hessonite) धारण करना उपयुक्त नहीं होता। मेष लग्न में शनि दशमेश और एकादश बन जाते हैं ,और वह मुख्यतः आय भाव का फल ही प्रदान करते हैं। अगर ऐसा शनि ,शुभ भाव में स्थित हो और उसे रत्न पहना कर बली बना लिया जाए ,तो निश्चित ही वह अपनी दशा अंतर्दशा अथवा गोचर के अनुसार कई तरह के लाभ प्रदान करता है। शनि के बली होने से बड़ी बहन की आयु एवं स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। माता का स्वास्थ्य भी सुधरता है। इससे स्वयं जातक के स्वास्थ्य में भी सुधार आता है। फिर भी शनि रत्न धारण करने से बचना चाहिए। नीलम धारण करने से पहले उसका परीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए।