
वृष लग्न के जातकों के लिए शुभ रत्न
वृष लग्न का स्वामी शुक्र है। वृष लग्न में आकर शुक्र लग्नेश एव षष्ठेश बन जाते हैं। लेकिन लग्नेश बनने से इसे षष्ठेश का दोष नहीं लगता। इस लग्न में बुध धनेश(द्वितीय भाव) एवं पंचमेश(पंचम) बनते हैं और शनि नवमेश एव कर्मेश(दशम भाव) बन जाने के कारण योगकारक रहते हैं। इसलिए वृष लग्न के जातक इन ग्रहों का रत्न धारण करके लाभ उठा सकते हैं। यह रत्न शुभ दशा काल में जातक के लिए उपयुक्त सिद्ध होता है।
वृषभ लग्न में हीरा।
वृष लग्न में लग्नेश के रूप में शुक्र रत्न हीरा धारण करना जातक के स्वास्थ्य ,आयु एवं मान सम्मान की दृष्टि से अनुकूल होता है। यह भोग के साथ साधन उपलब्ध कराता है ,तथा साथ ही स्त्री के स्वास्थ्य में भी सुधार करता है। यह आय के साधन निर्मित कर ऋण के बोझ को कम करता है। यह शत्रु बाधाएं भी मिटाता है। हीरा गले, आंख आदि की बीमारियों को दूर करने में भी मदद करता है। फिर भी शुक्र रत्न हीरा धारण करने से पहले जन्म कुंडली में इसकी स्थिति का ठीक से अवलोकन करना जरूरी रहता है। अन्यथा हीरा दोनों तरह के प्रभाव प्रदान करने लगता है। एक तरफ यह व्यक्ति को मान सम्मान ,पद प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति में सहायक बनता है, तो दूसरी तरफ यह प्रतिकूल स्थितियां निर्मित करके जातक को रोगी ,अति कामाचारी ,व्यर्थ खर्च करने वाला , स्त्रियों के पीछे भागने वाला,शराब ,सट्टे, एव लॉटरी पर अनावश्यक खर्च करने वाला भी बना देता है। यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद का कारण भी बन सकता है।
हीरा एक रत्ती का धारण किया जाए तो भी लाभ प्रदान करता है। यद्यपि जो लोग हीरा धारण नहीं कर सकते वह हीरे की जगह उसका उपरत्न भी धारण कर सकते हैं। हीरा के उपरत्न के रूप में सफेद पुखराज ,सफेद स्फटिक ,या अगेट भी धारण कर सकते हैं। यह उपरत्न कम से कम 5 रत्ती या उससे अधिक वजन के रहने चाहिए, तभी इन से लाभ मिलता है। सफेद पुखराज भी पांच रत्ती का पर्याप्त रहता है।
वृष लग्न में पन्ना।
वृष लग्न में बुध द्वितीयेश और पंचमेश बनकर यदि बलवान बन जाए ,तो वह विद्या प्राप्ति में सहायक बनते हैं। अंततः बुध रत्न पन्ना धारण करने से जातक का वाणी दोष दूर होता है। यह विद्या ,बुद्धि और धन में वृद्धि करता है। यह व्यक्ति की विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ा देता है। ऐसे व्यक्ति तर्क वितर्क एवं परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करता है। यह पुत्र के भाग्य में भी वृद्धि कारक सिद्ध होता है। जातक को अकस्मात धन की प्राप्ति कराता है। पन्ना के उपरत्न के रूप में यह लोग एक्वामरीन ,हरे रंग का फिरोजा ,या पेरिडॉट अथवा हरा एगेट भी धारण कर सकते है।
वृष लग्न में मोती।
वृष लग्न वालों के लिए चंद्रमा तृतीयेश बनकर शुभ भाव में हो तो मोती धारण करने से छोटे भाई बहन के स्वास्थ्य भाग्य में वृद्धि होती है। यह स्वय जातक के स्वास्थ्य में भी वृद्धि करता है। माता के स्वास्थ्य में भी इससे सुधार आता है। अगर जातक श्वास संबंधी रोगों से परेशान हो ,तो उसके लिए मोती धारण करना निश्चित ही उपयोगी सिद्ध होता है।
वृष लग्न में माणिक्य।
इस लग्न के लिए सूर्य सुख भाव(चतुर्थ भाव) के रूप में बलवान होता है, तथा अगर सूर्य रत्न माणिक धारण कर लिया जाए ,तो उससे घर ,जमीन ,वाहन आदि के सुख में वृद्धि होती है। यह जातक के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है। यह जातक को पब्लिक में लोकप्रिय बना देता है। जातक को राज्य की ओर से मान-सम्मान ,यश की प्राप्ति कराता है।
वृषभ लग्न में मूंगा।
वृष लग्न वालों के लिए मंगल सप्तमेश और द्वादश के रूप में रहता है। यद्यपि मंगल की यह दोनों ही स्थितियां मांगलिक दोष का सृजन करती हैं, फिर भी मंगल सप्तम भाव का ही फल प्रदान करता है। अतः बलवान मंगल अर्थात मंगल रत्न मूंगा धारण करने पर वह अनुकूल दशा में व्यापार में वृद्धि ,राज्य से मान सम्मान देता है। यह बिगड़े कामों को भी सुधारना है। यह उच्च अधिकारियों से संबंध बेहतर करता है। पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार और जातक को बवासीर एव अन्य गुप्त रोगों से मुक्ति प्रदान करता है।
वृष लग्न में पीला पुखराज।
वृष लग्न वालों के लिए बृहस्पति अष्टमेश(अष्ठम भाव) और लाभेश(एकादश भाव) के रूप में अगर शुभ भावस्त हो जाए ,तो निश्चित ही वह सरकारी नौकरी में प्रमोशन ,भाग्य में वृद्धि ,धनवृद्धि ,बड़े भाई के भाग्य और स्वास्थ्य में सुधार का आधार बन सकते हैं। अंततः बृहस्पति का रत्न पुखराज इनके लिए अनुकूल फल देता है। यह पुत्र वधू और पुत्री के पति के स्वास्थ्य ,आर्थिक स्थिति में भी सुधार का कारण बनता है। व्यक्ति बृहस्पति के प्रभाव से धार्मिक कार्यों में गहरी रूचि लेने लगता है।
वृष लग्न में नीलम।
वृष लग्न में शनि राजयोग कारक बनकर स्थित रहते हैं। ऐसा शुभस्थ शनि का रत्न धारण करने पर अपनी दशा अंतर्दशा एवं गोचर के दौरान जातक के लिए मान सम्मान ,आर्थिक स्थिति एवं स्वास्थ्य सुधारक बनता है। यह व्यक्ति के लिए भाग्य कारक सिद्ध होता है। अंततः इनके लिए शनि रत्न नीलम धारण करना पर्याप्त अनुकूल होता है। नीलम से पिता ,छोटे भाई की स्त्री ,साली आदी के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यह जातक की टांगों को भी प्रबल बनाता है। अगर जातक स्नायु संबंधित रोगों से पीड़ित चल रहा है ,तो उसे शनि दशा के अनुसार नीलम अवश्य धारण करना चाहिए। यद्यपि नीलम की जगह यह लोग उस का उपरत्न – नीला जिरकॉन ,एमीथिस्ट ,लेपिस लजूली ,नीला स्पाइनल भी धारण कर सकते हैं।
इन जातकों के लिए हीरा ,पन्ना ,अथवा नीलम धारण करने से पहले यह अवश्य देख लेना चाहिए कि बुध और शनि ,सूर्य अथवा राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी तो नहीं है। अन्यथा ऐसी स्थिति में उनका रत्न धारण करना निरर्थक ही सिद्ध होता है या उनके प्रतिकूल फल भी मिल सकते हैं। यद्यपि ऐसी स्थिति में इन्हें रत्न धारण से पहले इन ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान अवश्य करना चाहिए ,साथ ही संबंधित देव मंत्रों का जप एवं पूजा पाठ करने के बाद ही रत्न धारण करने चाहिए। इससे ग्रहों के अशुभ फलों की कुछ हद तक शांति हो जाती है। वृष लग्न वालों को मोती ,मूंगा और पुखराज धारण करने में भी पर्याप्त सावधानी रखनी चाहिए।