कर्क लग्न के रत्न।
कर्क लग्न में मोती धारण।
इस लग्न का स्वामी चंद्रमा है। अंततः चंद्र के बलान्विंत होने से धन ,यश ,आयु, स्वास्थ्य आदि सभी की वृद्धि होती है। कर्क लग्न वाले जातक चंद्र रत्न मोती चांदी की अंगूठी में जड़वा कर धारण कर सकते हैं। कर्क लग्न के जातक चंद्रमा के रत्न मोती की जगह चंद्र का उपरत्न चंद्रकांत मणि अथवा सफेद पुखराज भी धारण कर सकते हैं।
इस लग्न में चंद्रमा लग्नेश होने से स्वास्थ्य ,मान सम्मान और जीविका से संबंधित लाभ प्रदान करते हैं। इससे मस्तिष्क की क्षमता ,बौद्धिक क्षमता में भी वृद्धि होती है। मन में शांति का बोध होता है। मोती धारण करने से रक्त संबंधी रोगों का निवारण हो जाता है। जातक के मन में परोपकार की वृत्ति जागृत होती है। इससे स्त्री संबंधी अनेक रोग जैसे योनि ,गर्भाशय संबंधी पुराने रोग भी सहज शांत हो जाते हैं। पिता के धन में वृद्धि होती है और पुत्र का भाग्य चमकता है।
कर्क लग्न में लाल मूंगा धारण।
मंगल इस जन्म कुंडली के लिए योग कारक बन जाते हैं। इसलिए कर्क लग्न वाले मूंगा रत्न भी धारण करके बहुत से लाभ ले सकते हैं। क्योंकि कर्क लग्न की जन्म कुंडली में मंगल पंचमेश और दशमेश रहते हैं। यह केंद्र और त्रिकोण के स्वामी होने से सब प्रकार का लाभ प्रदान करने में सक्षम है। बलवान मंगल धन ,मान-सम्मान, पदवी ,प्रतिष्ठा आदि सब प्रदान करते हैं। यह बौद्धिक क्षमता देते हैं। पिता के धन और भाग्य में वृद्धि कारक बनते हैं। पति अथवा पत्नी के बड़े भाई के लाभ में वृद्धि होती है। पुत्र का भाग्य जागृत होता है।
कर्क लग्न में माणिक्य धारण।
सूर्य कर्क लग्न की जन्म कुंडली में द्वितीयेश रहते हैं। यह कर्क लग्न के मित्र भी हैं। इसलिए माणिक्य रत्न धारण करने से धन संबंधी लाभ मिलते हैं। बलवान सूर्य आंख के रोगों का शमन करता है। इससे धन में वृद्धि के साथ अधिकार की प्राप्ति होती है। यह विद्या ,बुद्धि के अतिरिक्त वाणी दोष का शमन करता है। यह मामा की आयु और स्वास्थ्य में भी सुधार लाता है।
कर्क लग्न में पन्ना धारण।
कर्क लग्न की जन्म कुंडली में बुध तृतीय एव द्वादश भाव के स्वामी बन जाते हैं। एक तरफ यह धन की प्राप्ति कराते हैं ,तो वहीं पीड़ित एवं निर्बल होने पर कई प्रकार के संताप भी देते हैं। इसलिए इस लग्न में पन्ना धारण करने का निषेध माना गया है। फिर भी दशा काल में बुध अकेला है और शनि ,राहु से प्रभावित भी है ,तो पन्ना द्वारा इसे बलान्विन्त करके छोटी बहनों की आयु एवं स्वास्थ्य को लाभ दिया जा सकता है। मित्रों से भी सहायता मिलती है। बाहु एव सांस नली से संबंधित रोगों का शमन होता है।
कर्क लग्न में पीला पुखराज धारण।
कर्क लग्न में बृहस्पति भाग्येश बनने से शुभ होते है। किंतु छठे भाव के होने से अशुभ बन जाते हैं। इसलिए बृहस्पति रत्न पुखराज धारण करने से पहले पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए तथा बाँह पर बांध कर देख लेना चाहिए की पुखराज का प्रभाव किस तरह का है। अगर पुखराज पहनने से ठीक महसूस हो तभी उसे धारण करना चाहिए, अन्यथा प्रतिकूल फल भी मिलते हैं। कर्क लग्न में स्वस्थ और बलवान बृहस्पति धन में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य में सुधार करता है। इससे राज्य कृपा भी प्राप्त होती है। यह छोटे भाई बहनों के भाग्य में भी वृद्धि करता है। माता के सुख में भी वृद्धि होती है।
कर्क लग्न में हीरा धारण।
शुक्र कर्क लग्न की जन्म कुंडली में चतुर्थ और एकादश के रूप में रहते हैं। अंततः शुक्र के बलान्विंत होने पर आमदनी बढ़ती है और सुख की वृद्धि होती है। शुक्र का रत्न हीरा धारण करने से मन में उल्लास बढ़ता है। लोगों से प्रेम मिलता है। वाहन आदि की प्राप्ति भी संभव है। यह बड़ी बहन के सुख में वृद्धि करता है। स्त्री के स्वास्थ्य में सुधार एवं मान सम्मान में बढ़ोतरी देता है। माता पिता की आयु और स्वास्थ्य में सुधार आता है।
कर्क लग्न में नीलम धारण।
कर्क लग्न में शनि सप्तमेश और अष्टमेश बनकर रहते हैं। यदि जन्म कुंडली में शनि पीड़ित हो और आयु के काम होने का प्रश्न बन जाए ,तो शनि रत्न से उसे बलवान किया जाना लाभप्रद रहता है। परंतु धन के क्षेत्र में शनि के अधिक बलवान होने पर लाभ की जगह हानि की आशंका रहती है। यद्यपि बलवान शनि ,शनि रत्न धारण से स्त्री के स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार होता है