मिथुन लग्न का रत्न-Mithun Lagna, Gemini Ascendant

मिथुन लग्न के रत्न।

मिथुन लग्न का रत्न
मिथुन लग्न का रत्न

मिथुन लग्न में पन्ना।

इस लग्न का स्वामी बुध है। बुध मिथुन लग्न में लग्नेश के साथ चतुर्थेश भी रहते हैं। लग्नेश होने से यह शरीर और स्वास्थ्य के साथ मान सम्मान का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब कि सुखेष के रूप में यह पारिवारिक सुख ,घर ,मकान ,जमीन ,जायदाद ,वाहन माता आदि के कारक बनते हैं। इसलिए मिथुन लग्न वालों को पन्ना धारण से शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ के साथ मान सम्मान और मातृ सुख ,वाहन सुख की प्राप्ति भी होती है।

बुध रत्न पन्ना धारण करने से बुध बलवान बनते हैं और बलि बुध से मस्तिष्क के रोगों को नियंत्रित करने में बहुत सहायता मिलती है। इससे मानसिक शांति बनी रहती है। धन और सुख सामग्री बढ़ती है। विद्या ,बुद्धि में उन्नति होती है। पिता के स्वास्थ्य आयु में वृद्धि होती है। जो लोग पन्ना नहीं पहन सकते हैं वह लोग पन्ना की जगह उसका उपरत्न पेरिडॉट ,हरा फिरोजा या हरा अगेट धारण कर सकते हैं।

मिथुन लग्न में मोती।

इस लग्न में चंद्र द्वितीयेश बन जाते हैं। अंतत चंद्र रत्न मोती धारण करने से चंद्रमा बली बनकर जातक के धन में वृद्धि करते हैं। आंखों के रोगों से निजात दिलाते हैं। इसे धारण करने से मन में शांति की प्राप्ति होती है और विद्या में वृद्धि के अतिरिक्त वाणी दोष का निवारण होता है। मौसी की आयु और स्वास्थ्य में सुधार आता है।

मिथुन लग्न में माणिक्य।

मिथुन लग्न में सूर्य तृतीय भावेश बन जाते हैं। अंततः सूर्य रत्न माणिक धारण करने से सूर्य बल में वृद्धि होती है तथा उसके फलस्वरूप जातक के भाई उन्नति पाते हैं। छोटे भाई के स्वास्थ्य एवं आयु में वृद्धि होती है। इससे जातक के मान सम्मान में वृद्धि के साथ-साथ राज्य कृपा की प्राप्ति हो सकती है।

मिथुन लग्न में हीरा।

मिथुन लग्न में शुक्र पंचमेश बनने से शुभ रहते हैं। लेकिन द्वादश बन जाने से यह अशुभ फल भी प्रदान करते हैं। यद्यपि शुक्र मुख्यता पंचमेश का ही फल प्रदान करते हैं। फिर भी शुक्र का रत्न हीरा धारण करने से पहले जन्म कुंडली में इसकी स्थिति का ठीक से अवलोकन करना जरूरी रहता है। अन्यथा हीरा दोनों तरह के फल प्रदान करने लगता है। एक तरफ यह व्यक्ति को मान सम्मान ,विद्या ,बुद्धि ,धन आदि प्रदान करता है ,तो दूसरी तरफ यह प्रतिकूल स्थिति के कारण अनावश्यक व्यय, स्त्रियों के ऊपर धन का व्यय, गुप्त रोग, पति पत्नी के बीच अनबन अथवा पारिवारिक कलह का कारण बन जाता है। इसलिए शुक्र का रत्न धारण से पहले उसे अपनी बांह पर 10,12 दिन बांध कर देख लेना चाहिए कि उसका कैसा प्रभाव मिल रहा है। इस लग्न में बलवान शुक्र भोग विलासता के साधन निर्मित करता है , यह जातक को रति सुख की प्राप्ति कराता है ,यह धन एवं भाग्य में वृद्धि कारक भी बनता है ,पुत्र के स्वास्थ्य आयु में वृद्धि करता है। यह बड़ी साली एव बड़े भाई की स्त्री की आयु में भी वृद्धि कारक बनता है।

मिथुन लग्न में पीला पुखराज।

बृहस्पति इस लग्न में सप्तम और दशम भाव के स्वामी बन जाते हैं। अंततः बलवान बृहस्पति निश्चित ही जातक को राजसत्ता की प्राप्ति में सहायक बनते हैं। अंततः यह लोग पीला पुखराज धारण कर सकते हैं। यह शुभ कार्यों में जातक की प्रवृत्ति को बढ़ाता है। पिता के धन में वृद्धि करता है।पीला पुखराज रोग शांति में सहायक एवं व्यापार में वृद्धि कारक बनता है। स्त्री जन्म कुंडली में शुभस्थ बृहस्पति पति से प्रेम सम्बन्ध मधुर और मजबूत बना देता है और पति की उन्नति का कारण बनता है।

मिथुन लग्न में नीलम ।

मिथुन लग्न में शनि अष्ठम भाव ,के साथ नवमेश होते हैं। अंततः भाग्य वृद्धि के लिए पर्याप्त सावधानी के साथ शनि रत्न नीलम धारण किया जा सकता है इससे जातक के भाग्य में वृद्धि होती है आयु में वृद्धि होती है राज्य कृपा की प्राप्ति भी हो सकती है यह पिता की आयु स्वास्थ्य और धन में वृद्धि कारक के साथ छोटे भाई बहन की स्त्री छोटी साली के स्वास्थ्य एवं आयु में भी वृद्धि करता है बली शनि से धर्म कार्य में रुचि बढ़ती है यद्यपि इस लग्न में शनि अष्टमेश भी रहते हैं अंततः शनि रत्न धारण से पहले उसे बाह में बांधकर देख लेना चाहिए मिथुन लग्न के जातक को मूंगा माणिक के अपनी मर्जी से धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा उनके लिए लाभ की जगह प्रतिकूल फल भी मिल सकते हैं।

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