रत्नों द्वारा चिकित्सकीय लाभ एव स्वास्थ्य के लिए रत्न का उल्लेख भी ग्रंथो में मिलता है।
नवग्रहों के रत्नों का हमारे जीवन पर कई प्रकार से प्रभाव और महत्व है, पौराणिक ग्रंथो में इन्हीं रत्नों की विशेषताओं के उल्लेख मिलते है, जिन्हें हमारे ऋषि मुनियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व ही जान लिया था, और अश्चार्यजनक रूप से जैसा उन्होंने लिखा, उसी प्रकार रत्नों का लाभ आज भी प्राप्त किया सकता है। स्वास्थ्य के लिए रत्न एव रत्नों द्वारा चिकित्सकीय लाभ का उल्लेख भी ग्रंथो में मिलता है।
सभी धर्मिक ग्रंथो में नवरत्नों, मोती, माणिक्य, हीरा, पन्ना, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनियां के लाभ का उल्लेख मिल जायेगा।
रत्नों के मनुष्य जीवन पर कई प्रकार से लाभ और प्रभाव रहते है, इन्हीं लाभों में से एक लाभ रत्नों द्वारा चिकित्सकीय लाभ का उल्लेख भी ग्रंथो में मिल जायेगा, आज हम इसी लाभ के बारे में चर्चा करेंगे।
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सूर्य ग्रह का रत्न माणिक्य —
अगर आपकी जन्म पत्रिका में सूर्य निर्बल है, तो आपको निम्नलिखित रोग हो सकते है :-
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार, अगर जन्म पत्रिका में सूर्य का दोष है, तो ह्रदय रोग, सिर दर्द, अस्थि विकार, चर्म रोग, चक्कर आना, नेत्र रोग, ज्वर प्रकोप, मानसिक कमजोरी, कार्य में मन ना लगना, साहस की कमी, भूख ना लगना, चेहरा पीला पड़ना, स्नायु रोग, रक्तः सम्बंधित रोग, high-low blood pressure, शरीर बर्फ की तरह ठंडा होना, जैसी बीमारियों से जूझना पड़ सकता है।
जिन व्यक्तियों को इस प्रकार की बीमारियों से परेशानी है, उन व्यक्तियों को सूर्य को मजबूत करने के लिए कंधारी अनार के समान लाल रंग का माणिक्य धारण करना चाहिए।
माणिक्य धारण करने से उन व्यक्तियों को इन बीमारियों में लाभ प्राप्त होगा।
मंगल ग्रह का रत्न लाल मूंगा –
जब किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में मंगल कमजोर या बुरी अवस्था में है, तो उसे निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
रक्त संबंधित बीमारियां, फोड़े-फुंसी, दाद-खुजली, भगंदर, बवासीर, चेचक, खसरा, हाई ब्लड प्रेशर, खून की कमी, वीर्य की कमी, मूत्राशय में जलन, मूत्र कम आना, मानसिक कमजोरी, नसों की कमजोरी, बुढ़ापा जैसी कमजोरी, ज्वर का ना उतरना, भूख ना लगना, शरीर सूख जाना, बहुत अधिक चिड़चिड़ापन, गुस्से में रहना, क्रोध पर काबू ना रहना, व्यर्थ का लड़ना झगड़ना, अमाशय में अंतड़ियो के रोग, कुष्ठ रोग, जोड़ों में दर्द रहना, इस तरह के रोग होने की संभावना बनती है।
अगर किसी व्यक्ति को ऐसे ही किन्ही रोगों की समस्या है, तो उन्हें लाल रंग का मूंगा धारण करना चाहिए। लाल मूंगा धारण करने से इन रोगों में राहत मिलेगी और मंगल के बुरे प्रभाव खत्म होंगे।
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चन्द्र ग्रह का रत्न सफ़ेद मोती –
जब किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में चंद्र कमजोर या बुरे प्रभावों में है, तो उसे निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
बार-बार मूत्र का आना, मस्तिष्क की कमजोरी, पागलपन के दौरे पड़ना, बहुत अधिक आवेश में आकर दूसरों पर प्रहार करना, बार-बार घर से निकल जाना, नींद ना आना, बुद्धि का काम ना करना, मंदबुद्धि, स्नायु दुर्बलता, दिल का कमजोर हो जाना, दिल का जोर जोर से धड़कना, आंखों से धुंधला दिखना, दृष्टि की कमजोरी
शारीरिक और मानसिक दुर्बलता, बार बार बुखार आना, अतिसार, मूत्र रोग, सांस लेने में कठिनाई, कई तरह से खांसी होना, हाई ब्लड प्रेशर, हथेलियों और पांव के तलवों में जलन होना, शराब अधिक पीना, बुरी संगत में पड़ जाना, रक्त की कमी, हड्डियों और मांस में रक्त की कमी होना,
इसके अलावा बेचैन रहना, बेचैनी होना, हिम्मत और साहस की कमी होना और मानसिक रोग रूप से बहुत कमजोर होना, अगर किसी व्यक्ति को इस तरह की परेशानियां होती हैं,
तो ऐसे में उन्हें सफेद मोती धारण करने से लाभ मिल सकता है, गले में सफेद मोतियों की माला भी धारण कर सकते हैं।
ऐसा करने से निर्बल और पीड़ित चन्द्र को मजबूती प्रदान होगी, और इन परेशनियों से राहत मिलेगी।
बुध ग्रह का रत्न पन्ना –
अगर किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में बुध ग्रह कमजोर या बुरे प्रभावों में है, तो उसे निम्नलिखित रोग होने की संभावना रहती हैं –
पेट से संबंधित रोग होना विशेषकर पेट के निचले हिस्से के रोग, बवासीर, भगन्दर, गुदा रोग, बदहजमी-अपच ,पेट में असहनीय दर्द, रक्तातिसार, आमातिसार, बोलने में तुतलाना, बहुत कमजोर होते हुए वजन का गिरते जाना, मर्दानगी की कमजोरी, बुद्धि का कमजोर होना, पेट में अम्लता की अधिकता, हड्डियों के रोग, जिगर के रोग, उदास , गुर्दे संबंधित रोग, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, ना भरने, वाले पुराने घाव, श्लैष्मिक ज्वर, गरमी, आतशक, पुराना ज्वर, दमा,
अगर किसी व्यक्ति को इस प्रकार के रोगों की परेशानियां है, तो ऐसे रोगियों को हरे रंग का पन्ना धारण करने से काफी लाभ प्राप्त हो सकता है।
ग्रंथो में इस प्रकार के रोग होने पर बुध का रत्न पन्ना धारण करना बहुत लाभकारी बताया गया है।
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ब्रहस्पति ग्रह का रत्न पीला पुखराज –
अगर आपकी जन्म पत्रिका में ब्रहस्पति निर्बल और पीड़ित है, तो आपको निम्नलिखित रोग होने की प्रबल सम्भावना बनती है :-
पुरे शरीर के जोड़ों का दर्द, लक़वा, निर्बलता, शरीर में सूजन हुआ, गले के रोग, जिगर के रोग, मोटापा, पेट के रोग, रसोलियां, पेशी-स्फुरण के साथ बेहोशी और ऐंठन, संक्रमण से उत्पन्न रोग विषैले रोग, मन मचलना, शरीर में पानी भर जाना और उससे उत्पन्न रोग, सर्दी-जुकाम, शरीर में पानी पड़ जाना, मूत्र का अधिक होना, कोढ़ रोग, अर्श रोग,
आवाज बैठ जाना, प्लेग, मिरगी, वातोंमाद, पेट में मरोड़ संबंधी रोग, नसों की कमजोरी, खांसी, पेट में गोला हो जाना,
ब्रहस्पति शरीर में मोटापे और चर्बी का संचालन करता है, शारीरिक ग्रंथियों का संचालन करता है, इसलिए अगर जन्मपत्रिका में ब्रहस्पति कमजोर और दूषित होगा, तो ऐसे रोग जनित होने की प्रबल संभावना बनती है।
इसके अलावा कमजोर और पीड़ित ब्रहस्पति व्यक्ति को धोखेबाज, बकवास करने वाला, बड़ी बड़ी ढींगे हांकने वाला, बार बार कोर्ट कचहरी करने वाला बनाता है।
इसलिए, इन परेशनियों को दूर करने के लिए ग्रंथो में ब्रहस्पति का रत्न पीला पुखराज धारण करने का जिक्र किया गया है, ऐसा करने से उपरोक्त परेशनियों से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है।
शुक्र ग्रह का रत्न सफ़ेद हीरा –
जब किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में शुक्र कमजोर या बुरे प्रभावों में है, तो उसे निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
सुजाक रोग होना, वीर्य स्खलन और शीघ्रपतन, गुप्त रोगों से ग्रसित होना, स्त्री में जनन-अक्षमता, मर्दानगी की कमी होना, वीर्य के रोगों से ग्रसित होना, मूत्र निकलने में परेशानी, स्त्रियों में गर्भाशय के रोग हो जाना , बहुत अधिक मधपान करने लगना, शरीर में पानी भर जाना, समय से पहले ही उम्रदराज दिखने लग जाना,
स्त्रियो में श्वेत प्रदर रोग, अत्यधिक शारीरिक कमजोरी-पतलापन, निरंतर वजन कम होते जाना, शरीर में बलगम और कफ बढ़ने से रोग होना, शरीर से गाढ़े तरल का स्राव जैसे मूत्र के साथ वीर्य का भी निकल जाना, जुखाम रहना और निरंतर तरल प्रदार्थ बहते रहना, फेफड़ों से गाढ़ा कफ निकलना, पेचिश, आंव, संग्रहणी, रक्तातिसार, आमातिसार, गाढ़ी पीप आना, वायु, पित्त-विकार, बलगम दोष से उत्पन्न होने वाले जटिल रोग, नसों की दुर्बलता और नसों संबंधित जटिल रोग हो जाना – जैसे लक़वा, निर्बलता, स्पंदन, थरथराहट ,उंगलियों या पावों में चीटियां रेंगते हुए लगना, और पावों का सुन पड़ना , ठंडा पड़ जाना, सफेद दाग होना, शरीर में रक्त की कमी होना , गुदा रोग होना, फेफड़ों की सूजन, छाती के रोग, जटिल खांसी, दम घुटने के रोग होना, फेफड़े के रोग, और बुढ़ापे के रोग जवानी में ही हो जाना।
शुक्र ग्रह का रत्न सफ़ेद हीरा –
जब किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में शुक्र कमजोर या बुरे प्रभावों में है, तो उसे निम्नलिखित रोग हो सकते हैं –
सुजाक रोग होना, वीर्य स्खलन और शीघ्रपतन, गुप्त रोगों से ग्रसित होना, स्त्री में जनन-अक्षमता, मर्दानगी की कमी होना, वीर्य के रोगों से ग्रसित होना, मूत्र निकलने में परेशानी, स्त्रियों में गर्भाशय के रोग हो जाना , बहुत अधिक मधपान करने लगना, शरीर में पानी भर जाना, समय से पहले ही उम्रदराज दिखने लग जाना,
स्त्रियो में श्वेत प्रदर रोग, अत्यधिक शारीरिक कमजोरी-पतलापन, निरंतर वजन कम होते जाना, शरीर में बलगम और कफ बढ़ने से रोग होना, शरीर से गाढ़े तरल का स्राव जैसे मूत्र के साथ वीर्य का भी निकल जाना, जुखाम रहना और निरंतर तरल प्रदार्थ बहते रहना, फेफड़ों से गाढ़ा कफ निकलना, पेचिश, आंव, संग्रहणी, रक्तातिसार, आमातिसार, गाढ़ी पीप आना, वायु, पित्त-विकार, बलगम दोष से उत्पन्न होने वाले जटिल रोग, नसों की दुर्बलता और नसों संबंधित जटिल रोग हो जाना – जैसे लक़वा, निर्बलता, स्पंदन, थरथराहट ,उंगलियों या पावों में चीटियां रेंगते हुए लगना, और पावों का सुन पड़ना , ठंडा पड़ जाना, सफेद दाग होना, शरीर में रक्त की कमी होना , गुदा रोग होना, फेफड़ों की सूजन, छाती के रोग, जटिल खांसी, दम घुटने के रोग होना, फेफड़े के रोग, और बुढ़ापे के रोग जवानी में ही हो जाना।
इस प्रकार के रोगियों को शुक्र का रत्न हीरा धारण करने से इन बीमारियों में लाभ मिलता है।
शनि ग्रह का रत्न नीलम –
जब किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में शनि कमजोर या बुरे प्रभावों में है, तो उसे निम्नलिखित रोग होने की संभावना रहती हैं –
लोहे, कोयलें, टायर, तेल, कबाड़ी, ट्रक, आदि के व्यापार में भारी नुकसान होना, व्यापार में नुकसान होना, व्यापार का ना चलना, व्यापार में आर्थिक परेशनियां, स्थाई नौकरी न मिलना या नौकरी ही न मिल पाना, दरिद्रता, माता पिता भाई पुत्र से भी शत्रुता रहना और उनसे अलगाव हो जाना, दुखी जीवन जीने पर मजबूर होना, व्यापर ना चलना और व्यापारिक आर्थिक समस्याओं के चलते दूसरे शहर में बसना, बार बार मुकदमेबाजी के योग बनना, यहाँ तक की जेल यात्रा के भी योग बन जाना,
दरिद्र जीवन जीने पर मजबूर होना, कपड़े फटे और पुराने हो जाना और उन्हें ही पहनने पर मजबूर होना, नसों की बीमारियां हो जाना, सर और हाथ पावों में कंपन होना, गरीबी की वजय से रक्तः की कमी के रोग, दुबलापन हो जाना, जोड़ों का काम ना करना, और तेज दर्द और सूजन होना, मानसिक रोग और पागलपन छाना, मूर्खतापूर्ण व्यावहार करना।
शनि ग्रह के इन्हीं बुरे प्रभावों और कष्टों को दूर करने के लिए शनि का रत्न नीलम धारण करना चाहिए। शनि का रत्न नीलम एक ढाल की तरह रक्षा करता है और व्यक्ति के जीवन के बुरे और अशुभ प्रभावों को प्रभावहीन बना देता है। मन और दिल दिमाग में शांति प्रदान करता है।
राहु का रत्न गोमेद –
राहु के हानिकारक होने पर मनुष्य को निम्नलिखित रोग हो सकते हैं
घोर दरिद्रता, साहस की कमी, बार बार आत्महत्या के विचार आना, बार बार नजर लग्न, बहुत जल्दी प्रेत छाया से ग्रसित होना, पेट के रोग और कीड़े पड़ना, जोड़ों का जकड़ जाना, उनमें असहनीय दर्द होना, अतिसार, गर्भाशय रोग, खसरा, चर्म रोग होना,
जन्म पत्रिका में राहु हानिकारक होने पर गोमेद रत्न को धारण करना चाहिए, गोमेद धारण करने से राहु की शांति होगी,और निम्न रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी।
केतु का रत्न लहसुनियाँ –
केतु के हानिकारक होने पर मनुष्य को निम्नलिखित रोग हो सकते हैं
कई प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न होना, बार बार फोड़े फुंसी होते रहना, औरतों में गर्भाशय के रोग जनित होना, पेट में गैस होना और उस गैस की वजय से हृदय पर दबाव पड़ना और सर में गैस चढ़ जाना, दिल का तेजी से धड़कना, अपच, अजीर्ण, बदहजमी रहना, जिसकी वजय से दौरे तक पड़ जाना, व्यक्ति का चरित्र गन्दा हो जाना, और शारीरिक कमजोरी की वजय से कई प्रकार के रोगों ग्रसित हो जाना।
केतु का रत्न लहसुनियां धारण इन सभी रोगों काफी लाभ प्राप्त होता है।
तो दोस्तों! आपने इस पोस्ट के माध्यम से जाना की कैसे ग्रहों के रत्न रोगों में लाभकारी सिद्ध हो सकते है, उम्मीद है आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी।
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