वामवर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख
भारत में शंख के बारे में लगभग सभी जानते है, भारत में पूर्वकालीन समय से ही शंख का इस्तेमाल धार्मिक, आध्यात्मिक और पूजा पाठ में होता चला आ रहा है, हिन्दू धर्म में हर धार्मिक कार्यो में शंख की बहुत महत्वता है। इनमें वामवर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख का पूजा के लिए विशेष महत्व है।
हिन्दू धर्म में, शंख अपने गुणों और प्रभावशालिता की वजय से अत्यंत शुद्ध और पूजनीय वास्तु है। किसी भी पूजा में शंख का होना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
शंखनाद का महत्व क्या है?
देवी देवताओं के समय से ही शंख के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के बारे में जानने को मिलता है। शंख को विष्णु का प्रिय माना जाता है, भगवान विष्णु के हाथ में ये सदा रहता है, और माता लक्ष्मी का तो ये सहोदर है।
इसलिए प्राचीन समय से लेकर आज तक कोई भी पूजा हो या मांगलिक कार्य, कोई भी शुभ कार्य हो, शंख का शंखनाद होना अति आवश्यक होता है। शंख से वातावरण शुद्ध हो जाता है, और नकारात्मक उर्जाये चली जाती है।
शंख की ध्वनि से वातावरण में पवित्रता आ जाती है, और आध्यात्मिकता का संचार हो जाता है।
इसीलिए शंख को बहुत शुभ माना जाता है, और शंख का होना और शंखनाद मंगलकारी माना जाता है।
Read Also : रत्नों सम्बंधित जानकारियां
शंख २ प्रकार के होते है :-
- वामवर्ती शंख
- दक्षिणावर्ती शंख
वामवर्ती शंख
वामवर्ती शंख – यह शंख काफी तादाद में और आसानी से मिल जाते है। वामवर्ती शंख वह शंख होते है जिनके पेट का मुख बायी तरफ रहता है, वामवर्ती शंख अनेक प्रकार के मिलते है।
वामवर्ती शंख वह शंख होता है, जो पूजा में शंखनाद के काम आता है, क्योंकि वामवर्ती शंख मुख्य रूप से केवल बजाने के काम आता है, और किसी भी पूजा और मांगलिक कार्यो में शंख द्वारा शंखनाद की ध्वनि बहुत शुभ मानी जाती है, शंख की ध्वनि से देवी देवता भी प्रस्सन हो जाते है, जितनी भी नाजारात्मक उर्जाये है, वह ख़त्म हो जाती है, किसी भी तरह की बुरी आत्माएं वह स्थान छोड़ कर चली जाती है, यही कारण है की वामवर्ती शंख की इतनी महत्वता है।
वामवर्ती शंखो में द्वारिका से मिलने वाले शंख को सबसे उत्तम श्रेणी का माना जाता है।
दक्षिणावर्ती शंख
दक्षिणावर्ती शंख – जिस तरह से वामवर्ती शंख आसानी से प्राप्त हो जाते है, इसके विपरीत दक्षिणावर्ती शंख आसानी से नहीं मिलते, यह बहुत अलप मात्रा में दिखाई देते है,
दक्षिणावर्ती शंख के पेट का मुख दाहिने ओर रहता है, दक्षिणावर्ती शंख को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे की दहिनावर्ती शंख, विष्णु शंख, जमना शंख, और लक्ष्मी शंख के नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी, जब मंथन में कई वस्तुओं की प्राप्ति हुई थी, इनमें दक्षिणावर्ती शंख भी था,
जैसे ही यह शंख समुद्र मंथन से प्रकट हुआ, श्रीहरि विष्णु ने दक्षिणावर्ती शंख को अपने दाहिने हाथ में धारण कर लिए, और भगवन विष्णु के दाहिने हाथ में यह शंख सदा रहता है, और माता लक्ष्मी का भी यह प्रिये बना।
Read also: Gemstones and zodiac signs
घर मे कौन सा शंख रखना चाहिए?
विष्णु लक्ष्मी के प्रिय दक्षिणावर्ती शंख का पूजा में विशेष महत्त्व है, इस शंख को पूजा स्थल पर रखना और इसकी पूजा करना बहुत शुभ और लाभकारी माना जाता है,
दक्षिणावर्ती शंख छोटा हो या बड़ा, इसका इसके आकर से कोई फर्क नहीं पड़ता, इसका होने मात्र से ही बहुत महत्व है, पूजा के प्रभाव पूर्ण मिलते है।
दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान को जल चढ़ाया जाता है, इसमें भरा साधारण जल भी पवित्र हो जाता है,
सूर्य देव को भी दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर चढ़ना बहुत शुभ और लाभकारी माना जाता है।
घर के पूजा स्थान में दक्षिणावर्ती शंख का होना बहुत धनदायक और समृद्धिकारक माना जाता है, उन घरों में हमेशा बरकत रहती है और कभी भी धन की कमी नहीं होती, घर में दक्षिणावर्ती शंख का होना और उसकी पूजा होने का मतलब है स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का वास होना।
दक्षिणावर्ती शंख की पूजन विधि
सोमवार के दिन सूर्योदय के बाद स्नान करने पूजा स्थल पर दक्षिणावर्ती शंख को पहले कच्चे दूध से स्नान कराए, फिर उसके बाद गंगा जल से स्नान कराए, साफ स्वच्छ कपडे से पोछ ले,
Read also: ब्लॉगिंग में अपना करियर कैसे बनाये
शंख कैसे रखा जाता है?
अब पूजा स्थल पर एक छोटा बाजोट (लकड़ी की चौंकी) या बाजार से लिए गए आसान पर लाल कपडा बिछा ले, और शंख को विराजमान कर ले, शंख की पूछ का हिस्सा भगवान की तरफ होना चाहिए, और शंख का खुला पेट का हिस्सा ऊपर आसमान की तरफ,
शंख के विराजमान होने के बाद, चन्दन, घूप, केसर, पुष्प, कपूर, दीप, मिष्ठान से पूजा अर्चना करे।
इसके बाद नित्य नियमित रूप से दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करें, ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी बहुत प्रस्सन होते है, और स्वंय आ कर विराजमान हो जाते है,
जिन घरों में दक्षिणावर्ती शंख की पूजा होती है, ऐसे घरों में कभी भी धन धन्य की कमी नहीं होती, सुख शांति का वास रहता है, कभी कोई विपदा नहीं आती।
शंख के बारे में यह लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है और इससे बहुत कुछ जानकारी मिली।
परन्तु, मुझे एक बात की जानकारी नहीं मिल पायी।
क्या हम दक्षिणावर्ती शंख से भगवान शिव को जल चढ़ा सकते हैं या नहीं? भगवान विष्णु को तो अर्पित कर ही सकते हैं। मैं पिछले 20-25 साल से दाहिनी मुखी शंख से शिवलिंग और विष्णु को जल चढ़ाते आ रहा हूँ। कृपया इसकी विस्तृत जानकारी देने का कष्ट करें, क्या मैं सही कर रहा हूँ या गलत?
भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए शंख का प्रयोग न करें।