जन्म कुंडली के लाभ और जन्म कुंडली फलित दर्पण

जन्म पत्रिका या जन्म कुंडली, यह नाम सुनते ही व्यक्ति के मन में ज्योतिष शब्द आने लगता है, ज्योतिष जो व्यक्ति के जीवन का दर्पण है, इसी जन्म कुंडली पर आधारित है। आइये जाने जन्म कुंडली के लाभ और जन्म कुंडली फलित दर्पण

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जन्मपत्रिका ही वह लेखाजोखा है जिसमे व्यक्ति के जन्म सम्बंधित सभी विवरण रहते है जैसे, व्यक्ति के जन्म के समय आकाशगंगा में राशि, नक्षत्रों और ग्रहों की क्या स्थिति थी,
और जन्मपत्रिका में यही वह विवरण होता है जिससे व्यक्ति के जीवन, भविष्य, सुख- दुःख, उनत्ती, तरक्की, शिक्षा, वैवाहिक और पारिवारिक जीवन, लव अफेयर्स, प्रेम विवाह, कोर्ट कचहरी, और भी जीवन की बहुत सी जानकारियां प्राप्त होती है।
एक तरह से जन्मपत्रिका किसी व्यक्ति के जीवन का वह दीपक है जिसकी ज्योति से उसके समस्थ जीवन के बारे में रौशनी प्राप्त होती है।

जन्मपत्रिका में जातक की जन्मतिथि, जन्मदिन, जन्म तारीख, जन्मसमय और जन्म स्थान का ब्यौरा रहता है, उसी के आधार पर जन्मपत्रिका में व्यक्ति के जन्मलग्न का निर्माण होता है,

इस जन्मलग्न के 12 खानों में 12 राशियां रहती है और 9 ग्रह रहते है, बस यही है व्यक्ति के जीवन की जन्मपत्रिका, जन्मपत्रिका के इसी जन्मलग्न के आधार पर व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन जीता है, सुख-दुःख देकता है, धन कमाता है, अपना नाम रौशन करता है।

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जन्म कुंडली के लाभ

जन्म कुंडली व्यक्ति के जीवन का वह खाका (ब्लूप्रिंट) है, जिसके आधार पर व्यक्ति के जीवन में होने वाली या घटने वही घटनाओं के बारे में जाना जा सकता है, व्यक्ति के जीवन के सुख-दुःख, उनत्ती भरे समय, आर्थिक उनत्तियाँ, सामाजिक प्रतिष्ठा, वैवाहिक और पारिवारिक खुशियों के बारे में जाना जा सकता है।

यह सब जन्म कुंडली में व्यक्ति की दशाओं पर निर्भर रहता है, व्यक्ति साधारण व्यक्ति से करोड़पति बन जाता है, कोई स्टार बन जाता है, कोई इंडस्ट्रलिस्ट बन जाता है, तो कोई राजनेता या उच्च अधिकारी,
यही नहीं कई व्यक्ति राजा से रंक भी बन जाते है, बड़े बड़े नामी व्यक्ति मिट्टी में मिल जाते है,
यह सब जन्म कुंडली में ग्रहों की दशाओं के अनुसार होता है। जो सत्य है अटल है जो आपकी जन्म पत्रिका में लिखा है, उसे घटित होना ही है, यह ज्योतिषशास्त्र है और ज्योतिषशास्त्र की शक्ति है चाहे कोई इसे माने या ना माने,

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जब व्यक्ति परेशानियों से घिरता है, तो ज्योतिषशास्त्र की शरण में अवशय आता है।

किसी भी व्यक्ति को अपनी जन्म कुंडली आवशय बनानी चाहिए, जिसका लाभ यह होता है की उसे अपने जीवन के बारे में और अच्छे बुरे समय की जानकारी मिल सकती है, और वह अपने जीवन में उस जानकारी के साथ शुभ काम कर सकता है, और बुरे वक़्त में ज्योतिषीय उपायों द्वारा संभल सकता है।

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जन्म पत्रिका और भाव भूमिका

जन्म पत्रिका के 12 भाव (लग्न) जिन्हें हम 12 घर कहकर भी पुकारते है, इन 12 भावों का प्रत्येक भाव जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं का विश्लेषण करता है।

प्रत्येक भाव में जो राशि विराजमान रहती है उसका स्वामी ग्रह 12 भावों में कही भी विराजमान रहे उसे ‘भावेश’ बोला जाता है।
यानि की लग्न स्थान में में उपस्थित ग्रह भावों की राशि का स्वामी होता है।

जैसे की अगर प्रथम भाव में मेष राशि है, तो यह मेष लग्न की कुंडली होगी और मेष राशि का स्वामी मंगल होता है,


इसी प्रकार अन्य राशियां और उनके स्वामी का विवरण निचे बताया गया है –

राशिराशि स्वामी
मेष, वृश्चिकमंगल
वृषभ, तुलाशुक्र
मिथुन, कन्याबुध
कर्कचन्द्रमा
सिंहसूर्य
धनु, मीनब्रहस्पति
मकर, कुम्भशनि

इसी प्रकार आप समझ गए होंगे की अगर मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है, तो धनु और मीन राशि का स्वामी ग्रह ब्रहस्पति है।

प्रथम भाव में जो राशि विराजमान रहती है उसके स्वामी को “लग्नेश” बोला जाता है।

भाव और उनके स्वामी को ज्योतिष भाषा में क्या बोला जाता है जानिये –

स्थानस्थानों के स्वामियों के नाम
लग्नलग्नेश
द्वितीय स्थानद्वितीयेश, धनेश, मार्केश
तृतीय स्थानतृतीयेश, पराक्रमेश
चतुर्थ स्थानचतुर्थेश, सुखेश
पंचम स्थानपंचमेश
षष्ठ स्थानषष्ठेश, व्याधियेश
सप्तम स्थानसप्तमेश, मारकेश
अष्ठम स्थानअष्ठमेश, आयुष स्वामी
नवम स्थाननवमेश, भाग्येश
दशम स्थानदशमेश, कर्मेश
एकादश स्थानएकादशेश, लाभेश
द्वादश स्थानद्वादयेश, व्ययेश

इसके आलावा भाव स्वामियों के अन्य नाम –

  • लग्न, चतुर्थ, सप्तम, और दशम भाव के स्वामियों को केन्द्रेश भी बोला जाता है।
  • लग्न, पंचम, और नवम भाव के स्वामियों को त्रिकोणेश भी बोला जाता है।

भावों के अन्य नाम –

  • तृतीय, षष्ठ, दशम, और एकादश भावों को उपचय स्थान बोला जाता है।
  • षष्ठ, अष्ठम, द्वादश भावों को त्रिक स्थान भी बोला जाता है।

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