जन्म कुंडली
जन्म कुंडली से हमें यह ज्ञात होता है की जातक के जन्म के समय आकाशमण्डल में कौन सा ग्रह किस राशि में भ्रमण कर रहा था और कितने अंश पर था।
जन्म कुंडली में 12 भाव होते है और प्रत्येक भाव में एक राशि रहती है और इन्हीं 12 भाव या घर में 9 ग्रह भी विराजमान रहते है।
इसे ही जन्म कुंडली में लग्न स्थान कहा जाता है।
जन्म कुंडली में 12 भावों के केंद्र, त्रिकोण और मारक, पणफर, आपोक्लियम स्थान
केंद्र – प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थान लग्न के केंद्र स्थान कहलाते है।
त्रिकोण – पंचम और नवम भाव को त्रिकोण स्थान का दर्जा मिला हुआ है।
मारक – जन्म कुंडली के लग्न में द्वितीय और सप्तम स्थान को मारक स्थान बोला गया है।
पणफर – जन्म कुंडली के द्वितीय, पंचम, अष्टम, और एकादश भाव को पणफर बोला जाता है।
आपोक्लियम – तृतीय, षष्ठम, नवम और द्वादश भाव को आपोक्लियम बोला जाता है।
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जन्म कुंडली बनवाने लिए आवश्यक विवरण
- नाम
- जन्म तिथि
- जन्म समय
- जन्म स्थान
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जन्म कुंडली के बारह भाव जानकारी
प्रथम भाव
रंग रूप, स्वाभाव, जाति, हिम्मत, धैर्य, साहस, चरित्र
प्रथम भाव से जातक के व्यक्तित्व, शारीरिक रचना, रंग रूप, स्वाभाव का आंकलन किया जाता है, प्रथम स्थान जन्म कुंडली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
प्रथम भाव में शुभ ग्रहों की उपस्थिति बहुत शुभ मानी जाती है, जबकि प्रथम भाव में क्रूर ग्रह जीवन में उथलपुथल लाते है।
द्वितीय भाव
धन, आवाज, बोल-चाल, विद्या, कुटुंब, भोजन, जातक के मुख की बनावट, दाहिनी आँख, वाणी, बुद्धि
जन्मकुंडली का द्वितीय भाव जातक के जीवन में धन की स्थिति और उसके परिवार से संबंधो को दर्शाता है,
व्यक्ति के जीवन की आर्थिक स्थितियां और उनमें उतार चढ़ाव द्वितीय भाव से ही जाने जाते है। द्वितीय भाव में क्रूर ग्रह पारिवारिक जीवन में कटुता और धन की परेशानियां दर्शाते। है
तृतीय भाव
भोजन, पराक्रम, भाई-बहिन, नेतृत्व, दाहिना कान, पड़ौसी अपने देश में यात्रा, हिम्मत, सहास, लेखन कार्य
जन्मकुंडली का तृतीय भाव पराक्रम स्थान कहलाता है, यह भाव जातक का अपने जीवन में शक्ति का प्रदर्शन करता है,
स्पोर्ट्स, कम्प्यूटर्स जैसे विषयों में रूचि दर्शाता है,
तृतीय भाव में क्रूर ग्रहों की उपस्थिति जातक को शक्ति प्रदान करती है, शुभ ग्रहों की स्तिथि जातक को शुभता तो प्रदान करती है, लेकिन जातक दिल और मन से कमजोर होता है।
चतुर्थ भाव
माता के साथ व्यवहार, माता का सुख, अपना घर मकान, जमीन, संपत्ति, वाहन सुख, जातक शक्ति, सुख, प्रस्सनता, हृदय, भोजन
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से माता के सुख की प्राप्ति और माता का स्वास्थय का आंकलन किया जाता है, जातक के जीवन में घर, मकान, जमीन, अच्छे वाहनों का सुख, पत्नी से सम्बन्ध, भौतिक सुख देखे जाते है,
चतुर्थ भाव में शुभ ग्रहों की उपस्थिति व्यक्ति के जीवन में आनन्द और सुख लाती है।
पंचम भाव
संतान, शिक्षा, प्रेम, प्रेम इच्छा, विवाह, शेयर मार्किट, सट्टा, लॉटरी, बुद्धि, ज्ञान, मन्त्र, मंत्री या सलाहकार, आत्मा, सुजबूझ
जन्म कुंडली का पंचम भाव जातक की बुद्धि, संतान सुख, अच्छे विचार का प्रदर्शन करता है,
पंचम भाव में शुभ ग्रहों की उपस्थिति जातक को ज्ञानी बनती है, शिक्षा में सफलता प्रदान करती है, सामाजिक प्रतिष्ठा देती है, जबकि अशुभ ग्रह इन्हीं सब सुखों की कमी करते है
षष्ठम भाव
कर्ज, रोजी, शत्रु, चोर, जख्म, चोट, दुःख, पेट के रोग, दुश्मनी, कोर्ट कचहरी
जन्म कुंडली में षष्ठम भाव अशुभ, रोग और शत्रु का भाव कहलाता है, इस भाव में अशुभ ग्रहों की उपस्थिति व्यक्ति के जीवन में बहुत सी परेशानियां खड़ी करती है,
जन्म कुंडली के षष्ठम भाव में ज्यादातर ग्रहों के अशुभ प्रभाव ही रहते है, कर्ज, रोग और शत्रुता ही बढ़ाते है, केवल शनि और राहु की शुभ स्तिथि ही व्यक्ति को कोर्ट कचहरी और शत्रुओं पर विजय दिलवाती है।
सप्तम भाव
पति-पत्नी का सुख, वैवाहिक जीवन, साझेदारी, शैय्या सुख, खोया हुआ धन, संगती, संन्यास, यात्रा, पत्नी
जन्म कुंडली का सप्तम भाव पति पत्नी के संबंधो को दर्शाता है, उनके जीवन के वैवाहिक जीवन को दर्शाता है, सेक्सुअल जीवन को दर्शाता है, जातक का व्यापार और व्यापार में साझेदारी को दर्शाता है,
अगर जन्म कुंडली के सप्तम भाव में ग्रहों की उपस्थिति शुभ रहेगी, तो अवश्य ही जातक को इन सभी सुखों की प्राप्ति होगी।
अष्टम भाव
मृत्यु, गुप्त धन,स्वल्पायु, मध्यायु, पूर्णायु, मृत्यु का स्थान, भोजन, गुप्तांग
जन्म कुंडली का अष्ठम भाव व्यक्ति के जीवन और मृत्यु को दर्शाता है, व्यक्ति के जीवन में असाध्य रोग को दर्शाता है, लम्बी विदेश यात्राएं दर्शाता है,
जन्म कुंडली का अष्ठम भाव में उपस्थित शुभ ग्रह अच्छा स्वास्थय और लम्बा जीवन प्रदान करते है, जबकि अशुभ ग्रह रोग और अल्पायु प्रदान करते है,
शनि के विषय में ऐसा बोला जाता है की शनि इस भाव में लम्बी आयु प्रदान करता है।
नवम भाव
धन, उच्च शिक्षा, भाग्य, पिता का स्वाभाव, गुरु, पौत्र, जातक की सहृदयता, जातक के शुभ गुण, उपासना, भक्ति, नेतृत्व, दान, धर्म, मामा
जन्म कुंडली का नवम भाव जातक के जीवन के भाग्य को दर्शाता है, पिता के सुखों का प्रदर्शन करता है, धार्मिक बनाता है, विदेश यात्राएं, धन, ऊँची शिक्षाए, और अपने गुरुओं से अच्छे सम्बन्धो को दर्शाता है।
अगर जन्म कुंडली का नवम भाव अशुभ है तो व्यक्ति जीवन में संघर्षो में फसा रहता है, भाग्य से बहुत कमजोर कर देता है, जातक को भाग्य से कुछ भी प्राप्त नहीं होता और जीवन में बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
दशम भाव
जातक की क्षमता, व्यवसाय, राज्य, आदर-प्रतिष्ठा, निवास-स्थान, प्रसिद्धि, दानशीलता, यात्राएं, धन, उच्च शिक्षा
जन्मकुंडली का दशम भाव कर्म स्थान कहलाता है, दशम भाव से हम जातक की सामाजिक मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, नौकरी, व्यवसाय, पिता का विचार, सरकारी संस्थानों से लाभ, बड़े सरकारी और गैर सरकारी अधिकारियों से सम्बन्ध, राजनीती में सफलता जैसे विचार किये जाते है,
अगर जन्मकुंडली के दशम भाव में शुभ और पाप गृह दोनों ही अपनी शुभ स्तिथियों के अनुसार शुभ फल प्रदान करते है,
और अगर इनकी अशुभता रहेगी तो यह अशुभ फल और संघर्षमय जीवन प्रदान करते है।
एकादश भाव
धन लाभ, मुनाफा, आय, बायाँ पैर, विभिन्न साधनों से आर्थिक लाभ, सोसायटी, कलर्क, आय के स्तोत्र
जन्मपत्रिका का एकादश भाव बड़े भाई बहिन, छोटे मोठे रोग, व्यापार- व्यवसाय, या किसी भी कार्यों से लाभ, आय के साधन दर्शाता है,
जन्मपत्रिका के एकादश भाव में अगर कोई भी ग्रह अपनी शुभ अवस्था में होगा तो वह लाभ प्रदान करेगा और अगर ग्रह अशुभ है तो वह होने वाले लाभों में कमी करेगा।
द्वादश भाव
व्यय, पाप, स्वर्ग या नरक, बायीं आँख, अपंग होना, जेल जाना, खर्चे विदेश यात्रा
जन्मकुंडली का द्वादश भाव जीवन की परेशानियों का भाव है, इस भाव से जातक के जीवन की परेशानियां, खर्चे, व्यर्थ खर्चे, हॉस्पिटल के खर्चे, शारीरिक परेशानियां, आर्थिक नुकसान, व्यक्ति के गुप्त शत्रु, विदेश में बसना और दुर्घटनाएं देखी जाती है।