प्रणाम दोस्तों, छत्तीसगढ़ दुर्ग भिलाई ज्योतिष और रत्नों को कैसे अभिमंत्रित और जाग्रत करें की इस पोस्ट में हम जानेंगे की रत्न हमारे जीवन में किस प्रकार से कार्य करते है, कैसे रत्न हमारे और ग्रहों के बीच माध्यम बनकर नवग्रहों की ऊर्जा हमारे शरीर में पहुँचाते है और हमें लाभ देते है और रत्नों को धारण करने से पहले उन्हें अभिमंत्रित और जाग्रत करना क्यों आवश्यक होता है।
छत्तीसगढ़ दुर्ग भिलाई ज्योतिष, लक्ष्मी नारायण
छत्तीसगढ़ दुर्ग भिलाई ज्योतिष, लक्ष्मी नारायण भारत के जाने माने ज्योतिष है, लक्ष्मी नारायण ज्योतिष से सम्बंधित सभी विषयों पर अपना परामर्श देते है, उनपर ईश्वर की कृपा रही है की कोई भी भक्तगण खाली नहीं जाता है, और उसकी समस्याओं का निवारण जरूर होता है।
आप भी लक्ष्मी नारायण से परामर्श प्राप्त कर सकते है, अगर आप दुर्ग, भिलाई, रायपुर के निवासी है तब तो आप स्वम उनके कार्यालय “ज्योतिष परामर्श केंद्र” कृपाल नगर, अवन्ति बाई चौक, सुपेला, भिलाई आकर परामर्श प्राप्त कर सकते है,
और अगर आप कहीं दूर निवासरत है, तो आप ऑनलाइन भी पूर्ण रूप से सभी विषयों पर परामर्श प्राप्त कर सकते है,
ऑनलाइन परामर्श में आपको पहले संपर्क करना होगा, उसके बाद समय तय कर लिया जायेगा, समय तय होने के बाद आप लक्ष्मी नारायण से अपने जीवन और जन्मकुंडली पर सम्पूर्ण परामर्श प्राप्त कर सकते है, समय की कोई पाबन्दी नहीं है।
धन्यवाद!
रत्नों को कैसे अभिमंत्रित और जाग्रत करें
जैसे ही कोई मनुष्य इस धरती पर जन्म लेता है, उसके ऊपर ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों का प्रभाव आ जाता है, और वह व्यक्ति अपना सारा जीवन अपने जन्म समय के अनुसार उदित ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों के अनुसार ही जीता है और सुख दुःख भोगता है।
आकाशगंगा में सभी नव ग्रह अपनी धुरी पर चक्कर लगाते हुए पृथ्वी के चारों तरफ घूमते रहते है, सभी नव ग्रहों की अपनी अपनी रश्मियां रहती है जो की निरंतर पृथ्वी पर पड़ती रहती है, जिसका असर पृथ्वी पर रहने वाले पशु ,पक्षी या मनुष्य सबके ऊपर निरंतर बना रहता है।
धरती में उत्पन्न रंग बिरंगे रत्नों का सम्बन्ध ग्रहों से रहता है, और हर रंग के रत्न में अपने ग्रह की ऊर्जा रहती है, जैसे की –
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ग्रह और उसके रत्न
- मंगल ग्रह का रंग लाल है, इसलिए मंगल ग्रह की ऊर्जा लाल मूंगा रत्न में रहती है,
- पीले रंग के ब्रहस्पति ग्रह की ऊर्जा पीले रंग के पुखराज में रहती है,
- बुध की ऊर्जा हरे रंग के पन्ने में रहती है क्योकि बुध का रंग हरा है,
- शुक्र ग्रह चमकीले सफ़ेद रंग का है, इसलिए शुक्र की ऊर्जा हीरे में है,
- नीले रंग के शनि की ऊर्जा नीलम में है,
- मोती रत्न की ऊर्जा दूधिया चंद्र में रहती है,
- सूर्य की लाल लपटों की ऊर्जा माणिक्य रत्न में रहती है,
- छाया ग्रह राहु जिसका कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन गोमेद रत्न में राहु की ऊर्जा है,
- और ऐसे ही छाया ग्रह केतु की ऊर्जा लहसुनियां रत्न में है।
इन ग्रहों से निकलने वाली रश्मियां मनुष्य पर अपना अच्छा या बुरा प्रभाव बराबर बनाये रखती है, जो ग्रह जातक के जन्म समय अनुसार शुभ है, उन ग्रहों की रश्मियां जातक के लिए लाभकारी और सुखकारी रहती है और जो ग्रह अशुभ होते है उन ग्रहों की रश्मियां जातक के जीवन में संघर्ष लाती है।
शुभ ग्रहों के रत्न धारण करने से ग्रह को बल मिलता है, और वह ग्रह बली होकर अपनी शुभता की बढ़ोतरी करता है, जिसका नतीजा जातक को उनत्ति, तरक्की और सुख के रूप में प्राप्त होता है।
लेकिन कौन से ग्रह का रत्न धारण करना है, यह गहन कुंडली विश्लेषण करने के बाद ही पता लगाया जा सकता है, नहीं तो रत्न के विपरीत प्रभाव देखने को मिलते है।
या अपने मन से ही किसी रत्न को धारण कर लेना खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए जब भी रत्न धारण करें किसी योग्य ज्योतिष से सलाह लेकर ही धारण करें।
जन्म कुंडली की विवेचना करवाकर जन्मकुंडली में स्तिथ ग्रहों की अनुकूलता के अनुसार एक, दो या तीन रत्न तक भी धारण किये जा सकते है, लेकिन इसमें भी बहुत सी सावधानियां बरतनी पड़ती है, यह भी देखना पड़ता है की धारण किये गए रत्नों की आपस में शत्रुता तो नहीं है।
नहीं तो उन ग्रहों का आपस में ही टकरार होने लगेगा और उसके अशुभ फल धारणकर्ता को भोगने पड़ेंगे।
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रत्नों की प्राणप्रतिष्ठा
जब भी रत्नों को धारण किया जाता है, तो उन रत्नों की प्राणप्रतिष्ठा करनी अत्यंत आवशयक हो जाती है,
जिस तरह से किसी भी देवी या देवता की मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा से पहले निर्जीव होती है यही नियम रत्नों पर भी लागु होता है, रत्न भी प्राणप्रतिष्ठा से पहले निर्जीव ही होते है, पूजा, पाठ, सिद्ध और प्राणप्रतिष्ठा के बाद ही वे जाग्रत होते है और उनमें ऊर्जा का सञ्चालन होना शुरू होता है,
बगैर पूजा, पाठ, सिद्ध और प्राणप्रतिष्ठा के रत्न निर्जीव होते है, उनको धारण करने से कोई भी लाभ नहीं रहता है, वे केवल एक शोपीस की तरह रह जाते है, इसलिए ग्रहों के रत्नों का पूर्ण करने के लिए उनकी पूजा, पाठ, सिद्ध और प्राणप्रतिष्ठा अति आवश्यक होती है।
सबसे पहले शुभ मुहूर्त में रत्न को खरीदकर उसकी अंगूठी या लॉकेट बनवाना चाहिए, कच्चे दूध और गंगाजल से शुद्धि करनी चाहिए,
फिर उस रत्न के दिन अनुसार शुभ मुहूर्त में जल, कुमकुम, धूप, चावल, दूर्वा और दक्षिणा लेकर अभिषेक, पूजा, पाठ, मंत्रजप और प्राणप्रतिष्ठा करने के बाद ही अंगूठी धारण करनी चाहिए।
राशि और ग्रह के अनुसार रत्न धारण
राशि | स्वामी ग्रह | अनुकूल रत्न | अपेक्षित वजन |
---|---|---|---|
मेष | मंगल | लाल मूंगा | 6 ct. |
वृष | शुक्र | हीरा | 40 cents and above. |
मिथुन | बुध | पन्ना | 4 to 5 ct. |
कर्क | चन्द्रमा | मोती | 8 ct. |
सिंह | सूर्य | माणिक्य | 5 to 8 ct. |
कन्या | बुध | पन्ना | 4 to 5 ct. |
तुला | शुक्र | हीरा | 40 cents and above. |
वृश्चिक | मंगल | लाल मूंगा | 6 ct. |
धनु | ब्रहस्पति | पीला पुखराज | 4 to 6 ct. |
मकर | शनि | नीलम | 3 to 5 ct. |
कुम्भ | शनि | नीलम | 3 to 5 ct. |
मीन | ब्रहस्पति | पीला पुखराज | 4 to 6 ct. |
छाया ग्रह | राहु | गोमेद | 8 ct. |
छाया ग्रह | केतु | लहसुनियां | 8 ct. |
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