पितृ दोष
पितृ दोष क्या है, किसी व्यक्ति के जीवन में इसका निर्माण कैसे होता है और पितृ दोष के लक्षण क्या होते हैं?
जिस प्रकार कुंडली में शुभ योग होते है, उसी प्रकार कुंडली में दोष का निर्माण भी होता है, इनमें से एक दोष है “पितृ दोष”, जिसका जिक्र आपने बहुत बार सुना होगा,
किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बनने वाले शुभ योग उसे तरक्की और समृद्धि प्रदान करते है, और कुंडली में उत्पन्न होने वाले दोष व्यक्ति के जीवन में संघर्ष और परेशानियां उत्पन्न करते है,
इन्हीं में से एक दोष होता है “पितृ दोष”
यह पितृ दोष होता क्या है, इसका निर्माण कैसे हो जाता है, यह दोष नुकसानकारी क्यों होता है, आइये आज इसी बारे में जानकारी प्राप्त करते है।
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पितृ दोष क्या है
पितृ हमारे पूर्वजों को बोला जाता है, और हमारे वे पूर्वज जिनका देहांत असमय, किसी दुर्घटना में, या जिनकी मृत्यु अप्राकृतिक रूप से हुई हो, उन्हें मुक्ति नहीं मिली हो, हमारे पितरों संस्कार में कमियां रह गई हो, वे प्रेत योनि से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हो, तब ऐसी स्तिथियों में हमारे जीवन में पित्र दोष का निर्माण होता है।
जिन कुंडलियों में पित्र दोष का निर्माण होता है, ऐसे व्यक्तियों के जीवन में अशांति रहती है, घर में कलह रहती है, शारीरिक बीमारियां, आर्थिक समस्याएं घेरे रहती है और उनकी वंश वृद्धि में भी रुकावटें आती है।
ऐसे में जब कोई अपने पूर्वजों के श्राद और तर्पण नहीं करते तो यह दोष और अधिक परेशानियां देने लगता है।
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पितृ दोष के संकेत
1. बहुत मेहनत और परिश्रम करने के बाद भी कारोबार में सफलता नहीं मिल पाना, बार बार हानि का सामना करना आर्थिक परेशानियां बनी रहना।
2. बहुत प्रयासों के बाद भी नौकरी नहीं मिल पाना, या नौकरी मिलने के बाद भी उसे लेकर परेशानियां बनी रहना, ऑफिस के सहकर्मियों से परेशान रहना।
3. पारिवारिक कलह रहना, माता-पिता, भाई- बहनों में लड़ाई झगड़े, फसाद बने रहना, पत्नी, बच्चों से भी परेशानियां बनी रहना, घरेलु वातावरण में अशांति बने रहना।
4. परिवार के किसी सदस्य का अस्वस्थ रहना, कोई लाइलाज बीमारी रहना, घर में कोई न कोई दुर्घटना होते रहना, बार बार हॉस्पिटल में खर्चे होते रहना।
5. संतान सुख की कमी होना, संतान नहीं हो पाना या बार बार गर्भ का गिर जाना, एक से अधिक संतान नहीं हो पाना, संतान का विकलांग होना या मंदबुद्धि संतान की पैदाइश होना।
6. घर के युवक युवतियों की शादी में विलम्ब होना या शादी नहीं हो पाना।
7. घर में ऐसी योग नहीं बन पाना, जिसमें कोई मांगलिक कार्य हो पाये।
8. अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा धोखा मिलना, परिवार के सदस्यों द्वारा आपस में ही एक दूसरे के लिए षड्यंत्र रचना।
9. घर की सुख शांति में कलह बनी रहना, एक दूसरे से लड़ना और घर का कोई सदस्य भूत-प्रेत, किये कराये, नजर दोष से पीड़ित रहना।
पितृ दोष लगने के कारण
1. जब हम हमारे पित्रों के संस्कार पूर्ण विधि विधान से नहीं करते है, उनमें भूल चूक कर देते है, श्राद नहीं करते है, ध्यान नहीं देते है, तब हमारे पितृ रुष्ट हो जाते है, और हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है, उल्टा वे हमें श्रापित करने लगते है।
2. कई लोग पितरों का अनादर करते है, उनकी पूजा, श्राद को नहीं मानते है, उनका ऐसा मानना रहता है की ऐसा सब कुछ नहीं होता है, ऐसे अपमान भी पित्र दोष के कारण बनते है।
3. अपने धर्म और पूर्ण रीती रिवाजों के अनुसार पितरों के संस्कार नहीं करना भी पितृ दोष के कारण बनते है।
4. ऐसा भी बोला गया है की पीपल या बरगद के पेड़ को काटने से भी पितृ दोष लगता है।
5. किसी सांप की हत्या करने से भी पितृ दोष निर्मित होने के कारण बनते है।
जन्म कुंडली में पितृ दोष के योग
1. अगर कुंडली में सूर्य या चंद्र किसी भाव में राहु या केतु की युति में हो, या सूर्य – चंद्र पर राहु या केतु की दृष्टि हो तो पितृ दोष का निर्माण होता है।
2. अगर राहु कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम भाव में नीच का होकर बैठा हो तो पितृ दोष का निर्माण होता है।
3. राहु का अष्टम भाव में बैठना भी पितृ दोष का निर्माण करता है।
जन्म कुंडली में हर भाव अनुसार पितृ दोष
१. ऊपर बताये गए पितृ दोष के योगों के अनुसार अगर जन्म कुंडली के प्रथम भाव में पितृ दोष का निर्माण होता है, जैसे की सूर्य-राहु की युति या प्रथम भाव में सूर्य का होना उसपर राहु की दृष्टि का होना, यह पितृ दोष का निर्माण करता है,
ऐसा होने से जातक को शारीरिक बीमारियों, व्यक्तित्व की कमजोरी और आर्थिक हानियों का नुकसान उठाना पड़ता है।
२. द्वितीय भाव में पितृ दोष का निर्माण होने से व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत परिश्रम करना पड़ता है, उसे अपने किये परिश्रम के अनुसार सफलता प्राप्त नहीं हो पाती, धन की कमी हमेशा बनी रहती है, वह धन संग्रह नहीं कर पता है और हमेशा धन प्राप्त करने के प्रयासों में ही लगा रहता है।
३. तृतीये भाव में पितृ दोष का निर्माण होने से जातक हमेशा मजदूरों की तरह परिश्रम करता रहता है, घर में कलह बनी रहती है, जातक की संपत्ति उसके परिजनों द्वारा ही धोखे से छीन ली जाती है।
४. चतुर्थ भाव का पितृ दोष जातक को बहुत सी मानसिक परेशानियां देता है, अपना घर निर्माण करने में बहुत संघर्ष करवाता है, भूमि, जमीन, वाहन सम्बंधित भी बहुत कष्ट प्रदान करता है।
५. पंचम भाव का पितृ दोष संतान सम्बंधित दुःख दे सकता है, संतान का देरी से होना, कम संतान होना, संतान का ना होना, संतान से दुःख मिलना, संतान का विकलांग का विक्षिप्त होना,
विद्या प्राप्ति रुकावटें होना, बुद्धि की कमी करना, धर्म कर्म के कार्य और मांगलिक कार्यो का संपन्न ना हो पाना।
६. षष्ठम भाव का पितृ दोष व्यक्ति को कई तरह की शारीरिक परेशानियां दे सकता है, कर्ज में डुबो सकता है, कोर्ट कचहरी के लफड़ों में डालकर हार तक का सामना करवा सकता है।
ऐसी बहुत सी स्तिथियों का निर्माण हो सकता है, जिसमें बहुत से दुश्मन बन जाये।
७. सप्तम भाव में पितृ दोष होने से जातक के जीवन में कारोबार को लेकर समस्याएं बनी रह सकती है, व्यापार में साझेदारी सफल नहीं हो पाती, साझेदारी में धोखा मिलता है,
विवाह में विलम्ब होता है, विवाह टूट जाता है या फिर विवाह होता ही नहीं है, वैवाहिक जीवन में कलह रहती है, पति पत्नी झगड़ते रहते है, अलग तक हो जाते है।
८. अष्ठम भाव का पितृ दोष काफी कष्टकारी हो सकता है, व्यक्ति कई लाइलाज बीमारियों से ग्रसित हो सकता है, पैतृक संपत्ति का नुकसान हो सकता है, कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है,
यहाँ तक की मृत्यु तुल्य कष्टों को भी झेलना पड़ सकता है।
९. नवम भाव में पितृ दोष जीवन में सफल नहीं होने देता, जातक को भाग्यहीन बना देता है, जातक जीवन में संघर्षो में उलझा रहता है, जीवन में धनहीन रह जाता है, सामाजिक सम्मान नहीं मिल पाता है,
कर्जे बढ़ते चले जाते है, और वह इन्ही सब समस्याओं में उलझा रहता है।
१०. दशम भाव का पित्र दोष व्यक्ति को कारोबार में सफल नहीं होने देता, उसके उद्योग को बढ़ने नहीं देता, हर समय आर्थिक परेशानियों से घिरा रहता है,
नौकरी नहीं लग पाती, अगर लग भी जाती है तो उसमें बहुत से परेशानियां आती रहती है, बार बार नौकरी में बदलाव होते रहते है,
सामाजिक बदनामी का डर बना रहता है, अपने आस पास रहने वालो से , अपने मित्रों और सम्बन्धियों से धोखा मिलता है, लोग पीठ पीछे षड्यंत्र रचते है।
११. एकादश भाव का पित्र दोष व्यक्ति को बईमान बनाता है, व्यक्ति गलत कामों जैसे की जुए, सट्टे, चोरी, धोखेबाजी जैसे कामों से लिप्त हो सकता है, वह धन कमाने के लिए कोई भी गलत कार्य करने को तैयार हो जाता है,
वह अपने ऐसे ही अनैतिक कार्यो को लेकर जेल यात्रा और क़ानूनी विवादों में भी फस सकता है।
१२. द्वादश भाव का पित्र दोष व्यक्ति को बेवजय के खर्चो से परेशान किये रख सकता है, व्यक्ति खर्चो की वजय से धन नहीं जोड़ पाता है, और हर समय धन की परेशानियों से घिरा रहता है,
व्यर्थ की यात्राएं होती रहती है, घर परिवार में किसी न किसी को लेकर हॉस्पिटल के खर्चे बने रहते है, समाज में सम्मान नहीं मिल पाता और पारिवारिक उलझने भी बनी रहती है।
पितृ दोष निवारण के उपाय
1. अपने स्वर्गीय परिजनों के नाम से पूजा पाठ करवाए, उनके पसंद का भोजन ब्राह्मणों को करवाए, ऐसा करने से उन्हें प्रसन्नता और शांति की प्राप्ति होगी और वे आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
2. हर वर्ष पितृ अमावस्या को उनके नाम से पूजा करवाए, भोज करवाए, दान दक्षिणा दे, ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और पित्र दोष ख़त्म होगा।
3. हर अमावस्या को खीर पूड़ी बनाये, किसी गाए को खिलाये, अपने पितरों को यद् करें, उनसे जाने अनजाने कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफ़ी मांगे और उनसे अपनी सफलता और सुख के लिए आशीर्वाद मांगे।
4. शिव मंदिर में सूर्य ग्रह की पूजा करवाए, सूर्य मंत्रो का जाप करवाए, सूर्य शांति पथ करवाए, ऐसा करने से भी पित्र दोष कटता है।
5. अपने घर के मंदिर में सूर्य यंत्र स्थापित करें, रोज नित्य कम से कम एक माला सूर्य मन्त्र का जाप करें, ऐसा करने से भी पित्र दोष शांत होता है।