मेष लग्न में सूर्य का फल

मेष लग्न और सूर्य

मेष लग्न क्या है, मेष लग्न में सूर्य का फल और मेष लग्न में सूर्य के कैसे प्रभाव देखने को मिलते है

मेष लग्न मतलब लग्न के प्रथम भाव में 1 नंबर की संख्या का होना। मेष लग्न का स्वामित्व मंगल ग्रह करता है, मंगल एक आक्रामक, योद्धा और परिश्रमी ग्रह है, उसी प्रकार का स्वाभाव मेष लग्न के जातकों में देखने को मिलता है,

अगर मेष लग्न के जातक की कुंडली में मंगल पाप पीड़ित हो जाये या राहु या शनि के साथ विराजमान हो जाये या मंगल – शनि या राहु से दृष्ट हो जाये तो मंगल आक्रामक हो जाता है और जातक को आक्रामक बना देता है, जातक बहुत गुस्से वाला और बहुत जल्दी अपना आपा खो देने वाला हो सकता है।

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य पंचमेश है, मेष लग्न के स्वामी मंगल और सूर्य की आपसे में मैत्री रहती है, सूर्य ग्रहों का राजा है तो मंगल ग्रहों का सेनापति है।

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव देने वाला होता है, सूर्य संतान सुख, अच्छी संतान, विवाह, प्रेम, शायरों और सट्टा के व्यवसाय का कारक, किसी सरकारी संस्थानों में सलाहकार, चातुर्य, मंत्रो की सिद्धि प्राप्त करना आदि होता है।

अगर मेष लग्न में सूर्य शुभ भावों में, उच्च का, या मित्र राशि में है तो सूर्य यह सब लाभ प्रदान करेगा।
अगर मेष लग्न में 1, 4 , 5 , 9 भावों में है तो सूर्य अपने सभी लाभों की प्राप्ति कराएगा, इसके आलावा धन लाभ, सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक उनत्ति, रजनीतिक और सरकारी लाभ प्रदान करेगा।

मेष लग्न में कमजोर सूर्य

अगर मेष लग्न में सूर्य नीच का हो जाता है, शत्रु राशि में रहता है, राहु-केतु, शनि के प्रभावों में आ जाता है, तो सूर्य अपना शुभ प्रभाव खो देता है और जातक को नुकसान देता है।
यही अगर मेष लग्न में सूर्य 6 , 7 , 8 , 10 , 11 , 12 भावों में आ जाये तो सूर्य अपने शुभ प्रभाव देने में असक्षम हो जाता है।

मेष लग्न के 12 भावो में सूर्य का फल

मेष लग्न के प्रथम भाव में सूर्य

मेष लग्न में अगर सूर्य प्रथम भाव में होगा तो वह उच्च का होगा, ऐसे में सूर्य राजयोगकारक होगा, जातक बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करेगा, धन लाभ होगा, व्यक्ति नामी होगा, उसके चेहरे पर तेज होगा, जातक शारीरिक रूप से बहुत शक्तिशाली, ऊर्जावान और तेजस्वी होगा।

मेष लग्न में प्रथम भाव का सूर्य व्यक्ति में अहंकार उत्पन्न करता है, जातक को बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है, जातक सबको अपने अधीन रखना चाहता है, जातक को नेत्र रोग हो सकता है और जातक के वैवाहिक जीवन में भी मतभेद रह सकते है।

मेष लग्न कुंडली में सूर्य अपनी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर रखता है, सप्तम भाव में सूर्य के शत्रु शुक्र की राशि है, इसलिए जातक को वैवाहिक और घरेलु परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, कारोबारी साझेदारी में विवाद का सामना करना पड़ सकता है और कारोबार में भी अधिक परिश्रम का सामना करना पड़ सकता है।

मेष लग्न के द्वितीय भाव में सूर्य

मेष लग्न के द्वितीय भाव में सूर्य वृषभ राशि का होता है, वृषभ राशि सूर्य के शत्रु शुक्र की है,
इसलिए द्वितीय भाव में सूर्य परिवार, कुटुंब और अडोसी पड़ोसियों से मन मुटाव, लड़ाई झगड़े करवाता है, सामाजिक मान सम्मान की भी कमी करवाता है,

मेष लग्न का द्वितीय सूर्य शिक्षा में भी व्यवधान डालता है, शिक्षा में कमी करता है।

आर्थिक मामलों में अधिक संघर्ष करने पड़ते है, संतान की तरफ से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है,
धन लाभ और आर्थिक मामलों में सूर्य साधारण शुभ होता है। खर्चे अधिक हो सकते है और संतान भी अधिक खर्चों की कारण बन सकती है।

मेष लग्न कुंडली में सूर्य द्वितीय भाव से अपनी सप्तम दृष्टि अष्ठम भाव पर मंगल की वृश्चिक राशि पर डालता है, जो सूर्य के मित्र मंगल की राशि है, यहां सूर्य जातक को लम्बी आयु प्रदान करने वाला होता है, अचानक धन, संपत्ति का लाभ भी प्राप्त करवा सकता है।

मेष लग्न के तृतीय भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य अगर तृतीय पराक्रम भाव में होगा तो वह बुध की मिथुन राशि में होगा, यहाँ सूर्य अपने शुभ प्रभाव देगा, जातक बहुत परिश्रमी और मेहनती होगा, अपने जन्म स्थान से दूर जाकर उनत्ति और प्रसिद्धि पायेगा, भाई बहनों से प्यार और सहयोग प्राप्त होगा, पिता के साथ आपसी विचारों के मतभेद रह सकते है।

मेष लग्न में तृतीय भाव का सूर्य जातक को विद्या और बुद्धि प्रदान करने वाला होता है।

सूर्य इस भाव में होने से जातक की पुत्र संतान होने के बाद वह अपने जीवन में अधिक तरक्की प्राप्त करता है, संतान जातक की उनत्ति में सहायक होती है, जातक को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होते।

तृतीये स्थान से सूर्य अपनी सप्तम दृष्टि भाग्य स्थान पर धनु राशि पर रखता है, धनु राशि सूर्य के मित्र ब्रहस्पति की है, इसलिए यहाँ सूर्य जातक को भाग्यशाली बनाएगा, जातक धार्मिक कार्यो वाला होगा, दान पुण्य करने वाला होगा, अपनी मेहनत से अपने भाग्य का निर्माण करने वाला होगा।

मेष लग्न के चतुर्थ भाव में सूर्य

मेष लग्न में सूर्य चतुर्थ भाव में अपने मित्र चंद्र की कर्क राशि में विराजमान होता है, चतुर्थ भाव का सूर्य जातक को जीवन में वहन, जमीन, घर, माता का सुख प्रदान करने वाला होता है, जातक को अपने जीवन में आर्थिक लाभ होते है और जातक बड़े और सुख सुविधाओं वाले घर का सुख भोग करता है,
कारोबारी लाभ और आर्थिक लाभ प्राप्त करता है, जातक का विदेश भ्रमण भी होता है।

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य, चंद्र की कर्क राशि में होने से जातक को मानसिक शांति भी प्रदान करता है, अगर जातक मन और दिमाग से बहुत उत्तेजित होता है तो यहां करक राशि उसको शांत रखती है और जातक सही निर्णय लेता है।

चतुर्थ भाव से सूर्य अपने शत्रु शनि की मकर राशि को देखता है, जो की कारोबार और नौकरी में व्यवधान डालता है, पिता के साथ संबंधो को ख़राब करता है और जातक के सम्मान में भी कमी करवाता है।

मेष लग्न के पंचम भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में सूर्य पंचम भाव का स्वामी होता है, अगर सूर्य पंचम भाव में है तो सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बहुत ही शुभ फल यानि की उच्च के सूर्य के समान फल देने वाला होता है।

पंचम सूर्य व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्रदान करता है, तेजस्वी संतान प्रदान करता है, बुद्धिमानी, सामाजिक संपन्ता, अचानक प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभ, घर में मांगलिक कार्यों के आयोजन संपन्न करवाता है। जातक प्रेम संबंधो का सुख प्राप्त करता है और अपने बड़े भाई बहनों से स्नेह प्राप्त करता है।

मेष लग्न में पंचम भाव का सूर्य जातक को सरकारी क्षेत्रों में लाभ देता है, जातक सरकारी ठेकों से बहुत अच्छे लाभ प्राप्त करता है,

मेष लग्न कुंडली में सूर्य पंचम भाव से अपने शत्रु शनि की एकादश भाव स्तिथ कुम्भ राशि पर पर दृष्टि देता है, जो की जातक को कारोबारी लाभों की कमी करता है, उसकी आमदनी में रुकावटें खड़ी होती है और शारीरिक अस्वस्थता भी हो सकती है।

मेष लग्न के षष्ठम भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में अगर सूर्य षष्ठम भाव में बुध की कन्या राशि में है, तो यहाँ सूर्य अपने शुभ फल नहीं देगा, सूर्य यहाँ अपने अशुभ फल देगा,
यहाँ का सूर्य संतान के लिए हानिकारक होगा, या फिर जातक को संतान की तरह से परेशानियां मिलेंगी,

अगर जातक शिक्षा प्राप्त कर रहा है तो, शिक्षा में परेशानी या शिक्षा में रूकावट आ सकती है।

जातक को कोर्ट कचेहरी की समस्याओं को झेलना पड़ सकता है, बेवजय के मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है, शारीरिक कष्ट, रक्तः और हृदय सम्बंधित बीमारी दे सकता है, आर्थिक हानियां होकर कर्ज हो सकर्ता है, नौकरी जाने का डर भी रहता है।

इतना जरूर है की यहाँ का सूर्य शत्रुओं को पराजित करता है।

षष्ठम भाव का सूर्य सीधी सप्तम दृष्टि द्वादश भाव स्तिथ मीन राशि यानि व्यय भाव को देता है, जो की जातक को बहुत अधिक और व्यर्थ के खर्चों की परेशानी देता है,
अगर जातक कोई ऐसा व्यापार करता है जिसमे दूसरे शहरों से सामान लेकर बेचता है तो ऐसे कामों में लाभ होता है, जातक को दूसरे शहरों में अधिक मान सम्मान मिलता है।

मेष लग्न के सप्तम भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में अगर पंचम भाव का स्वामी सूर्य सप्तम भाव में विराजमान है तो यहाँ सूर्य शुक्र की तुला राशि में नीच का हो जाता है, यहाँ सूर्य अपना कोई भी शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है,

यहाँ का सूर्य वैवाहिक जीवन में लड़ाई झगड़े, अलगाव, वैवाहिक कलह दे सकता है, कारोबारी परेशानियां और साझेदारी में मनमुटाव और टूट जाना जैसी समस्याएं खड़ी करता है।
जातक का स्वास्थय दुर्बल रह सकता है।

यही से सूर्य अपनी सप्तम दृष्टि अपने मित्र मंगल की मेष राशि और उच्च की दृष्टि लग्न यानि प्रथम भाव पर रखता है, जातक स्वाभमानी होगा, जातक को सम्मान प्राप्त होगा, उसका बुद्धि बल बहुत मजबूत होगा, शारीरिक मजबूती प्राप्त होगी।

मेष लग्न के अष्ठम भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में अष्ठम भाव में स्तिथ सूर्य शुभ नहीं होता, शारीरिक कष्ट और बीमारियां देता है, कारोबार में नुकसान करता है, जातक को किसी भी कार्य में अधिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जातक उलझनो में फसा रहता है।

जातक को अपने जीवन में मान हानि तक का सामना करना पड़ सकता है, पैतृक संपत्ति हाथ से जा सकती है, संतान जीवन में कष्ट देती है।

अष्ठम भाव का सूर्य सीधे सप्तम दृष्टि अपने शत्रु शुक्र की वृषभ राशि पर यानि की धन भाव पर डालता है,
जो को परिवार, कुटुंब, रिश्तेदारों, अडोसी पड़ोसियों से सम्बन्ध ख़राब करवाता है, विवाद पैदा करवाता है, धन संचय में परेशानियां खड़ी करता है, आर्थिक हानि देता है।

मेष लग्न के नवम भाव में सूर्य

मेष लग्न में जब पंचम भाव का स्वामी सूर्य नवम भाव में विराजमान होता है, तब सूर्य नवम भाव में ब्रहस्पति की धनि राशि में बहुत शुभ फलों को प्रदान करता है, यहाँ सूर्य अपनी श्रेष्ठ अवस्था में होता है,
सूर्य यहाँ जातक को बहुत आज्ञाकारी और शिक्षित संतान प्रदान करता है, जातक को संतान द्वारा सुख प्राप्त होता है, जातक को अपने पिता द्वारा पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है, धन लाभ में पिता का सहयोग प्राप्त होता है।

सूर्य यहाँ जातक को बहुत भाग्यवान बनाता है, उसके हर कार्यो में भाग्य का विशेष सहयोग रहता है, इसके आलावा यहाँ का सूर्य जातक को विदेश में पढ़ने, विदेश में शिक्षा , उच्च शिक्षा, नौकरी या कारोबार करने के योग भी उत्पन्न करवाता है और जातक विदेश भ्रमण अवशय करता है।

जातक धार्मिक कार्यकर्मों का आयोजन करवाता है या धार्मिक कार्यो में बढ़चढ़कर सहयोग करता है, जातक दान पुण्य खूब करता है, जातक अपने जीवन में निरंतर तरक्की करता चला जाता है।

नवम भाव से सूर्य बुध की मिथुन राशि यानि की पराक्रम भाव को देखता है, जो की जातक को बहुत परिश्रम करने वाला और पराक्रमी बनाता है और जातक अपने हौसले और म्हणत से जीवन में सफलता हासिल करता है।

मेष लग्न के दशम भाव में सूर्य

मेष लग्नस्थ कुंडली में पंचम सूर्य अगर दशम भाव यानि की शनि की राशि मकर में यानि की कर्म भाव में आ जाता है, तो जातक को जीवन में व्यापार, व्यवसाय या नौकरी में सफलता तो जरूर मिलती है लेकिन उसके लिए जातक को अपने जीवन में बहुत संघर्ष करने पड़ते है,
जातक राजनीती में भी सफलता प्राप्त करता है लेकिन उसके आस पास के लोग ही उसके दुश्मन होते है, उसे निचे करने में लगे रहते है,
अगर जातक कही नौकरी करता है तो उसे उसके ही सहकर्मी पसंद नहीं करते, जातक की अपने बॉस से अनबन बनी रहती है।

यहाँ का सूर्य जातक को बाधाएँ देते हुए सफलता देता है, जातक को दुर्घटनाओं का भी सामना करना पड़ सकता है। जातक बहुत क्रोधी हो सकता है, अपने कामों या ऑफिस के कामों में बिलकुल भी ढिलाई बर्दाश्त नहीं करता। जातक असहीष्णु होता है।

यहाँ से सूर्य अपनी सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव में स्तिथ चंद्र की कर्क को देता है, जो की जातक को माकन, भूमि, वाहन और माता का सुख प्रदान करता है, जातक अपनी बुद्धिमनी से राजकीय और व्यवसायिक क्षेत्रों में अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है।

मेष लग्न के एकादश भाव में सूर्य

मेष लग्न में पंचम स्वामी सूर्य अगर एकादश भाव यानि की लाभ भाव में शनि की कुम्भ राशि में विराजमान हो तो कारोबारी कार्यो में अधिक परिश्रम करना पड़ता है और की भी लाभ की हानि होती है, बड़े भाई बहनों के साथ संबंधो में कमी आती है,

सरकारी विभागों से लाभ लेने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है। यहाँ बैठा सूर्य सभी कार्यो के लिए लाभकारी तो रहेगा, लेकिन लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ अधिक परिश्रम करना पड़ेगा।

एकादश भाव में बैठा सूर्य अपनी पूर्ण दृष्टि अपनी ही सिंह राशि और अपने ही पंचम भाव को देता है, जो की संतान सुख देता है, विद्या और शिक्षा प्राप्त करवाता है, जातक कोअच्छा धन लाभ होता है, सरकारी संस्थानों से लाभ मिलता है।

मेष लग्न के द्वादश भाव में सूर्य

मेष लग्न की कुंडली में जब पंचम का स्वामी सूर्य द्वादश भाव यानि बारहवें भाव में बैठ जाये तो यह अच्छा नहीं माना गया है, यहाँ सूर्य हानि देता है, व्यर्थ के खर्चो में उलझाता है, नौकरी में डिमोशन के योग बनते है, कारोबारी नुकसान का कारक होता है, शारीरिक रोग उत्पन्न करता है, जातक को कोई न कोई परेशानियों में ढकेले रखता है और दुर्घटना का डर बना रहता है।

यहाँ सूर्य होने से जातक विदेश यात्रा या नौकरी तो करता है, पर परेशान रहता है वह विदेश जाने के बाद भी संतुष्ट नहीं हो पाता। संतान की तरफ से भी हनियां होने के अंदेशे बने रहते है।

मेष लग्न में स्तिथ द्वादश भाव का सूर्य अपनी सप्तम दृष्टि षष्ठम भाव में कन्या राशि पर डालता है, बुध की कन्या राशि सूर्य की मित्र राशि है , इसलिए सूर्य शत्रुओं पर विजय दिलवाता है, कर्जो से मुक्त करवाता है , लेकिन सूर्य जातक को मानसिक परेशानियां देता रहता है।

मेष लग्न में सूर्य का रत्न माणिक्य

यह तो हमने जाना मेष लग्न की कुंडली में सूर्य की स्तिथि, अब हम जानेंगे सूर्य के रत्न माणिक्य के बारे में ,
जब मेष लग्न में सूर्य कमजोर पड़ जाये, या पाप पीड़ित हो जाये तो यह आवश्यक हो जाता है की सूर्य का बल बढ़ाया जाये और सूर्य का बल माणिक्य धारण करने से बढ़ता है।

माणिक्य लाल रंग का रत्न है, यह रत्न खूबसूरत लाल, गुलाबी और हलके लाल रंग के साथ एक पारदर्शी और चिकना रत्न है,

माणिक्य धारण करने से राजनीती, आर्थिक, सरकारी कार्यालयों, सरकारी ठेकों और उच्च सरकारी नौकरियों में सफलता प्राप्त होती है।

माणिक्य मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न के जातक अपनी जन्म कुंडली में सूर्य की स्तिथि के अनुसार माणिक्य रत्न धारण कर सकते है। माणिक्य लगभग विश्व में सभी स्थानों में प्राप्त होता है, लेकिन बर्मा और श्रीलंका का माणिक्य सबसे उत्तम कोटि का होता है।

माणिक्य धारण

माणिक्य को हमेशा तांबे,सोने या अष्ठधातु की अंगूठी में जड़वाकर सोमवार को सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए, माणिक्य को अनामिका ऊँगली में धारण करना चाहिए।
धारण करने से पूर्व माणिक्य की पूजा और सूर्य मंत्रो का जाप अवशय करना चाहिए।

मन्त्र : ॐ सूर्याय नम:

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