लहसुनिया रत्न कौन सी उंगली में पहने? इसको लेकर काफी भ्रम रहता है, आइये जानकारी प्राप्त करते है की लहसुनिया किस उंगली में धारण करना सबसे श्रेष्ठ होता है।
लहसुनिया रत्न कौन सी उंगली में पहने?
केतु का रत्न लहसुनिया, जो की तुरंत अपने प्रभाव दिखाने वाला रत्न है, केतु एक ऐसा छाया ग्रह है, जो अगर आपकी कुंडली में शुभ है तो वह आपको अचानक से सफल बना सकता है, आपको अचानक से धनलाभ, संपत्ति, लॉटरी द्वारा धन या अन्य किसी भी साधन से धन लाभ दे सकता है,
व्यक्ति को अध्यात्म में बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है,
लेकिन थी इसके विपरीत अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु अशुभ है, तो वह एक ही झटके में सब कुछ ले भी जा सकता है, व्यक्ति को कंगाल बना सकता है, यहाँ तक की व्यक्ति को ऐसी स्तिथि में भी पंहुचा सकता है की व्यक्ति पाई पाई को मोहताज हो जाये,
इसलिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली में केतु एक अहम् भूमिका में होता है, जो की अपनी महादशा में तो अपने पूर्ण अच्छे या बुरे प्रभाव देता है।
इसलिए या जरुरी हो जाता है की केतु का रत्न अपनी कुंडली का बहुत अच्छी तरह से निरिक्षण करने के बाद ही धारण किया जाये।
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लहसुनिया रत्न
बहुत से लोगों का मानना रहता है की लहसुनिया कनिष्ठा या अनामिका उंगली में धारण किया जा सकता है,
लेकिन कनिष्ठा उंगली बुध की उंगली होती है, और बुध की राशि में केतु नीच का होता है, इसलिए बुध की उंगली लहसुनियां के लिए श्रेष्ठ नहीं है,
ऐसे ही अनामिका उंगली सूर्य की ऊँगली है, इसमें भी लहसुनिया धारण करना शुभ नहीं है, सूर्य और केतु से तो बहुत बुरे योगों का निर्माण होता है,
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इसलिए केतु का रत्न लहसुनिया हमेशा शनि की उंगली “मध्यमा” में ही धारण करना चाहिए, शनि और केतु का सामंजस्य रहता है, मध्यमा उंगली में लहसुनिया अपने पुरे प्रभाव देने में सक्षम होता है।
धारणकर्ता केतु के समस्त शुभ प्रभावों की प्राप्ति करता है।
लहसुनिया धारण करने का दिन
लहसुनिया की अंगुठी हमेशा चांदी में बनवानी चाहिए और शनिवार के दिन शाम को शुभ मुहूर्त देखते हुए धारण करना चाहिए।
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