केतु ग्रह
केतु ग्रह एक छाया ग्रह है, छाया ग्रह होने के बावजूद भी केतु के मानव जीवन पर बहुत प्रभावशाली शुभ अशुभ प्रभाव रहते है,
केतु एक आद्यात्मिक और रहस्यपूर्ण ग्रह है, अगर किसी जातक पर विशेष परिस्थितियों में केतु के प्रभाव हो तो वह व्यक्ति अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत ऊंचाइयों पर पहुंचता है,
केतु एक रहस्यपूर्ण ग्रह होने से यह व्यक्ति को रहस्यात्मक विषयों पर खोजकर्ता, किसी विषय पर गहन शिक्षा, तांत्रिक और साधक भी बनाता है।
केतु एक ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति के जीवन में अचानक परिवर्तन लाता है, अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु शुभ और योगकारक है तो केतु उसके जीवन में चमत्कारी रूप से उनत्ति और तरक्की लाता है,
वही अगर केतु किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ है तो केतु व्यक्ति को दरिद्र बनाने में भी समय नहीं लगाता,
कुंडली में केतु से कालसर्प दोष का भी निर्माण होता है, जो अपने शुभ या अशुभ प्रभावों से जातक के जीवन को प्रभावित करता है।
ऐसा नहीं है की केतु जिसकी कुंडली में अशुभ है तो उसका जीवन नष्ट हो जायेगा, अगर उचित समय पर केतु के उपाय कर लिए जाये तो केतु के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है।
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केतु की राशि
केतु ग्रह मीन राशि पर अपना स्वामित्व रखता है, वैसे तो मीन राशि ब्रहस्पति की राशि है, लेकिन मीन राशि पर केतु ग्रह का भी अधिकार है।
केतु की उच्च और नीच अवस्था
केतु ग्रह धनु राशि में उच्च का होता है और जब केतु धनु राशि के १५ अंशो पर होता है तो इसे परम उच्च का माना जाता है,
ऐसे ही जब केतु मिथुन राशि में होता है तो यहाँ यह नीच का हो जाता है और जब मिथुन राशि में ४ अंशों पर होता है तो यह अपनी परम नीचता पर माना जाता है।
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केतु का स्वाभाव
केतु को मलिन रूप का ग्रह माना गया है, फटे कपडे धारण करने वाला, तमोगुणी(चोरी, हत्या, बलात्कार, हिंसा, झूठ, फरेब,पाप करने वाला), वात प्रकृति, वायु तत्व, वृद्ध, रात में बलि, तीक्षण स्वाभाव का ग्रह माना गया है।
केतु के नक्षत्र
अश्विनी, मघा और मूल केतु ग्रह के नक्षत्र है।
केतु की मित्र और शत्रु राशियां
केतु की मित्र राशियों में मिथुन, कन्या, धनु, मकर और मीन आती है और कर्क और सिंह केतु की शत्रु राशियां है।
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केतु के मित्र और शत्रु ग्रह
ग्रहों से मित्रता की बात की जाये तो बुध, शुक्र और शनि केतु के मित्र ग्रह है , बृहस्पति के साथ समभाव है और मंगल, चंद्र और सूर्य केतु के शत्रु ग्रह है।
जब केतु वृष, धनु और मीन राशि में होता है तो यह बलवान होता है और अपने शुभ फल प्रदान करता है, ऐसा नहीं है की केतु एक क्रूर ग्रह है तो यह केवल अशुभ फल ही देगा, जब केतु कुंडली में योगकारक होता है तो यह अपने अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है।
केतु की दृष्टि
केतु जिस घर में होता है, वहां से पंचम, सप्तम, नवम और द्वादश भावों को यह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
केतु के प्रभाव
केतु जातक के शरीर में पावों और तलवों पर अपना अधिकार रखता है,
केतु द्वारा जातक के पांव, चर्म रोग, दुर्घटना, डर, बहुत अधिक परिश्रम, पेट के रोग, गर्मी, कुष्ठ रोग, षड्यंत्र, स्नायु रोग, बुरे स्वपन, अशुभ योग, मृत्यु, वातरोग का विचार किया जाता है,
इसके अलावा माता से सम्बन्ध, गुरु द्वारा बल ,संबंध और ज्ञान का भी केतु द्वारा ही विचार किया जाता है।
केतु की धातु
केतु सलेटी रंग के वस्त्र और वस्तुएं, शास्त्र, लोहा, लहसुनियां रत्न, नीलमणि धातुओं पर अपना अधिकार रखता है।
केतु के जातक पर शुभ अशुभ प्रभाव
केतु एक वृद्ध ग्रह होने से अपने शुभ और अशुभ प्रभाव किसी भी जातक पर ४८ वर्ष के बाद ही देना शुरू करता है।
केतु का रत्न
जब किसी जातक की जन्म कुंडली में केतु निर्बल या अशुभ होता है तब कुंडली का आंकलन करने के पश्चात केतु का रत्न लहसुनियां धारण करना लाभदायक होता है। लहसुनियां धारण करने से केतु के दुष्प्रभावों की कमी होती है।
कभी भी लहसुनियां धारण करने से पहले या देख लेना आवश्यक होता है की लहसुनियां में किसी प्रकार के दोष नहीं होने चाहिए, दोषयुक्त लहसुनियां अशुभ प्रभाव देता है,
लहसुनियां को कई नामों से जाना जाता है जैसे की वैदूर्य, बिल्ली की आंख, कैट्स ऑय, लहसुनियां देखने में बिल्ली की आंख जैसा दिखता है इसलिए इसे “विडालक्ष” भी बोला जाता है,
लहसुनियां काला, सफ़ेद, पीला, हरा, सुनहरा, धूम्रवर्ण रंगो में प्राप्त होता है, इसके ऊपर एक चमकदार सुनहरे रंग की धारी होती है जो चमकती है और जब इसे अंधेरे में देखा जाता है तो यह बिल्ली की आंख जैसा प्रतीत होता है।
लहसुनियां के दोष
लहसुनियां में कई प्रकार के दोष पाए जाते है, जिन्हें खरीदते समय आवशय ध्यान में रखना चाहिए जैसे की :-
1. जो लहसुनियां सुन्न पड़ता हो, यानि की उसमें चमक ना हो, ऐसा लहसुनियां पहनने से व्यक्ति के प्राण संकट में पड़ने की आशंका रहती है।
2. जिस लहसुनियां में जाल प्रतीत हो ऐसा लहसुनियां जीवनसंगिनी के लिए हानिकारक।
3. जिस लहसुनियां में लाल छींटे हो ऐसा लहसुनियां घर में कलह कराता है।
4. जिस लहसुनियां में लकीरें हो ऐसा लहसुनियां आँखों के लिए हानिकारक होता है।
5. जिस लहसुनियां में धब्बें हो ऐसा लहसुनियां दुश्मनों को हावी करता है।
6. जो लहसुनियां तड़का हुआ या टुटा हुआ हो ऐसा लहसुनियां अनिष्टकारी होता है।
7. जब भी लहसुनियां ख़रीदे उसकी बनावट सुन्दर, चिकनी और दागरहित होनी चाहिए, उसके कर का डोरा चमकदार और सीधा होना चाहिए।
लहसुनियां धारण करने के लाभ
लहसुनियां धारण करने से जातक के चेहरे पर तेज आता है, जातक पराक्रमी होता है, उसे सुख और आनंद का अनुभव होता है, उसके जीवन में धन, संपत्ति और संतान की वृद्धि होती है, लहसुनियां शत्रुओं पर विजय प्राप्त करवाता है, जातक को शस्त्र से चोट पहुंचने से बचाता है, दुःख और दरिद्रता का नाश करता है, शारीरिक रोगों को ख़त्म करता है।
प्राचीन समय के लोग लहसुनियां को बहुत सम्मान दिया करते थे, उनका ऐसा मानना था की लहसुनियां अशुभ घटनाओं का पूर्व में ही आभास करवा देता है, आने वाले शारीरिक रोगों का पूर्वाभास करवा देता है, त्वचा के रोगों को ख़त्म करता है।
केतु का रत्न लहसुनियां वात रोग, मूत्र के रोग, गठिया, अपच, अजीर्ण, बदहजमी, रक्तातिसार, बवासीर, मधुमेह, नपुंसकता, पित्तदोष, कफ रोगों को ख़त्म करता है।
लहसुनियां धारण करने के नियम
जब भी लहसुनियां धारण करना हो तो उसका वजन ६ कैरट से ऊपर का ही होना चाहिए, लहसुनियां को चांदी या पंचधातु की अंगूठी में धारण करना चाहिए, शनिवार की संध्या हो और अगर अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र हो तो यह योग और मुहूर्त बहुत श्रेष्ठ होगा,
लहसुनियां धारण करने के बाद वह ५ वर्षों तक अपने पूर्ण प्रभाव देता है, उसके बाद वह प्रभावहीन हो जाता है,
फिर या तो नया लहसुनियां धारण करना चाहिए या फिर उसी लहसुनियां को दोबारा प्राण प्रतिष्ठित कर सिद्ध करके धारण करना चाहिए
केतु का मंत्र
मंत्र: ॐ कें केतवे नमः
FAQ :-
जब किसी व्यक्ति के जीवन में केतु के अशुभ प्रभाव रहते है, उस व्यक्ति के जीवन में आकस्मिक दुर्घटनाएं, धन का नाश, शारीरिक रोग, आर्थिक हानियां, हड्डियों के रोग, चर्म रोग, घर में कलह का वातावरण, हॉस्पिटल और कोर्ट कचहरी के चक्कर पड़ने लगते है,
व्यक्ति का मानसिक संतुलन कमजोर होने लगता है, यहाँ तक की व्यक्ति डिप्रेशन में भी चला जाता है।
जब केतु जन्मपत्रिका में शुभ भावों में अपनी मित्र राशियों में होगा तो केतु अपने शुभ प्रभाव देता है,
जब केतु शुभ भाव में होकर वृश्चिक या धनु में उच्च का होकर बैठता है तो केतु अपने बहुत शुभ प्रभाव देता है, ऐसे जातक जीवन में अचानक उनत्ति करते देखे जा सकते है,
जब केतु तृतीय, पंचम, अष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में अपनी शुभ राशि में होगा तब भी केतु अपने बहुत शुभ परिणाम देता है
जब किसी व्यक्ति के जीवन में केतु के अशुभ प्रभाव रहते है, तब व्यक्ति को जीवन में असाध्य रोगों का सामना करना पड़ सकता है,
इसके अलावा आँखों के रोग, हड्डियों के रोग, एबॉर्शन, गुप्त रोग, बवासीर, गठिया-वात की बीमारी, लम्बी खांसी के रोग, नपुसंगता, पित्तदोष और कफ रोग दे सकता है।
कुंडली में जनित केतु के अशुभ प्रभावों को अपनी जन्मपत्रिका का विश्लेषण करके लहसुनियां धारण करके केतु के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है,
नित्य सुबह केतु के मंत्रो (ॐ कें केतवे नमः) का १ माला जाप करने से भी केतु के अशुभ प्रभाव शांत होते है,
गणेश जी की पूजा, सेवा और आराधना करने से भी केतु के अशुभ प्रभावों की शांति होती है।
अपनी कुंडली में केतु की स्तिथि के अनुसार केतु का दान जैसे की अनाज, लोहे की वस्तु, उड़द की दाल, झंडा, काजल, ऊनि कपडा, कम्बल, बछेड़ा, बकरी, काले तिल, तेल आदि का दान करने से, कुत्तों को रोटी खिलाने से और मंगलवार-शनिवार को उपवास रखने से भी केतु शांत होता है।
केतु की महादशा ७ वर्ष की होती है, अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु योगकारक है तो वह केतु की महादशा में बहुत उनत्ति करता है,
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु अशुभ है तो ऐसे जातक को केतु के उपाय करके केतु से अशुभ प्रभावों को कम करने चाहिए।