ग्रहों के सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए ग्रहों के मन्त्र और जप संख्या निर्धारित है, जिसके पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए उसका पालन करना जरुरी होता है।
किसी भी ग्रह को पूजा, शांति या रत्न धारण में उस ग्रह से सम्बंधित मंत्रो का जाप अनिवार्य होता है, तभी ग्रह पूजा या रत्न धरना में लाभ मिलता है,
रत्न धारण में भी ‘रत्न’ को सिद्ध और अभिमंत्रित करना आवश्यक होता है अन्यथा वह रत्न अप्रभावशाली होता है और ऐसे रत्न को धारण करने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होते, फिर चाहे वह रत्न कितना भी कीमती क्यों ना हो,
ग्रहों की शांति और उनके प्रभावों को बढ़ाने के लिए मन्त्र बहुत शक्तिशाली सिद्ध होते है, मंत्रो की शक्ति से बड़ी बड़ी मुसीबतों को भी बहुत हद तक ख़त्म किया जा सकता है, यहाँ तक की मंत्रो में इतनी शक्ति विद्ययमान रहती है की उनसे मुसीबतों को ख़त्म भी किया जा सकता है,
किसी भी व्यक्ति के जीवन में मंत्रों को तीन प्रकार से उपयोग में लाया जाता है, प्रथम है जन्म कुंडली में ग्रहों की निर्बलता या अनिष्टकारी होने पर उनके मंत्रो का जप करवाकर उनकी शांति या उनके प्रभाव को बढ़ाना,
दूसरा रत्न धारण के समय रत्नों को सिद्ध और अभिमंत्रित करने के लिए मंत्रो का जाप करना,
तीसरा होता है, स्वयं अपने ग्रहों की शांति या प्रभाव बढ़ाने के लिए मंत्रो का जाप करना।
हर ग्रह के मन्त्र जप की एक निर्धारित जप संख्या रहती है, ऐसे तो हम अपनी सुविधाअनुसार कितनी भी संख्या में मन्त्र जप कर लेते है जो की सही नहीं है।
आइये आज हम इसी विषय में जानकारी प्राप्त करते है की किसी ग्रह के कितने मंत्रो की संख्या निर्धारित है, जिसे जपने से ही व्यक्ति को सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होते है।
ग्रहों के मन्त्र और जप संख्या
ग्रह | रत्न | मन्त्र | जप संख्या |
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सूर्य | माणिक्य | ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः | 7,000 |
चंद्र | मोती | ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम: | 11,000 |
बुध | पन्ना | ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः | 9,000 |
ब्रहस्पति | पीला पुखराज | ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः बृहस्पतये नम: | 19,000 |
मंगल | लाल मूंगा | ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः | 10,000 |
शुक्र | हीरा | ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः | 21,000 |
शनि | नीलम | ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः | 23,000 |
राहु | गोमेद | ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः | 18,000 |
केतु | लहसुनियां | ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः केतवे नमः | 18,000 |
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