प्रणाम साथियों! आज के इस लेख में हम कुंडली के हिसाब से रत्न धारण की जानकारी प्राप्त करेंगे, हर किसी को रत्न धारण को लेकर बहुत दुविधा रहती है, कोई बोलता है राशि अनुसार रत्न धारण कर लो तो कोई बोलता है बहुत गुस्सा आता है तो मोती धारण कर लो,
लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है, रत्न ऐसे ही नहीं धारण कर लिए जाते है, रत्नों को धारण करने के भी जरुरी नियम है, उन्हीं नियमों के अनुसार ही रत्न धारण किये जाते है, नहीं तो व्यक्ति लाभ के बजाए मुसीबतें ही मोल ले लेता है और अपना कोई न कोई बड़ा नुकसान करवा बैठता है।
आज की इस पोस्ट में हम रत्न धारण के जो नियम बताने जा रहे है, उन्हीं के अनुसार ही रत्न धारण करें, कभी भी टीवी या समाचार पत्रों में कुछ भी बताए गए रत्न को उठा कर धारण ना करें, नहीं तो आप जीवन में बहुत बड़ा आर्थिक या शारीरिक नुकसान करवा सकते है।
रत्न
रत्न प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले बहुमूल्य पत्थर होते है, जैसे की नवरत्नों में माणिक्य, मूंगा, पन्ना, पुखराज, मोती, हीरा, नीलम, गोमेद , लहसुनियां और भी अन्य 84 रत्न, लेकिन ज्योतिषशास्त्र में नवरत्नों की मुख्य भूमिका है,
रत्न जब प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते है तो यह साधारण रंग बिरंगे पत्थर की तरह होते है, लेफिर इन्हें तराशकर और चमकाकर बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक बना दिया जाता है और तराशने के बाद इन्हीं रत्नों की कीमत बहुत अधिक से बहुमूल्य तक भी हो जाती है,
इन खूबसूरत रत्नों में ग्रहों के प्रभाव रहते है, हर ग्रह अपने रंग के अनुसार किसी एक रत्न आप अपना प्रभाव रखता है, जैसे की सूर्य ग्रह माणिक्य पर, बुध ग्रह पन्ना रत्न पर, चंद्र का मोती पर, लाल मूंगा पर मंगल का, ब्रहस्पति का पुखराज पर, शुक्र का हीरे पर, शनि का नीलम पर, छाया ग्रह राहु का गोमेद पर और छाया ग्रह केतु का लहसुनियां पर,
रत्नों में ग्रहों के प्रभाव के अलावा दैविये शक्तियों के प्रभाव और ऊर्जा भी निहित रहती है।
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क्यों धारण करते हैं रत्न?
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इन रत्नों का मानव जीवन पर बहुत प्रभाव रहता है, ग्रहों के प्रभाव और दैविये शक्तियों की वजय से इन रत्नों को व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों के कष्टों दूर करने और ग्रहों के बल को बढ़ाने के लिए धारण किया जाता है,
हर व्यक्ति अपने जीवन में अपने जन्म अनुसार ग्रहों से प्रभावित रहता है और जीवन के सुख, दुःख और कष्टों का भोग करता है, इसमें रत्न अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, ग्रहों द्वारा प्रभावित व्यक्ति इन्हीं रत्नों को धारण करके अपने जीवन के कष्टों को कम करते हुए एक सुखद जीवन की ओर बढ़ता है।
रत्नों का चलन आज से नहीं है, रत्नों को हजारों साल पहले से मनुष्य उपयोग करता रहा है, रत्नों की शक्तियों का अहसास मनुष्य को सदियों पहले ही हो गया था, देश हो या विदेश मनुष्य रत्नों से लाभ प्राचीन समय से ही करता आ रहा है।
प्राचीन समय के लोग अपने भाग्य वृद्धि और रक्षा के लिए इन्हीं रत्नों को अपने शरीर पर किसी ना किसी रूप में धारण किया करते थे, राजा- महराजा अपने राज्य की रक्षा और अपनी रक्षा के लिए रत्नों को धारण किया करते थे, सेनापति अपने हथियारों रत्नों को जड़वाया करते थे ताकि हमेशा दुश्मनों से परास्त ना हो।
रत्नों में इतनी शक्ति और ऊर्जा होती है की वे नकारात्मक ऊर्जाओं को सकारात्मक ऊर्जाओं को परिवर्तित कर देते है, नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने समीप नहीं आने देते, किसी अनहोनी या खतरे के संकेत पहले ही किसी ना किसी रूप में दे देते है।
आजकल तो रत्नों का उपयोग बहुत तरह से किया जाता है, आजकल रत्नों का उपयोग ज्योतिष के अलावा सुंदरता बढ़ाने और ज्वैलरी में भी उपयोग किया जाता है, लोग इन रत्नों का उपयोग सुन्दर सुन्दर ज्वैलरी और ब्रेसलेट के रूप में भी करते है।
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कुंडली के हिसाब से रत्न
आइये अब जानकारी प्राप्त करते है की कुंडली के हिसाब से रत्न कौन सा धारण करना चाहिए।
पहला – ज्योतिष और कुंडली के अनुसार जब कोई ग्रह हमारी कुंडली में शुभ होने के बावजूद बलहीन रहता है, किन्हीं पाप ग्रहों के प्रभाव में रहता है, सूर्य से अस्त रहता है या फिर कुंडली में नीच का होकर बैठा है,
तब ऐसी स्तिथि में उस प्रभावित ग्रह का रत्न धारण किया जाता है और उसके दबे हुए प्रभावों को रत्न धारण से बढ़ाया जाता है,
दूसरा – अपने लग्न के अनुसार रत्न धारण किया जाता है, हर जातक का अपना अलग लग्न रहता है, लग्न का स्वामी जातक के जीवन का भी स्वामी होता है, इसलिए लग्न के स्वामी का रत्न जीवन भर अपनी सुरक्षा और उनत्ति के लिए जरूर धारण करना चाहिए,
उदहारण के तौर पर मान लीजिये अपना “सिंह लग्न” अब सिंह लग्न का स्वामी ग्रह सूर्य हुआ, इसलिए सिंह लग्न के जातक का भाग्यशाली और रक्षक रत्न सूर्य का रत्न “माणिक्य” हुआ।
लग्नेश का रत्न जातक के जीवन में बहुत प्रभावकारी रहता है, लग्नेश का रत्न कभी भी नुकसानकारी नहीं होता है यह ज्योतिष का नियम है, लग्नेश रत्न जातक के जीवन में एक ढाल के रूप में कार्य करता है, इसलिए हर व्यक्ति को अपने जन्म लग्न का रत्न जरूर धारण करना चाहिए।
तीसरा – अपने लग्न के अनुसार पंचमेश यानि की पंचम भाव का रत्न धारण करना, पंचम भाव लग्न कुंडली का शुभ स्थान है, पंचम भाव हमारी बुद्धि, ज्ञान,शिक्षा, धन, उनत्ति, संतान और मांगलिक और शुभ कार्यो का स्वामी होता है,
पंचम भाव और उसके स्वामी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है इसलिए पंचम भाव के स्वामी का रत्न जरूर धारण करना चाहिए,
अगर कुंडली में पंचम भाव का स्वामी कमजोर या पीड़ित है तो ऐसी स्तिथि में जीवन में बहुत सी परेशानियां आनी शुरू हो जाती है, ऐसे में पंचम भाव स्वामी को मजबूत करने पंचम भाव के स्वामी का रत्न धारण करना बहुत जरुरी हो जाता है।
चौथा – अपने लग्न के अनुसार भाग्य स्थान यानि की नवम भाव के स्वामी का रत्न धारण करना, नवम भाग हमारे भाग्य का विधाता है, इसलिए नवम भाव का स्वामी हमारे जीवन का भाग्यविधाता हो जाता है, इसके अलावा नवम भाव हमारे जीवन में उच्च शिक्षा, कारोबार या नौकरी में उनत्ति, धन आगमन, देश विदेश की यात्रा या कारोबार और नौकरी, पैतृक संपत्ति आदि का भी स्वामी होता है,
नवम भाव के स्वामी का रत्न हर जातक को जरूर धारण करना चाहिए, नवम भाव का रत्न हमारे जीवन में बहुत सी उपलब्धियां, तरक्की और सुखी जीवन प्रदान करनेवाला होता है।
पांचवा – किसी भी व्यक्ति के जीवन में 3 भाव यानि की प्रथम, पंचम और नवम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होते है, यह तीनों भाव ही व्यक्ति के जीवन का निर्णय करते है, अगर यह तीन भाव मजबूत है तो व्यक्ति अपने जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति करता है, जीवन के हर सुख का भोग करता है,
इन तीनों भावों को मजबूत करने के लिए त्रिशक्ति लॉकेट धारण करना बहुत शुभ माना गया है, त्रिशक्ति लॉकेट लॉकेट में स्वयं भगवान विष्णु, लक्ष्मी और सरस्वती का वास माना गया है, त्रिशक्ति लॉकेट व्यक्ति को हर कार्य में उनत्ति प्रदान करता है, त्रिशक्ति लॉकेट धारण करने के बाद अन्य किसी भी रत्न को धारण करने की जरुरत नहीं पड़ती,
त्रिशक्ति लॉकेट का निर्माण प्रथम भाव, पंचम भाव और नवम भाव के स्वामी के रत्नों को मिलकर लॉकेट का निर्माण होता है,
त्रिशक्ति रत्नों को लॉकेट या अंगूठी का निर्माण करते हुए धारण किया जा सकता है।
छठा – ग्रह की महादशा – के अनुसार रत्न धारण, किसी भी व्यक्ति के जीवन में यह बहुत महत्वपूर्ण होता है की वर्तमान में किस ग्रह की महादशा चल रही है, वर्तमान ग्रह की महादशा व्यक्ति के जीवन पर अपना पूरा प्रभाव रखती है,
अगर अगर जन्म कुंडली में चल रही महादशा का स्वामी शुभ प्रभावों में है तो निश्चित तौर पर शुभ फलों की प्राप्ति होगी और अगर महादशा का स्वामी अस्त, कमजोर, नीच या पीड़ित है तो भी निश्चित तौर पर शुभ प्रभावों में बहुत असर पड़ेगा,
जहां शुभ ग्रहों की महादशा जातक को शीर्ष की ओर ले जाती है वही अशुभ ग्रह की महादशा बर्बादी भी कर देती है, अपने देखा होगा की कई बहुत तरक्की करते हुए व्यक्तियों की अचानक बर्बादी हो जाती है, यह ग्रहों की दशाओं के बदलने पर ही होता है,
इसलिए ग्रह दशा-महादशा के पूर्ण प्रभावों में व्यक्ति रहता है, अब देखना यह होता है की किस ग्रह की दशा-महादशा चल रही है और वह ग्रह किस स्तिथि में है, उसी के अनुसार रत्न धारण करना बहुत अनिवार्य होता है।
लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों, दशा-महादशा आदि का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। लग्न कुंडली के अनुसार कारक ग्रहों के (लग्न, पंचम, नवम) रत्न पहने जा सकते हैं। रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
सातवां – छाया ग्रह राहु और केतु का रत्न धारण- व्यक्ति की जन्म कुंडली में 9 ग्रहों के प्रभावों के अलावा 2 ऐसे छाया ग्रह (राहु -केतु) भी है जिनका कोई स्वरुप नहीं है, लेकिन उनकी छाया मात्र ही व्यक्ति के जीवन में पूरी तरह से उथल पुथल मचा देती है,
बड़े बड़े ग्रह सूर्य, चंद्र, शनि आदि भी उनसे बच नहीं पाते, कुंडली में राहु केतु की किस भाव में उपस्थिति है और इनकी महादशा का भी व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव रहता है, जहां राहु केतु की शुभ दशा व्यक्ति को राजा बना देती है तो वही इनकी अशुभ दशा भीख़ तक मंगवा देती है,
कुंडली के हिसाब से रत्न धारण में राहु का रत्न गोमेद और केतु का रत्न लहसुनियां भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,
लेकिन यह बहुत ही शुष्मता से अध्यन करना बहुत जरुरी होता है की कुंडली में राहु केतु शुभ भूमिका में है या अशुभ और राहु केतु की अशुभता को कैसे कम किया जाये,
यह निर्णय बहुत गहनता से लेने के बाद ही राहु केतु रत्न गोमेद और लहसुनियां धारण करना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।
लग्न (प्रथम भाव) का रत्न
क्रमांक | लग्न (प्रथम भाव) | रत्न |
---|---|---|
1. | मेष लग्न | लाल मूंगा |
2. | वृष लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
3. | कन्या लग्न | पन्ना |
4. | कर्क लग्न | मोती |
5. | सिंह लग्न | माणिक्य |
6. | कन्या लग्न | पन्ना |
7. | तुला लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
8. | वृश्चिक लग्न | लाल मूंगा |
9. | धनु लग्न | पीला पुखराज |
10. | मकर लग्न | नीलम |
11. | कुंभ लग्न | नीलम |
12. | मीन लग्न | पीला पुखराज |
पंचम भाव (उनत्ति) का रत्न
क्रमांक | लग्न | पंचम भाव (उनत्ति) रत्न |
---|---|---|
1. | मेष लग्न | माणिक्य |
2. | वृष लग्न | पन्ना |
3. | कन्या लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
4. | कर्क लग्न | लाल मूंगा |
5. | सिंह लग्न | पीला पुखराज |
6. | कन्या लग्न | नीलम |
7. | तुला लग्न | नीलम |
8. | वृश्चिक लग्न | पीला पुखराज |
9. | धनु लग्न | लाल मूंगा |
10. | मकर लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
11. | कुंभ लग्न | पन्ना |
12. | मीन लग्न | मोती |
नवम भाव (भाग्य) का रत्न
क्रमांक | लग्न | नवम भाव (भाग्य) रत्न |
---|---|---|
1. | मेष लग्न | पीला पुखराज |
2. | वृष लग्न | नीलम |
3. | कन्या लग्न | नीलम |
4. | कर्क लग्न | पीला पुखराज |
5. | सिंह लग्न | लाल मूंगा |
6. | कन्या लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
7. | तुला लग्न | पन्ना |
8. | वृश्चिक लग्न | मोती |
9. | धनु लग्न | माणिक्य |
10. | मकर लग्न | पन्ना |
11. | कुंभ लग्न | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
12. | मीन लग्न | लाल मूंगा |
किस दिन कौन सा रत्न धारण करें
क्रमांक | दिन | रत्न |
---|---|---|
1. | सोमवार | मोती |
2. | मंगलवार | लाल मूंगा |
3. | बुधवार | पन्ना |
4. | गुरुवार | पीला पुखराज |
5. | शुक्रवार | हीरा या सफ़ेद जिरकॉन |
6. | शनिवार | नीलम, गोमेद और लहसुनियां |
7. | रविवार | माणिक्य |
धन्यवाद साथियों ! उम्मीद है की आपको इस लेख “कुंडली के हिसाब से रत्न” पढ़कर जानकारी प्राप्त हुई होगी की व्यक्ति को कौन सा रत्न धारण करना चाहिए, जिससे की उसके जीवन में सुख शांति और उनत्ति आए।