जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग या विदेश में बसना यह व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्तिथि और नवम,दशम और बारहवें भावों की स्तिथियों पर मुख्य रूप से आधारित होती है।
जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग-जन्म कुंडली, ग्रह और भाव
लगभग हर व्यक्ति की विदेश यात्रा या विदेश में बसने की इच्छा होती है, जिसमें कई व्यक्ति तो बड़ी आसानी से विदेश विदेश यात्रा कर आते है या फिर विदेश में बस जाते है और कई व्यक्ति तो विदेश जाने के लिए केवल प्रयास ही करते रह जाते है, लेकिन जा नाही पाते,
लेकिन यह समझना बहुत जरुरी होगा की विदेश यात्रा किसी व्यक्ति के अपने वश की बात नहीं है, यह व्यक्ति के भाग्य और जन्म पत्रिका में ग्रहों की दशाओं के अनुसार ही तय होता है,
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योगों का निर्माण होता है तो उसके जीवन में विदेश जाने या बसने का कोई न कोई बहाना बन जाता है और अगर योग नहीं बनते तो व्यक्ति जीवन भर प्रयास ही करता रहता है लेकिन उसके विदेश योग नहीं बन पाते।
आइये आज की इस पोस्ट से हम यही जानेंगे की जन्म कुंडली के किन योगों और ग्रहों की स्तिथियों के अनुसार व्यक्ति की जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग बनते है।
Read Also: आपका भाग्यशाली रत्न
जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग/स्तिथियां
1. जन्म पत्रिका में विदेश यात्रा के लिए या विदेश में बसने के लिए बारहवें भाव का बहुत महत्त्व होता है, बारहवें भाव से विदेश यात्रा और विदेश में बसने के अवसरों का मुख्य रूप से आंकलन किया जाता है।
2. विदेश यात्रा के लिए कुंडली में चंद्र ग्रह की मुख्य भूमिका रहती है, विदेश यात्राओं के लिए कुंडली में चंद्र की भूमिका और स्तिथि मुख्य रूप से विदेश भ्रमण का कारण बनती है।
3. जन्म कुंडली में विदेश यात्रा में बारहवां भाव, दसवां भाव, चंद्र और शनि की स्तिथियां विदेश यात्रा और विदेश में बसने का कारण बनती है, इन भावों और ग्रहों की शुभ स्तिथियां या अशुभ और नीच की स्तिथियां विदेश यात्रा के योगों का निर्माण करती है।
4. जन्म कुंडली में अगर चंद्र बारहवें भाव में हो तो जातक के विदेश यात्रा या विदेश से आजीविका के काफी मजबूत योग बनते है।
चंद्र की छठे भाव में उपस्थिति भी विदेश यात्रा के योगों का निर्माण करती है।
Read Also: चेहरे की सुंदरता कैसे बनाये रखें
5. अगर किसी जन्म कुंडली में चंद्र दशम भाव में बैठा ही और उसपर शनि की दृष्टि पड़ती हो तब ऐसी स्तिथि विदेश ले जाती है।
6. लग्न और सप्तम भाव में बैठा चंद्र विदेश से व्यापारिक या जॉब के संबंध स्थापित करवा सकता है।
7. शनि ग्रह को व्यक्ति की आजीविका का ग्रह माना गया है और चंद्र को विदेश यात्रा का, अगर किसी कुंडली में शनि और चंद्र की युति बनती हो तो यह विदेश से आजीविका और विदेश यात्रा के योगों का निर्माण कारवती है।
8. दशम और बारहवां भाव विदेश से संबंध दर्शाता है, अगर किसी कुंडली में बारहवां भाव भाव का स्वामी दशम में और दशम भाव का स्वामी बारहवां भाव में बैठा हो तो यह योग व्यापार-जॉब और विदेश का योग बन जाता है,
ऐसे योग में व्यक्ति की आजीविका में विदेश का हस्तक्षेप होता है और कमाई का जरिया बनता है।
9. जन्म कुंडली के नवम भाव यानी की भाग्य का स्वामी बारहवें भाव में बैठा हो या फिर बारहवें भाव का स्वामी भाग्य स्थान यानि की नवम भाव में बैठ जाये, यह योग भी विदेश से संबंध और योग दर्शाता है।
10. भाग्य स्थान में बैठा राहु भी दूर की यात्रा यानि की ब्रहमण के योगों को बढ़ाता है।
11. जन्म पत्रिका में सप्तम भाव और बारहवें भाव के स्वामियों का आपसी परिवर्तन भी विदेश यात्राओं की संभावनाओं को बढ़ाता है, जातक विदेश से व्यापार या नौकरी से जुड़ा हुआ हो सकता है।
Read Also:
नीलम पहनने से क्या लाभ होता है?
नीलम कौन सी उंगली में धारण करना चाहिए?
नीलम ! इस रत्न को धारण करने से बदल सकती है आपकी किस्मत।
ब्लू सफायर(नीलम ) की विशेषता,धारण करने से लाभ एव धारण विधि