आदित्य हृदय स्तोत्र आपका जीवन बदल देगा

आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य का पाठ है, सूर्य देवता के इस पाठ को नित्य करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर होते है, व्यक्ति को जीवन में करियर में सफलता, संतान सुख, आर्थिक सफलता और प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य कमजोर, पाप पीड़ित या अशुभ हो तो इस पाठ को करने से सूर्य के सभी दुष्प्रभाव ख़त्म होते है। अगर व्यक्ति आदित्य स्तोत्र पाठ को नित्य करता है तो उसके जीवन में कभी कष्ट नहीं आते।

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आदित्य स्तोत्र पाठ को पूरी एकाग्रता के साथ ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए, जीवन के सभी कलेश ख़त्म होते है, रोग उत्पन्न नहीं होते, व्यक्ति का बल और बुद्धि तेज होती है।

अगर किसी स्त्री को संतान प्राप्ति में कष्ट हो रहा हो या संतान प्राप्ति में देर हो रही हो तो सूर्य देव के इस पाठ को करने से उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। अगर वैवाहिक जीवन में कष्ट हो, फसाद रहते हो तो श्रद्वापूर्वक यह यह पाठ करने से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है।

जो व्यक्ति नित्य 11 आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करता है वह जीवन में सदैव सुखी रहता है।

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आदित्य हृदय स्तोत्र

विनियोग
ॐ अस्य श्री आदित्य स्तोत्रस्य आंगिरस ऋषि:
त्रिष्टुप् छन्दः, सूर्यो देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः ।

नवग्रहाण सर्वेषां सूर्यादीनां पृथक्-पृथक्।
पीडा च दुःसमा राजन् जायते सततं नृणाम्॥

पीडा नाशाय राजेन्द्र नमामि शृणु भास्वतः ।
सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति शृग्वतः॥

आदित्यः सविता सूर्यः पूषाऽर्कः शीघ्रगो रविः ।
भगस्त्वष्टाऽर्यमा हंसो हेलिस्तेजोनिधिर्हरिः ॥

दिननाथो दिनकर : सप्तसप्तिः प्रभाकरः ।
विभावसुर्वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहनः॥

हरिदश्वः कालवक्त्रः कर्मसाक्षी जगत्पतिः ।
पद्मिनीबोधको भानुर्भास्करः करुणाकरः॥

द्वादशाऽत्मा विश्वकर्मा लोहितांगः स्तमोनुदः ।
जगन्नाथोऽरविन्दाक्षः कालात्मा कश्यपात्मजः॥

भूताश्रयो ग्रहपतिः सर्वलोक नमस्कृतः ।
जपा कुसुम संकाशो भास्वान दितिनन्दनः ॥

ध्वान्तेभसिंहः सर्वात्मा सर्वनेत्रो विकर्तनः ।
मार्तण्डो मिहिरः सूरस्तपनो लोकतापनः ॥

जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जयः ।
धन्वन्तरि व्याधिहर्ता दद्रु कुष्ठ विनाशनः ॥

चराऽचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णुर्विकर्तनः ।
लोकशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभूः॥

नारायणो महादेवो रुद्रः पुरुष ईश्वरः ।
जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुखः ॥

इंद्रोऽनलो यमश्चैव नैर्ऋतो वरुणोऽनिलः ।
श्रीदः ईशान इन्दुश्च भैमः सौम्यो गुरुः कविः ॥

शौरिर्विधुन्तुदः केतुः कालः कालात्मको विभुः ।
सर्वदेवमयो देवः कृष्ण: काम प्रदायकः ॥

य एतैर्नामभिर्मर्त्यो भक्त्या स्तौति दिवाकरम्।
सर्वपाप विनिर्मुक्तः सर्वरोग विवर्जितः ॥

पुत्रवान् धनवान् श्रीमान् जायते स न संशयः ।
सूर्यवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वतः ॥

पीडाशान्ति भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषतः ।
सद्य सुखमवाप्नोति चायुदीर्घं च नीरुजम्॥

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