सूर्य उपासना और सूर्य मंत्रो द्वारा शांति

किसी भी जातक के जीवन में सूर्य के विशेष प्रभाव रहते है। जन्म कुंडली में सूर्य का शुभ होना जरुरी होता है नहीं तो जातक के जीवन में ग्रहण लग जाता है, पितृ दोष निर्मित हो जाता है, सूर्य अशुभ और पीड़ित हो जाते है। ऐसे में सूर्य उपासना और सूर्य मंत्रो द्वारा शांति जरुरी हो जाती है।

सूर्य उपासना और सूर्य मंत्रो द्वारा शांति

नवग्रहों के राजा सूर्य देव है, नवग्रहों में सूर्यदेव का प्रथम स्थान है, सूर्य की ऊर्जा से ही सभी ग्रह बल प्राप्त करते है। नवग्रहों में सूर्य का महत्त्व सबसे अधिक है। सूर्य देव सभी धर्मो के आराध्य भी है। सूर्य की आराधना करने वाले जातक को सुख, सौभाग्य, प्रसिद्धि, संतान प्राप्ति और संपन्ता की प्राप्ति होती है। सूर्य देव 7 अश्वों वाले रथ पर सवार रहते है।

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सूर्य देव को जातक की उनत्ति, आत्मविश्वास और भावुकता पर अपना नियंत्रण रखते है और जातक के नेत्र, रक्तः, हड्ड़ी, दांत और कान पर अपना अधिकार रखते है। जब किसी जातक पर सूर्य के अशुभ प्रभाव होते है तो उस जातक को इन्हीं से सम्बंधित कष्ट उठाने पड़ते है।

जन्म कुंडली में सूर्य के प्रभाव

अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य उसकी राशि यानि की चंद्र से तीसरे, छठे, दसवे और ग्यारहवें स्थान पर बैठे हो तो वह जातक बहुत शुभ फल प्रदान करते है। यश, कीर्ति, सम्मान, धन, पारिवारिक सुख, संतान सुख और कार्य सिद्धि का सुख प्रदान करते है।

जिन जातकों की जन्म कुंडली में सूर्य प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्ठम, नवम और द्वादश भाव में स्तिथ रहते है, ऐसे जातकों को धन की हानि, रोग, डर, शोक, अग्नि से कष्ट और विदेश यात्रा के प्रभावों का सामना करना पड़ता है।

इसलिए ऐसी स्तिथि में सूर्य के उपाय करने जरुरी होते है। ऐसे में सूर्य उपासना और सूर्य मंत्रो द्वारा शांति की जानी चाहिए।
आइये जानते है सूर्य के पुराणोक्त-वेदोक्त और तंत्रोक्त मन्त्र, जिनके जप से सूर्य की पीड़ा से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

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पुराणोक्त सूर्य मंत्र

जपा कुसुम कुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम् ।
तमोऽरिचर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥

वेदोक्त सूर्य मंत्र

वेदोक्त सूर्य मंत्र का विनियोग इस प्रकार है-
ॐ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः,
सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

वेदोक्त सूर्य मंत्र-

ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।।

तंत्रोक्त सूर्य मंत्र-

१. ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।
२. ॐ जुं सः सूर्याय नमः ॥

ऊपर बताए गए पुराणोक्त, वेदोक्त और तंत्रोक्त सूर्य मंत्रो में से कोई भी एक मन्त्र का 7 हजार की संख्या में जाप करना चाहिए। जाप के लिए 108 रुद्राक्ष के दाने युक्त की माला सबसे सर्वोत्तम रहेगी। अन्य माला में से आप तुलसी अथवा चन्दन की माला भी उपयोग कर सकते है। मन्त्र अगर स्वयं करें तो बहुत लाभकारी होता है अगर नहीं कर सकें तो किसी अच्छे पंडित से भी करवा सकते है।

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इन मंत्रो के जाप से जीवन के सभी कष्ट दूर होते है, जातक की प्रसिद्धि बढ़ती है, आर्थिक उनत्ति होती है, रोग दूर होते है, पारिवारिक कलह ख़त्म होती है और संतान उनत्ति करती है।

सूर्य गायत्री मंत्र

सूर्य गायत्री मंत्र आत्म शुद्धि के लिए किया जाता है। यह मन्त्र जीवन में सुख शांति लाता है। निचे बताए गए सूर्य गायत्री मंत्र में से कोई भी एक किया जा सकता है।

१. ॐ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
२. ॐ सप्त तुरंगाय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ॥

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सूर्यार्घ्य

सूर्यार्घ्य मतलब सूर्य देव को जल अर्पित करना। रोज नित्य सूर्योदय में सूर्य देव को सूर्यार्घ्य (जल अर्पित) करने से जीवन की सभी मंगलकामनाओं की पूर्ति होती है। व्यक्ति के जीवन से दुःखों का नाश होता है। बल और बुद्धि के साथ उनत्ति, तरक्की और धन लाभ होता है।

सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तांबे के लोटे में शुद्ध जल लें, जल में लाल पुष्प, चन्दन, अक्षत और दूध मिलाकर चढ़ते सूर्य को अर्ध्य दें। साथ ही निचे बताए गए अर्घ्य मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

अर्घ्य मंत्र-
एहि सूर्य ! सहस्रांशो तेजोराशि जगत्वते। करुणाकर मे देव गृहाणार्घ्य नमोस्तु ते॥

सूर्य व्रत

सूर्य देव के शुभ फल और कृपादृष्टि प्राप्त करने के लिए सूर्य व्रत का अपना अलग महत्त्व है। सूर्य व्रत करने से जीवन में सुख शांति, कष्टों का नाश, संतान लाभ, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। सूर्य व्रत रविवार के दिन किया जाता है।

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