सभी ग्रहों के अपने विशेष यंत्र होते है, यंत्र ग्रहों की शांति और शुभ प्रभावों को प्राप्त करने के लिए धारण किये जाते है, आज हम सूर्य यंत्र का स्वरुप और महत्त्व जानेंगे।
सूर्य उपासना और सूर्य मंत्रो द्वारा शांति
मंत्रों और यंत्रों दोनों का अपना अपना विशेष महत्त्व है। जहां मंत्रों का स्वरुप नहीं होता है वहीं यंत्रों का स्वरूप होता है। मंत्रों का उच्चारण करना होता है वही यंत्रों को धारण किया जाता है, यंत्रों की आकृति होती है।
यंत्रों के स्वरुप रेखा द्वारा, आकृति द्वारा अथवा संख्या द्वारा दिए जाते है। कुछ ऐसे यंत्र भी होते है जिनमें बीजाक्षरों का प्रयोग भी किया जाता है। बीजाक्षर देवी-देवताओं और ग्रहों के सम्पूर्ण मंत्र होते है।
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सूर्य यंत्र
सूर्य यंत्र का स्वरुप और महत्त्व इतना है की अगर इसे विधिपूर्वक बनवाकर धारण किया जाये, तो सूर्य गृह के समस्त दोष दूर होते है और जीवन में शुभ प्रभावों की वृद्धि होती है।
सूर्य यंत्र को बनवाकर रविवार के दिन सूर्योदय के बाद सूर्य यंत्र की शुद्धि, पूजा अर्चना और सूर्य के मंत्रों के जाप के बाद धारण करना चाहिए। सूर्य यंत्र आपके जीवन में एक सुरक्षा कवच की तरह कार्य करेगा और आपको जीवन के सभी कष्टों से दूर करेगा।

सूर्य यंत्र धारण विधि
अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य के अशुभ प्रभाव है, सूर्य नीच का होकर बैठा है, सूर्य पाप प्रभावित है या सूर्य शनि, राहु-केतु से दृष्ट या युति में है ऐसे व्यक्ति को सूर्य यंत्र गले में धारण करना चाहिए। सूर्य के अशुभ प्रभाव दूर होते है और सूर्य बलशाली होते है।
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जब भी आप सूर्य यंत्र बनवाते है तो इसे सोने या चांदी में बनवाना चाहिए, सूर्य यंत्र को गले में लॉकेट के रूप में धारण किया जाना चाहिए। जब भी आप सूर्य यंत्र का निर्माण करवाते है तो सूर्य यंत्र में एक छोटा सा २ कैरट का माणिक्य जरूर जड़वाना चाहिए तभी सूर्य यंत्र अपने पूर्ण प्रभावों में कार्य करेगा।