साथियों पिछली पोस्ट में हमने जाना की अगर किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य देव विराजमान है तो क्या वह माणिक्य धारण कर सकता है। आइये इस पोस्ट में हम जानेंगे जन्म कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य और माणिक्य धारण।
जन्म कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य और माणिक्य धारण
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य दूसरे भाव में बैठे है तो क्या माणिक्य धारण किया जा सकता है। तो साथियों यह तय आपका कौन सा लग्न है उसके अनुसार तय किया जाता है।
वैसे दूसरे भाव में बैठा सूर्य शुभ माना गया है, दूसरे भाव का सूर्य शासकीय सेवाओं से लाभ प्रदान करता है। मेडिकल क्षेत्रों में भी सफलता प्रदान करता है, लेकिन धन को लेकर खर्च अधिक करवाता है।
सूर्य तो दूसरे भाव में बैठे है लेकिन लग्न हर व्यक्ति का अलग है। आइये लग्न अनुसार जाने जन्म कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य और माणिक धारण।
मेष लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
मेष लग्न में सूर्य पंचमेश यानि की पंचम भाव के स्वामी बनते है। पंचम भाव शुभ होता है, ऐसे में दूसरे स्थान में बैठे सूर्य व्यक्ति को शिक्षा में उनत्ति, मांगलिक कार्यो की संपन्ता , कारोबार नौकरी में सफलता देगा।
क्योंकि दूसरे भाव में बैठा सूर्य अपने परम शत्रु शुक्र की वृष राशि में है, इसलिए सूर्य को बल देने के लिए माणिक्य जरूर धारण करना चाहिए।
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वृष लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
वृष लग्न की कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव यानि की धन, संपत्ति, घर-मकान और वाहन के स्वामी हुए। वृष लग्न में सूर्य दूसरे भाव में बुध की मिथुन राशि में विराजमान होते है जो की शुभ स्तिथि है।
इसलिए यहाँ सूर्य आपको शुभ लाभ प्रदान करेंगे और आपको धन, वाहन, घर-मकान और संपत्ति का सुख प्रदान करेंगे।
अगर आप माणिक्य धारण करने के इच्छुक हो तो वृष लग्न के जातक सूर्य की महादशा में माणिक्य धारण करके परिक्षण कर सकते है।
मिथुन लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
मिथुन लग्न में सूर्य तीसरे भाव के स्वामी हुए क्योंकि सिंह राशि तीसरे भाव में है और सूर्य स्वयं दूसरे भाव में अपनी मित्र राशि कर्क में विराजमान है। ऐसे में सूर्य परिश्रम करवाते हुए सफलता और धन लाभ करवाते है।
मिथुन लग्न और दूसरे भाव में सूर्य शुभ फल प्रदान करने वाले होते है, उन्हें अपना कार्य करने दें लेकिन माणिक धारण ना करें।
कर्क लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
कर्क लग्न में सूर्य दूसरे भाव के स्वामी होते है और स्वंय सूर्य भी दूसरे ही भाव में विराजमान है। यह योग बहुत शुभ है ऐसा सूर्य जातक को जीवन में बहुत सफलता और धन धान्य से परिपूर्ण करता है।
कर्क लग्न और दूसरे भाव में सूर्य और अगर सूर्य अपने बल में कमजोर हो या राहु केतु, शनि से पीड़ित हो तो माणिक्य धारण करना लाभकारी होगा।
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सिंह लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य स्वयं लग्नेश हुए और सूर्य दूसरे यानि की धन भाव में बैठे है। यह योग भी बहुत उत्तम और धनदायक योग बनता है। ऐसे सूर्यदेव जातक को जीवन में बहुत सफलता और प्रसिद्धि प्रदान करते है। जातक की आर्थिक स्तिथि बहुत मजबूत होती है, सरकार और सरकारी क्षेत्रों से दूसरे भाव का सूर्य बहुत लाभ देता है।
इसलिए सिंह लग्न और दूसरे भाव में सूर्य हो तो माणिक जरूर धारण करना चाहिए।
कन्या लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
कन्या लग्न की कुंडली में सूर्य शुभ नहीं होते है। कन्या लग्न के दूसरे भाव में सूर्य नीच के हो जाते है। सावधान रहें, सूर्य व्यय , खर्चे और परेशानियों के स्वामी बनते है। यहाँ सूर्य जातक के धन की हानी और खर्चे करवाते है, परेशानियों में डालते है।
कन्या लग्न और दूसरे भाव में सूर्य में सूर्य हो तो माणिक कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। सूर्य के मंत्रो का जाप करें, पाठ करें उनकी आराधना करें।
तुला लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
तुला लग्न में सूर्य जातक के जीवन के लाभों को कंट्रोल करते है। अगर लाभ का स्वामी स्वयं दूसरे यानि की धन भाव में बैठा है तो वह आपको बहुत धन प्रदान करेगा। आपको जीवन में बहुत अच्छी आर्थिक तरक्की प्रदान करेगा। तुला लग्न और दूसरे भाव में सूर्य बहुत शुभ है।
लेकिन आप सूर्य के रत्न माणिक्य को धारण नहीं कर सकते। क्योंकि आप अपने परम शत्रु के लग्न में है, इसलिए सूर्य देव को अपने लाभ प्रदान करने दें और माणिक्य धारण ना करें।
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वृश्चिक लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
वृश्चिक लग्न में सूर्य आपके कारोबार, नौकरी और राजनीति के स्वामी हुए। वृश्चिक लग्न के जातकों के जीवन में सूर्य की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। हो भी क्यों ना भई आपके कारोबार के स्वामी सूर्य दूसरे (धन स्थान) में बैठे है, यानि की कारोबार और नौकरी से खूब धन लाभ, प्रसिद्धि मिलेगी।
वृश्चिक लग्न और दूसरे भाव में सूर्य हो तो माणिक्य जरूर धारण करें।
धनु लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
धनु लग्न में सूर्य भाग्येश हुए यानि की नवम भाव के स्वामी। योग तो बहुत सुन्दर है, भाग्य के स्वामी धन भाव यानि की दूसरे भाव में बैठे है। लेकिन यहाँ सूर्य दूसरे भाव में अपने परम शत्रु शनि की राशि में बैठ कर बहुत कमजोर पड़ गए है।
इसलिए अगर धनु लग्न और दूसरे भाव में सूर्य है तो जीवन भर के लिए माणिक्य धारण करना होगा, अन्यथा नुकसान ही नुकसान है।
मकर लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
मकर लग्न में सूर्य की सिंह राशि अष्ठम भाव में है और सूर्य स्वयं भी दूसरे भाव में शनि की कुंभ राशि। मतलब कष्ट, परेशानी और बीमारी। इसलिए माणिक्य कभी भी धारण ना करें अन्यथा बीमारी और परेशानियां बढ़ जायेंगे। केवल सूर्य देव की पूजा और आराधना करें।
कुम्भ लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
कुम्भ लग्न में सूर्य सप्तम भाव के स्वामी हुए और स्वयं दूसरे (धन भाव) में बैठे है। धन और कारोबार के लिए योग अच्छा है। वैवाहिक जीवन पत्नी की सेहत के लिए ठीक नहीं है।
इसलिए कुम्भ लग्न और दूसरे भाव में सूर्य है तो माणिक्य धारण ना करें।
मीन लग्न और दूसरे भाव में सूर्य
मीन लग्न में सूर्य की सिंह राशि छठे भाव में होकर सूर्य स्वयं दूसरे भाव में बैठे है। इस लग्न में बैठे सूर्य उच्च के है। उच्च के तो जरूर है लेकिन जिस डिपार्टमेंट को सूर्य कंट्रोल कर रहे है वह अच्छा नहीं है। यानि की छठा भाव जो की ऋण और रोग का स्वामी है, इसलिए कही ऐसा ना हो की सूर्य देव आपको ऋण और रोग भी उच्च की मात्रा में दे डालें।
इसलिए मीन लग्न और दूसरे भाव में सूर्य हो तो माणिक्य धारण ना करें।