अगर जातक की कुंडली में सूर्य प्रथम भाव में सूर्य विराजमान है तो क्या सूर्य का रत्न माणिक्य धारण किया जा सकता है। आइये इस पोस्ट में हम यही जानकारी प्राप्त करते है की प्रथम भाव में सूर्य और माणिक्य धारण।
प्रथम भाव में सूर्य और माणिक्य धारण
लग्न यानी की प्रथम भाव में बैठा सूर्य जातक को क्रोधी बनाता है। वैवाहिक सुख में बाधा देता है। जातक को जीवन में प्रसिद्धि प्रदान करता है और जातक को उच्च पद की प्राप्ति भी करवाता है।
प्रथम भाव में सूर्य जहां जातक को प्रसिद्धि और तरक्की देता है वही प्रथम भाव का सूर्य वैवाहिक जीवन में कमियां भी करता है।
लग्न अनुसार प्रथम भाव में सूर्य
मेष लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
अगर मेष लग्न की कुंडली है तो सूर्य की सिंह राशि पंचम भाव में हुई, यानि की सूर्य पंचमेश हुए और पंचम भाव का स्वामी सूर्य लग्न में बैठा है तो निश्चित रूप से जातक को माणिक्य धारण करने से बहुत प्रसिद्धि और तरक्की मिलेगी, संतान बहुत योग्य होगी, जातक के जीवन में लक्ष्मी और विद्या का वास रहेगा, जातक को जीवन में बहुत धन लाभ होगा।
वृष लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
वृष लग्न में सूर्य की सिंह राशि चतुर्थ भाव में होगी। यानि की सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी हुआ। सूर्य का केंद्र का स्वामी होने से यह जातक के लिए लाभकारी ही होगा, जातक के जीवन में धन संपत्ति का सुख होगा।
लेकिन वृष लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में बैठा सूर्य अपने परम शत्रु वृष राशि में होगा जो की जातक को सामाजिक तौर पर बदनामी दे सकता है। ऐसे व्यक्तियों को लोग पसंद नहीं करते है। उसके जीवन में धन संपत्ति का आना जाना लगा रह सकता है। जातक को उसके कार्यक्षेत्र में पसंद नहीं किया जाता है।
वृष लग्न के प्रथम भाव में सूर्य होने से जातक केवल सूर्य, मंगल, चंद्र और बृहस्पति की महादशा में माणिक्य धारण करके परिक्षण कर सकता है।
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मिथुन लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
मिथुन लग्न की कुंडली में सूर्य तृतीय भाव का स्वामी हुआ। यहाँ लग्न में बैठा सूर्य जातक के पराक्रम और मेहनत में वृद्धि करेगा। जातक बहुत साहसी होगा। बड़े कार्यो को अंजाम देने वाला होगा।
लेकिन ज्योतिष में तृतीय भाव को अशुभ स्थान माना गया है, इसलिए लेकिन अगर मिथुन लग्न के जातक माणिक्य धारण करना चाहते है तो केवल सूर्य की महादशा में माणिक्य धारण करके परिक्षण कर सकते है।
कर्क लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
कर्क लग्न की कुंडली में सिंह राशि दूसरे भाव में हुई यानि की सूर्य दूसरे(धन भाव) का स्वामी हुआ और सूर्य खुद प्रथम भाव में विराजमान है। स्तिथि तो शानदार बनती है। ऐसे व्यक्ति साशन करने वाले होते है, धनि होते है, बड़े कारोबारी, नौकरी में उच्च पदों पर आसीन होते है।
इसलिए कर्क लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो माणिक्य धारण किया जा सकता है।
सिंह लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
अब आप ही बताइए सिंह लग्न हो और लग्न का स्वामी सूर्य खुद लग्न में बैठा है तो यह कितना सुंदर योग बनता है। ऐसे व्यक्ति प्रसिद्ध होते है, दीर्घायु होगा, निरोगी होगा, नामी होते है, बड़े पदों पर आसीन होते है। जीवन में बहुत तरक्की करते है।
इसलिए सिंह लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो माणिक्य आवश्य धारण करना चाहिए।
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कन्या लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
कन्या लग्न की कुंडली में सिंह राशि द्वादश भाव में हुई यानि की सूर्य द्वादश भाव का स्वामी हुआ जो की जातक को जीवन में परेशानियों के अलावा कुछ नहीं देगा। जातक के जीवन की जितनी भी समस्याएं है चाहे वह पारिवारिक हो, आर्थिक हो, धन की हो, सेहत की हो सब जातक के सर पर लाकर पटकेगा।
इसलिए कन्या लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो माणिक्य कभी भी धारण ना करें। जब सूर्य की महादशा आए तो सूर्य देव की पूजा करें, जल अर्पित करें, सूर्य का पाठ करें, सूर्य मन्त्र का उच्चारण करें।
तुला लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
तुला लग्न में सूर्य की सिंह राशि ग्यारहवें भाव में हुई यानि की सूर्य ग्यारहवें (आमदनी) भाव के स्वामी हुए। योग तो बहुत अच्छा है, ऐसे व्यक्तियों को सूर्य अच्छी तरक्की, कारोबारी उनत्ति और आमदनी देते है।
लेकिन सूर्य अपने परम शत्रु लग्न में है, इसलिए शुक्र सूर्य को आसानी से कार्य नहीं करने देंगे। इसलिए तुला लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो ऐसे जातक सूर्य की महादशा में माणिक धारण करके परिक्षण कर सकते है। लेकिन ज्योतिष नियम के अनुसार माणिक्य धारण करना वर्जित है।
वृश्चिक लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
वृश्चिक लग्न में सूर्य दशम भाव का स्वामी हुआ। दशम भाव व्यक्ति के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण भावों में से एक है। वृश्चिक लग्न और प्रथम भाव में सूर्य विराजमान हो तो यह बहुत उच्च योग बनाता है। व्यक्ति जीवन में उच्च सरकारी संस्थानों में नौकरी, उच्च पद पर आसीन, बड़े सरकारी ठेके, राजनीती से जुड़ा हुआ हो सकता है। ऐसे व्यक्ति जीवन अपने कारोबार या नौकरी से नाम कमाते है। ऐसे व्यक्ति अपने कार्य से बहुत धन कमाते है।
इसलिए वृश्चिक लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो माणिक जरूर धारण करना चाहिए, बहुत लाभ देगा।
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धनु लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
धनु लग्न और प्रथम भाव में सूर्य का सूर्य अति उत्तम योग का निर्माण करता है। यानि की सूर्य की सिंह राशि नवम भाव (भाग्य स्थान) की स्वामी हुई और सूर्य प्रथम भाव में। जातक बहुत भाग्यशाली होता है, भाग्य से अपने जीवन में उनत्ति और तरक्की प्राप्त करता है। विदेश यात्रा भी कर सकता है। पैतृक संपत्ति का लाभ मिलता है। ऐसे जातकों की आर्थिक स्तिथि बहुत मजबूत होती है।
इसलिए ऐसे उत्तम योग में माणिक्य जरूर धारण करना चाहिए। माणिक धारण करने से जीवन में विशेष सफलता, प्रसिद्धि और धन लाभ होगा।
मकर लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
मकर लग्न में सूर्य की सिंह राशि अष्ठम भाव में हुई, यानि की सूर्य अष्ठम भाव का स्वामी हुआ। अष्ठम भाव मृत्यु, अपंगता और बुरी आर्थिक स्तिथि का स्वामी होता है और ऐसा स्वामी आपके सर पर यानि की प्रथम भाव में बैठा है, अब जान ले की क्या होगा, क्या आप माणिक्य धारण करके ऐसे ग्रह की पावर को बढ़ाएंगे ……। कभी नहीं इसलिए मकर लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो भूलकर भी माणिक धारण ना करे। सूर्य मन्त्र का जाप करें, सूर्य का पाठ करें।
कुम्भ लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
कुम्भ लग्न में सूर्य की सिंह राशि सप्तम भाव की स्वामी होती है। यानि की सूर्य का शसन सप्तम भाव पर हुआ। जो की कभी भी आपके विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं होगा। इतना जरूर है की आपको कारोबार या नौकरी में लाभ देगा। लेकिन अगर अपने माणिक्य धारण कर लिए तो आपका विवाह नहीं होने देगा या अगर आप विवाहित है तो विवाहिक जीवन को नष्ट कर देगा।
इसलिए कुम्भ लग्न और प्रथम भाव में सूर्य है तो माणिक्य कभी धारण ना करें।
मीन लग्न और प्रथम भाव में सूर्य
मीन लग्न में सूर्य छठे भाव के स्वामी हुए और सूर्य खुद प्रथम भाव में बैठे है। छठा भाव ऋण और रोग का हुआ। ऐसे ऋण और रोगी सूर्य का रत्न कभी भी लाभकारी नहीं होगा।
इसलिए मीन लग्न और प्रथम भाव में सूर्य हो तो कभी भी माणिक्य धारण करने का विचार ना करें।
तो साथियों आपने जाना की अगर सूर्य प्रथम भाव में विराजमान है तो किस लग्न के व्यक्ति माणिक्य धारण कर सकते है और कौन नहीं।