अगर आपकी जन्म कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव में विराजमान है तो क्या आप माणिक्य धारण कर सकते है। आइये जानें जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य और माणिक्य धारण।
जिन जातकों की जन्म कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव में मित्र राशि, स्वराशि या अपनी उच्च राशि में हो ऐसे जातक प्रशासनिक नौकरी और राजनीती में सफल होते है। इन्हें मेडिकल क्षेत्रों में भी सफलता की प्राप्ति हो सकती है। इनके पास जमीन, जायदाद, घर-मकान और वाहन का उत्तम सुख होता है।
वही अगर चतुर्थ भाव में सूर्य नीच या अपनी शत्रु राशि में बैठा हो तो जातक को इसके विपरीत अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। जातक को धन की परेशानियां बनी रहती है, मन विचलित रहता है, संघर्षो का सामना करना पड़ता है और सामजिक सम्मान भी नहीं मिलता है। ऐसी दशा में कुंडली विश्लेषण से माणिक्य धारण करना चाहिए।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में सूर्य और माणिक्य धारण
12 लग्नों में से किसी भी लग्न में सूर्य चतुर्थ भाव में विराजमान हो सकते है। इसलिए जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव का सूर्य किसी अवस्था में है यह हर लग्न के अनुसार अलग होता है। आइये जानते है की कुंडली के चतुर्थ भाव में बैठा सूर्य लग्न अनुसार जातक को क्या परिणाम दे सकता है।
मेष लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
मेष लग्न में सूर्य पंचम भाव के स्वामी होते है और चतुर्थ भाव में सूर्य अपने मित्र चंद्र की कर्क राशि में बैठेंगे। इसलिए मेष लें में सूर्य योगकारक होकर बहुत शुभ प्रभाव प्रदान करेंगे। जातक जीवन में संतान,विद्या, घर-मकान, संपत्ति और धन का अच्छा भोग करेगा। मेष लग्न के जातकों के लिए माणिक्य धारण करना बहुत शुभ रहेगा।
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वृष लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
वृष लग्न में सूर्य चतुर्थ भाव के स्वामी होकर खुद चतुर्थ भाव में अपनी सिंह राशि में विराजमान है। योग तो बहुत खूबसूरत है, यानि की जातक जीवन में सभी सुखों का भोग करेगा। बड़ा घर होगा, जमीन-संपत्ति होगी, बड़ी गाड़ी होगी, धन की व्यवस्था अच्छी होगी इत्यादि।
अगर वृष लग्न के जातकों के माणिक्य धारण की बात की जाये तो उन्हें केवल सूर्य की महादशा में ही माणिक्य धारण करना उचित रहेगा क्योंकि सूर्य अपने परम शत्रु शुक्र के लग्न में है। फिर भी अगर आप माणिक्य धारण करना चाहें को ज्योतिषीय परामर्श जरुरी है।
मिथुन लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
मिथुन लग्न में सूर्य तीसरे भाव यानि की अत्यधिक परिश्रम के स्वामी हुए। जो की शुभ नहीं कहा जा सकता है और सूर्य चतुर्थ भाव में विराजमान है यानि की सूर्य आपको अधिक मेहनत के बाद भी सफलता देने में असक्षम है। घर मकान और धन के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ेगा।
पारिवारिक विवाद और मानसिक अशांति बनी रह सकती है इसलिए मिथुन लग्न के जातकों को माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए।
कर्क लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
कर्क लग्न में सूर्य की सिंह राशि दूसरे भाव में हुई, यानि की सूर्य धन के स्वामी हुए और सूर्य देव स्वयं चतुर्थ भाव में बैठे है वो भी नीच के होकर। इसलिए जातक को जीवन में हमेशा धन की परेशानी बनी रहेगी, धन किसी ना किसी रूप में जाता रहेगा, धन एकत्रित नहीं होगा, सामाजिक सम्मान भी नहीं मिलेगा, परिवार और रिश्तेदारों से भी अनबन रहेगी।
ऐसे में कर्क लग्न के जातकों को माणिक्य धारण करते हुए अशुभ और कमजोर सूर्य को शुभ करना जरूरी होगा। माणिक्य धारण करने से जब सूर्य को बल मिलेगा जो वह अपने अशुभ प्रभावों को कम करने में शक्ति प्राप्त करेंगे।
सिंह लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
सिंह लग्न में तो सूर्य इस लग्न के स्वामी हुए। सिंह लग्न में सूर्य प्रधान होते हुए खुद चतुर्थ भाव में मंगल की राशि में विराजमान होंगे। यह एक बहुत शुभ योग होकर जीवन में अत्यंत सफलता के योग बनते है। जातक जीवन में नौकरी, कारोबार, धन, घर-संपत्ति की प्राप्ति करेगा। कुछ मानसिक अशांति हो सकती है।
सिंह लग्न जातकों को माणिक्य जीवन भर के लिए धारण करना चाहिए। माणिक्य धारण उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करेगा।
कन्या लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
कन्या लग्न में सूर्य द्वादश भाव के स्वामी हुए। यानि की कन्या लग्न में सूर्य जीवन में परेशानियों और समस्याओं को देनेवाले हुए। जातक के जीवन में व्यर्थ खर्च बने रहेंगे। घर मकान और संपत्ति को लेकर परेशानियां बनी रह सकती है। पिता से मतभेद रह सकते है। घरेलु चोरी, नुकसान हो सकते है। सामाजिक अपमान सहना पड़ सकता है और जीवन में हस्पताल को लेकर और फिजूल खर्चे बने रह सकते है।
कन्या लग्न के जातकों माणिक्य कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
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तुला लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
तुला लग्न में सूर्य लाभेश यानि की लाभ भाव में स्वामी होकर स्वयं चतुर्थ भाव में बैठे है। सूर्य चतुर्थ भाव में अपने शत्रु शनि की राशि में है, इस लग्न जातकों को धन लाभ तो होगा लेकिन धन का टिकना मुश्किल होगा। घर निर्माण, जमीन जायदाद में विवाद और परेशानियां रह सकती। है
इसलिए तुला लग्न जातकों को माणिक्य की अंगूठी धारण करना शुभ नहीं होगा। उन्हें गले में सूर्य यंत्र के साथ माणिक्य धारण करना शुभ रहेगा।
वृश्चिक लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
वृश्चिक लग्न में सूर्य चतुर्थ भाव में अपने शत्रु की राशि में बैठे है और सूर्य दशम भाव के स्वामी है। इस लग्न के जातक नौकरी, पिता से ख़राब सम्बन्ध, प्रसिद्धि, कारोबार, तरक्की और राजनीती में संघर्षो का सामना करेंगे।
अगर वृश्चिक लग्न के जातकों को अपने करियर में सफलता की प्राप्ति करनी है तो उन्हें माणिक्य धारण करना जरुरी है।
धनु लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
धनु लग्न में सूर्य बहुत योगकारक बनते है। धनु लग्न में सूर्य भाग्य के स्वामी होकर चतुर्थ भाव में बैठे है जो की एक उच्च का निर्माण करता है। ऐसे धनु जातक जीवन में प्रसिद्धि और सफलता की प्राप्ति करते है। भाग्य के धनि होते है, विदेश में बसते है या विदेश से करोबार करते है। इसके धन- धान्य, जमीन,संपत्ति बहुत अच्छी होती है, इन्हें पैतृक संपत्ति की भी प्राप्ति होती है।
धनु लग्न के जातकों के लिए सूर्य बहुत योगकारक है और इन्हें जीवन भर के लिए माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए।
मकर लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
मकर लग्न में सूर्य अष्ठम भाव के स्वामी होकर स्वयं चतुर्थ भाव में विराजमान है। मकर लग्न में चतुर्थ में बैठे सूर्य उच्च के होंगे। ऐसे जातक को विरासत में धन संपत्ति लाभ होने के योग बनेंगे लेकिन स्वास्थय अच्छा नहीं होगा। धन की हानि भी होती रह सकती है। इसलिए इस लग्न के जातकों के लिए माणिक्य धारण करना अशुभ रहेगा उन्हें माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए।
कुम्भ लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
कुम्भ लग्न में सूर्य सप्तम भाव के स्वामी होकर चतुर्थ भाव में विराजमान है। शादी में देरी होगी, शादी में अड़चने आ सकती है, कारोबार में साझेदारी नहीं चल पाएगी, व्यापार में भी ऊंच-नीच रह सकती है, शादी के बाद वैवाहिक मतभेद हो सकते है।
इसलिए कुम्भ लग्न के जातकों को माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए।
मीन लग्न और चतुर्थ भाव में सूर्य
मीन लग्न में सूर्य छठे भाव यानि की रोग और ऋण के स्वामी होकर स्वयं सूर्य देव चतुर्थ भाव में विराजमान है। ऐसे जातकों के जीवन में रोग और ऋण रह सकता है। जमीन विवाद रह सकता है। नौकरी में बदलाव हो सकता है, जीवन की सुख-शांति की कमी हो सकती है।
इसलिए मीन लग्न के जताको को माणिक्य कभी भी धारण नहीं कारण चाहिए।