पितृ कौन होते है
पितृदोष क्या है? पितृ हमारे पूर्वज होते है। जो इस दुनियां को छोड़ चुके है। हमारे पूर्वजों के ऋण और उपकार हमारे ऊपर रहते है। जो उन्होनें हमारे जीवन के लिए किये रहते है। जब कोई व्यक्ति अपनी देह का त्याग करता है तो उसकी आत्मा पितृ लोक पहुँचती है।
पितृदोष क्या है?
हमारे पूर्वज जो इस संसार को छोड़ चुके है और वे पितृ लोक से देखते है की हमारे परिवार की हमारे प्रति कोई श्रद्धा भावना नहीं है। वे हमें किसी भी तरह से याद नहीं कर रहे है और ना ही हमारे प्रति कोई स्नेह है और ना ही वे किसी भी रूप में हमारा ऋण चुकाने का प्रयास कर रहे है,
तब ऐसे में हमारे पूर्वजों की दुखी आत्माएं क्रोध में आकर अपने वंशजों को श्राप दे देती है। इसी श्राप को “पितृ- दोष” बोला जाता है।
पितृ-दोष एक अदृश्य बाधा है जो हमारे पूर्वजों के रुष्ट होने के कारण बनता है। रुष्ट होने के कारण अलग अलग हो सकते है। जैसे की किसी परिजन द्वारा गलत आचरण, कोई ग़लती, श्राद्ध, पूजा पाठ ना करवाना, अंत्येष्टि कर्म में की गई त्रुटियां आदि हो सकती है।
पितृ दोष होने से परिवार में लड़ाई झगड़े रह सकते है, मानसिक तनाव रह सकता है, कारोबार का ना चलना, आर्थिक तंगी रहना, जीवन में संघर्ष रहना, वैवाहिक जीवन में कलह, कैरिअर बाधा आदि।
जब व्यक्ति के जीवन में पितृ दोष बनता है तब जन्म कुंडली में ग्रहों और दशाओं के शुभ होने के बावजूद भी परेशानियां बनी रहती है। कितनी भी पूजा-पाठ, देवी देवताओं की अर्चना कर लें, लेकिन सुख शान्ति नहीं आती।
पितृदोष क्या है? जन्म कुंडली के अनुसार पितृ दोष
जन्म कुंडली में लग्न के प्रथम, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृ दोष का आंकलन किया जाता है। पितृ दोष लग्न कुंडली में सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्तिथि अनुसार देखा जाता है। जिसमें पितृ दोष बनने में गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रमुख होती है।
जन्म कुंडली से बने पितृ दोष के विभिन्न उपाय करने के साथ अगर पंचमुखी ,सातमुखी या आठ मुखी रुद्राक्ष धारण कर लिया जाये तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है। इसके अलावा पितृ दोष शांत करने के लिए ग्रहों के उपाय, मंत्रो और पूजा द्वारा भी करना श्रेष्ठ होता है।
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पितृ दोष होने के लक्षण
घर से दुर्गन्ध या बदबू आना
बार बार पूर्वजों का स्वप्न में आना
किसी भी प्रकार शुभ कार्यों में अड़चन आना
घर में किसी युवा का विवाह संपन्न ना हो पाना
घर, प्रॉपर्टी का बिकना या खरीदने में अड़चन आना
संतान ना हो पाना
पितृदोष क्या है? पितृ-दोष शांति के उपाय
पितृ-दोष शांति के सामान्य उपायों में पितृपक्ष में तर्पण , श्राद्ध कर्म ,पिंडदान करने से पितृ-दोष समाप्त होता है। इसके अलावा सर्प पूजा, गौ -दान, कुआं या बावड़ी बनवाना, मंदिर में पीपल या बरगद का पेड़ लगवाना, विष्णु पूजा, श्रीमद्द्भागवत का पाठ करवाना चाहिए।
वेदों और पुराणों के अनुसार पितृ शांति के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का पठन करना चाहिए। नित्य इनका पठन करने से किसी भी प्रकार का पितृ दोष शांत होता है।
जन्म कुंडली में ग्रहों के अनुसार बन रहे पितृ दोष की शांति करवाना भी बहुत लाभदायक उपाय होता है।
पितृ दोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि
कभी कभी किसी के जीवन में परेशानियां और संघर्ष खत्म होने का नाम नहीं लेते। घर में धन रुकने का नाम नहीं लेता, कोई भी कार्य सफल नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में पितृ दोष निश्चित रूप से होता है और यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। आने वाली पीड़िया भी इस कष्ट को भोगती है।
जब किसी परिवार में किसी सदस्य का अंतिम संस्कार पूर्ण रूप से ना हुआ हो, परिवार के किसी सदस्य की अकास्मिक या दुर्घटना में मृत्यु हुई हो, घर में किसी ने आत्महत्या की हो, किसी सदस्य की आग में जलने से या पानी में डूबने से मृत्यु हुई हो तब इस प्रकार के पितृ दोष शांति के लिए नारायणबलि-नागबलि का विधान लिखा गया है।
नारायणबलि-नागबलि पूजा से पूर्वजों की अपूर्ण इच्छाओं और कामनाओं की शांति होती है। यह पूजा केवल श्राद्ध पक्ष करवाई जाती है और इस पूजा से पितृ दोष का पूर्ण निवारण होता है।
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पितृपक्ष में कौवों को भोजन कराने का महत्व
हर साल पितृपक्ष आते है और इनका बहुत महत्त्व भी है। पितृपक्ष में हम हमारे पित्तरों के श्राद्ध करते है। श्राद्ध के साथ कौवों को भोजन कराना भी बहुत जरुरी माना गया है।
हिंदू नियमों के अनुसार पित्तरों का श्राद्ध और तर्पण करना बहुत जरुरी होता है अन्यथा पित्त रुष्ट हो जाते है और इसका श्राप लगता है। शास्त्रों के नियम अनुसार श्राद्ध में जितना जरुरी भांजे और ब्राह्मण को भोजन कराना होता है उतना ही जरुरी कौवों को भोजन करवाना भी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा माना गया है की श्राद्ध में कौवे हमारे पित्तरों के रूप में हमारे पास आते है।
श्रीराम के त्रेतायुग की एक कथा के अनुसार इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप धारण करता है और वह माता सीता के पैर में चोंच मार देता है जिसे देखकर श्रीराम एक तिनके के बाण से जयंत की आंख फोड़ देते है।
जब जयंत अपने किये पर पछताकर श्रीराम से माफ़ी मांगता है तो श्रीराम उसे वरदान देते है की श्रादों में जो भी व्यक्ति तुम्हें भोजन कराएगा वह भोजन पितरों को अर्पित हो जायेगा। उसी समय से श्रादों में कौवों को भोज करवाने की परंपरा चली आ रही है। इन दिनों में कौवों का बहुत सम्मान किया जाता है और उन्हें किसी भी तरह की हानी नहीं पहुंचाई जाती है।
अगर कोई ऐसा करता है तो उसे पित्रों के श्राप के साथ साथ देवी देवताओं के कोप को भी झेलना पड़ता है। जीवन में अशांति और कष्टों को झेलना पड़ता है। सुख की कमी होने लगती है।
पितृ पक्ष में चींटी, गाय, कौआ, कुत्ता और देवों को भोज जरूर करवाना चाहिए।
आइये जाने कौवे से जुड़े कुछ रहस्य?
धर्मग्रन्थ के अनुसार समुन्द्र मंथन में जब अमृत निकला था तो कौवे ने इसको चख लिया था, यही कारण है की कौवा कभी भी अपनी प्राकृतिक वृद्धावस्था की मौत नहीं मरता। कौवे की मौत हमेशा किसी बीमारी या आकस्मिक रूप से ही होती है।
कौवा हमेशा अपने साथी के साथ ही भोजन करता है। अगर किसी कारण से कौवे के साथी की मौत हो जाए तो वह कभी भी अकेला भोजन ग्रहण नहीं करता।
भादौ महीने के 16 दिन हमेशा कौवे छतों पर आते है। यह 16 दिन श्रादों के होते है। कौवो को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौवो को भोजन करवाकर और पीपल को जल अर्पित करके पित्रों को तृप्त किया जाता है।
यदि आप शनि देव को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद लेना चाहते है या शनि को शांत करना चाहते है तो कौवे को भोजन करवाना चाहिए। कौवा शनिदेव का वाहन है।
कौवे को भोजन करवाने से जीवन के बहुत से अनिष्ट खत्म होते है, शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
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