पराक्रमेश यानि की तीसरे भाव का स्वामी, आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे की जन्म कुंडली में जब तीसरे भाव का स्वामी कुंडली के विभिन्न भावों में होगा तो जातक को कैसे परिणाम देगा, उसके जीवन में किस प्रकार के अच्छे बुरे परिवर्तन आ सकते है। आइये जन्म कुंडली में पराक्रमेश की 12 भावों में स्थिति जानें
जन्म कुंडली में पराक्रमेश की 12 भावों में स्थिति जानें
पराक्रमेश की लग्न (प्रथम) भाव में स्तिथि :
पराक्रमेश की 12 भावों में स्थिति में सबसे पहले जानते है लग्न में पराक्रमेश होने से उसके प्रभाव। पराक्रमेश की लग्न भाव में स्थिति का विश्लेषण करते समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि यदि पराक्रम या सहज भाव का स्वामी जन्मकुंडली के लग्न भाव में उपस्थित हो, तो जातक की शारीरिक संरचना लम्बी और पतली होती है। ऐसे व्यक्ति में साहस और बहादुरी की विशेषताएँ होती हैं, और वह दूसरों के लिए कार्य करने में सक्षम होता है। इसके अतिरिक्त, वह अपने व्यवसाय से भी जीवन यापन कर सकता है। हालांकि, ऐसे जातक अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के प्रति विद्वेष रखते हैं और कुसंगति में रहने की प्रवृत्ति रखते हैं। नैतिकता के मामले में भी उनका चरित्र सामान्यतः अच्छा नहीं होता है।
यदि पराक्रमेश अपनी स्थिति में मजबूत और दुष्प्रभावों से मुक्त हो, तो जातक कला के क्षेत्र में विशेष प्रतिभा विकसित कर सकता है, जैसे कि संगीत, नृत्य और अभिनय। इस प्रकार, उसकी आजीविका का मुख्य स्रोत ललित कला बन जाता है, और वह एक सफल अभिनेता के रूप में पहचान बना सकता है। इसके अलावा, वह कूटनीति के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना सकता है। इसके विपरीत, यदि पराक्रमेश कमजोर और दुष्प्रभावित हो, तो जातक की आजीविका के साधन अवांछित और अस्थिर हो सकते हैं।
पराक्रमेश की द्वितीय भाव में स्तिथि:
जब तीसरे भाव का स्वामी दूसरे भाव में होता है, तो इसे अशुभ स्थिति माना जाता है। इस प्रकार की कुंडली वाले जातक परिवार और समाज में अवांछित समझे जाते हैं। ऐसे जातक अक्सर दूसरों की महिलाओं और संपत्ति पर बुरी नजर रखते हैं। यदि जातक महिला है, तो उसकी दृष्टि पर-पुरुषों पर होती है। इस स्थिति में जातक दुखी, ईर्ष्यालु, वंचित और निर्धन होता है। इसके अलावा, उसके छोटे भाइयों से भी उसका संबंध बिगड़ जाता है। हालांकि, यदि तीसरे भाव का स्वामी शुभ ग्रह है और वह मजबूत है, तो जातक धन-सम्पन्न बन सकता है, लेकिन उसकी सद्विचारिता में कमी बनी रहती है।
पराक्रमेश की तृतीय भाव में स्तिथि:
तीसरे भाव के स्वामी की यदि अपनी राशि और भाव में स्थिति हो, तो जातक में साहस, पराक्रम और मेहनत की विशेषताएँ होती हैं। ऐसे व्यक्ति के पास अनेक मित्र होते हैं और वह अपने परिवार तथा रिश्तेदारों के साथ घनिष्ठता से रहता है। उसकी संतान भी योग्य होती है, जिससे वह एक समृद्ध, सुखी और संतुष्ट जीवन व्यतीत करता है।
जब तीसरे भाव का स्वामी मजबूत और सौम्य स्वभाव वाला होता है, तो यह जातक को उत्कृष्ट परिणाम प्रदान करता है। हालांकि, यदि जातक का स्वभाव क्रूर हो, तो जातक अपने रिश्तेदारों, विशेषकर छोटे भाइयों, को खोने का सामना कर सकता है। इस प्रकार, तीसरे भाव का स्वामी जातक के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पराक्रमेश की चतुर्थ भाव में स्तिथि:
पराक्रमेश की चौथे भाव में स्थिति का विश्लेषण करते समय यह स्पष्ट होता है कि यदि तीसरे भाव का स्वामी (पराक्रमेश) चौथे भाव में स्थित है, तो जातक का जीवन सुखमय होता है। ऐसे जातक आमतौर पर धनवान और ज्ञानी होते हैं, लेकिन उनके जीवन में एक साधारण, निर्दयी और संकीर्ण प्रवृत्ति का समावेश होता है।
दूसरी ओर, यदि तृतीयेश का प्रभाव नकारात्मक और क्रूर हो, तो जातक अपने पिता से मिली संपत्ति का विनाश करता है और अपनी माता के प्रति शत्रुतापूर्ण भाव रखता है। इस प्रकार, जातक का जीवन संघर्ष और कठिनाइयों से भरा होता है।
पराक्रमेश की पंचम भाव में स्तिथि:
जब पराक्रमेश पंचम भाव में स्थित होता है, तो जातक को अपनी संतान से अपेक्षित सुख की प्राप्ति नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप, पारिवारिक जीवन में मतभेद और कलह की स्थिति बनी रह सकती है। आर्थिक दृष्टि से जातक की स्थिति सामान्य होती है। यदि इस भाव में पराक्रमेश की स्थिति मजबूत और सौम्य हो, तो जातक को अपने भाइयों से पर्याप्त सहयोग और लाभ प्राप्त होता है।
इस स्थिति में जातक कृषि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य कर सकता है या किसी समृद्ध परिवार द्वारा गोद लिया जा सकता है। इसके अलावा, वह सरकारी सेवा में भी सफलता प्राप्त कर सकता है और अपने करियर में उन्नति कर सकता है। इस प्रकार, पराक्रमेश की पंचम भाव में स्थिति जातक के जीवन में विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है।
पराक्रमेश की छठे भाव में स्तिथि:
जब पराक्रमेश छठे भाव में स्थित होता है, तो जातक अपने भाइयों के प्रति विरोधाभासी भावनाएँ रखता है और रिश्तेदारों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है। इस स्थिति में जातक अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के कारण कठिनाइयों में पड़ सकता है। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है, लेकिन वह धन अर्जित करने के लिए अवैध और अनैतिक तरीकों का सहारा लेता है। यदि वह सरकारी या किसी प्रतिष्ठित निजी क्षेत्र में कार्यरत है, तो वह अक्सर कमीशन और रिश्वतखोरी में संलिप्त रहता है।
इस प्रकार की स्थिति में जातक का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है, और वह अक्सर नेत्र संबंधी समस्याओं का सामना करता है। उसकी शारीरिक स्थिति सामान्य से कमजोर होती है, जिससे उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, पराक्रमेश की छठे भाव में स्थिति जातक के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में कई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है।
पराक्रमेश की सप्तम भाव में स्थिति:
पराक्रमेश की सप्तम भाव में स्थिति जातक के दाम्पत्य जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। यदि यह ग्रह इस भाव में स्थित हो, तो जातक का बचपन कठिनाइयों से भरा होता है। ऐसे जातक अक्सर शासकों या अधिकारियों के साथ संघर्ष में पड़ सकते हैं, जिससे उनके जीवन में अशांति बनी रहती है। उनके जीवनसाथी की विशेषताएँ आमतौर पर आकर्षक और गुणवान होती हैं, लेकिन जातक के कारण उन्हें भी कई बार दुर्भाग्य का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, जातक को यात्रा के दौरान भी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
यदि पराक्रमेश सप्तम भाव में मजबूत और सौम्य स्वभाव वाला हो, तो जातक को अपने भाई-बहनों से सहयोग और स्नेह प्राप्त होता है। इसके विपरीत, यदि स्थिति कमजोर हो, तो जातक को विपरीत परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार, पराक्रमेश की सप्तम भाव में स्थिति सामान्यतः शुभ नहीं मानी जाती है, और यह जातक के जीवन में कई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है।
पराक्रमेश की अष्ठम भाव में स्थिति:
पराक्रमेश की अष्टम भाव में स्थिति होने पर जातक को सामान्यतः अशुभ परिणामों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में जातक आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो सकता है या उस पर झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं। उसका व्यवसाय, व्यापार या नौकरी में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं, जिससे वह अक्सर दुर्भाग्य का शिकार होता है। परिवार में किसी भाई की आकस्मिक मृत्यु से उसे गहरा दुःख होता है, और उसकी वैवाहिक जीवन में भी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
इसके अतिरिक्त, छोटे भाई की मृत्यु और भयंकर रोगों के कारण जातक को अल्पजीवन में ही दुःखद अंत का सामना करना पड़ सकता है। ज्योतिषविद् हरजी के अनुसार, यदि तृतीयेश क्रूर या अशुभ स्वभाव वाला है और अष्टम भाव में स्थित है, तो जातक को शारीरिक कष्ट और विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार, पराक्रमेश की अष्टम भाव में स्थिति जातक के जीवन में कई कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है।
पराक्रमेश की नवम भाव में स्थिति:
पराक्रमेश की नवम भाव में स्थिति का विश्लेषण करते समय यह देखा जाता है कि यदि तीसरे भाव का स्वामी नौवें भाव में स्थित है, तो जातक का भाग्य प्रायः विवाह के पश्चात ही जागृत होता है। इस स्थिति में जातक के भाई को पारिवारिक संपत्ति का लाभ मिलता है, और जातक को अपने भाई के माध्यम से लाभ प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, जातक के जीवन में अचानक परिवर्तन देखने को मिलते हैं, और वह अक्सर लंबी यात्राओं पर निकलता है।
जातक के पिता की विश्वसनीयता संदिग्ध होती है। यदि तृतीयेश दुष्प्रभावित और कमजोर होकर भाग्य भाव में स्थित हो, तो इससे जातक और उसके पिता के बीच गलतफहमियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस प्रकार की स्थिति जातक के जीवन में तनाव और संघर्ष का कारण बन सकती है, जिससे उसके पारिवारिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पराक्रमेश की दशम भाव में स्थिति:
कर्म भाव में तीसरे भाव का स्वामी जब दशम भाव में स्थित होता है, तब जातक को धन, बुद्धि, कौशल और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हालांकि, उसे जीवनसाथी के रूप में एक अविश्वासी और झगड़ालु व्यक्ति का सामना करना पड़ता है। जातक अपने व्यवसाय, व्यापार या नौकरी के कारण अक्सर यात्रा करता है, जो उसके लिए लाभकारी साबित होती है। इसके अलावा, जातक के परिवार के सदस्यों का व्यवसाय भी सफल होता है, और वे उसे भरपूर सहयोग प्रदान करते हैं।
जातक को सरकारी सम्मान प्राप्त होता है और वह अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धा रखता है। वह अपने सहोदर भाइयों के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखता है, जिससे परिवार में सामंजस्य बना रहता है। इस प्रकार, जातक की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति संतोषजनक होती है, जो उसके जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है।
पराक्रमेश की एकादश भाव में स्थिति:
पराक्रमेश की एकादश भाव में स्थिति के संदर्भ में लाभ भाव का विश्लेषण करते हुए, यह देखा गया है कि तीसरे भाव का स्वामी इस भाव में अधिक सकारात्मक परिणाम देने में सक्षम नहीं होता। ऐसे जातक का स्वास्थ्य प्रायः कमजोर रहता है और वह दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति रखता है। सामान्यतः, इस प्रकार के जातक का रूप-रंग भी साधारण होता है।
इसके विपरीत, जातक के भाई-बहन अक्सर प्रतिभाशाली और समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। जातक या तो उनके सेवा में रहते हैं या फिर सरकारी नौकरी के माध्यम से अपनी आजीविका अर्जित करते हैं। इस प्रकार, लाभ भाव में पराक्रमेश की स्थिति जातक के जीवन में कई चुनौतियों का सामना करने का संकेत देती है।
पराक्रमेश की द्वादश भाव में स्थिति:
पराक्रमेश की बारहवें भाव में स्थिति के संदर्भ में, यदि यह भाव में स्थित होता है, तो जातक को अपने नाते-रिश्तेदारों के माध्यम से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में जातक का पिता भी समाज में असामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करता है। इसके अलावा, जातक स्वयं भी अपने भाई-बहनों को दुख पहुंचाने वाला और मित्रों से दूर रहने वाला होता है। विवाह के बाद ही जातक का भाग्य उज्ज्वल होता है, लेकिन उसे अपने परिवार और रिश्तेदारों से अलगाव का अनुभव भी करना पड़ सकता है।
सामान्यतः, ऐसे जातक अपने देश से दूर जाकर विदेश में बसने का विकल्प चुनते हैं। इस प्रकार की स्थिति जातक के जीवन में कई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है, जिससे उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से संघर्ष करना पड़ता है। इस भाव की स्थिति जातक के सामाजिक संबंधों और पारिवारिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है, जिससे उसकी जीवन यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं। यह थी जन्म कुंडली में पराक्रमेश की 12 भावों में स्थिति जानें