जन्म कुंडली में चतुर्थेश की विभिन्न भावों में स्थिति: सबसे पहले यह जान लें की चतुर्थेश यानि की चतुर्थ भाव में जो राशि बैठी है उसका स्वामी चतुर्थेश होता है। अब किसी भी जातक की कुंडली में चतुर्थेश यानि की चतुर्थ भाव का स्वामी किसी भी भाव में बैठ सकता है। इस पोस्ट में हम यही जानेंगे की चतुर्थेश की प्रत्येक भाव अनुसार जातक को किन प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। आइये जानें जन्म कुंडली में चतुर्थेश की विभिन्न भावों में स्थिति
लग्न भाव में चतुर्थेश : जन्म कुंडली में चतुर्थेश की विभिन्न भावों में स्थिति का विश्लेषण करते समय, यह महत्वपूर्ण है कि जब चतुर्थेश लग्न भाव में होता है, तो जातक को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि चतुर्थेश लग्न में स्थित है, तो यह संकेत करता है कि जातक एक उच्च स्तर का विद्वान है, लेकिन वह सार्वजनिक रूप से बोलने में हिचकिचाता है। इसके अतिरिक्त, जातक का अपने पिता के प्रति गहरा प्रेम और संबंध होता है, जबकि अन्य परिवार के सदस्यों के प्रति उसकी भावनाएँ अपेक्षाकृत कम होती हैं।
यदि चतुर्थेश की स्थिति मजबूत और सकारात्मक प्रभावों से मुक्त है, तो जातक एक समृद्ध परिवार में जन्म लेता है। इसके विपरीत, यदि चतुर्थेश कमजोर है, तो जातक निर्धन परिवार में जन्म ले सकता है। ऐसे जातक को अपने पिता की संपत्ति विरासत में मिलती है, लेकिन वह उसे खोने का भी जोखिम उठाता है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है और वह अपने पिता के नाम को गर्व से आगे बढ़ाता है।
धन भाव में चतुर्थेश: धन भाव की स्थिति में, जब चतुर्थेश दूसरे भाव में होता है, तो जातक को अपार सौभाग्य, साहस और सुख की प्राप्ति होती है। इस स्थिति में जातक मातृपक्ष से संपत्ति का लाभ उठाने में सक्षम होता है, हालाँकि उसका स्वभाव कभी-कभी अक्खड़ हो सकता है। यदि चतुर्थेश की स्थिति शुभ होती है, तो जातक अपने पिता के साथ अच्छे संबंध बनाए रखता है।
दूसरी ओर, यदि चतुर्थेश की स्थिति प्रतिकूल होती है, तो जातक और उसके पिता के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार, चतुर्थेश की स्थिति जातक के पारिवारिक और आर्थिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है, जो उसके समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पराक्रम भाव में चतुर्थेश: चौथे भाव का स्वामी यदि तीसरे भाव में स्थित हो, जिसे सहोदर भाव या पराक्रम भाव कहा जाता है, तो जातक एक उदार, सच्चरित्र और उच्च आदर्शों वाला व्यक्ति बनता है। वह अपनी मेहनत से धन और संपत्ति अर्जित करता है। हालांकि, उसे बचपन में सौतेले भाई-बहनों और सौतेली माता के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
इस स्थिति में जातक का स्वास्थ्य भी अक्सर कमजोर रहता है। वह अपने कष्टों के लिए माता-पिता को जिम्मेदार ठहराता है और उनके प्रति लगाव नहीं रख पाता। इस प्रकार, जातक की जीवन यात्रा में पारिवारिक संबंधों और व्यक्तिगत संघर्षों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जो उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करता है।
सुख भाव में चतुर्थेश: चौथे भाव का स्वामी यदि अपनी ही राशि में स्थित हो, तो जातक धन, प्रतिष्ठा, सुख और संवेदनशीलता से परिपूर्ण होता है। वह अपने कार्यों के माध्यम से अपने पिता का मान-सम्मान बढ़ाने में सक्षम होता है और अपने क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान स्थापित करता है। इसके अतिरिक्त, वह अपने पिता से विरासत में धन और संपत्ति प्राप्त करने में भी सफल रहता है। इस स्थिति में जातक धर्म के प्रति गहरी निष्ठा रखता है।
जब चौथे भाव का स्वामी अपने घर में होता है, तो जातक की जीवनशैली धनवान और सुखद होती है। वह न केवल अपने पिता की प्रतिष्ठा को बढ़ाता है, बल्कि अपने कार्यों के माध्यम से समाज में भी एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता है। इस प्रकार, जातक की धार्मिकता और नैतिकता भी इस स्थिति में अत्यधिक मजबूत होती है, जो उसके जीवन को और भी समृद्ध बनाती है।
संतान भाव में चतुर्थेश: जब चौथे भाव का स्वामी पांचवें भाव में होता है, तो जातक धर्मनिष्ठ, ईश्वर की आराधना करने वाला और अपने परिश्रम से धन की प्राप्ति करने वाला बनता है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है और लोग उसे सम्मान और स्नेह प्रदान करते हैं। जातक की माता एक कुलीन और प्रतिष्ठित परिवार से आती है, जिससे जातक को सामाजिक मान्यता मिलती है।
इस स्थिति में जातक दीर्घकालिक जीवन, प्रसिद्धि और योग्य संतान का जन्मदाता होता है। वह अपने परिवार के प्रति सभी जिम्मेदारियों को समझता है और उनका पालन करता है। इसके अलावा, जातक को वाहन और अन्य सुख-सुविधाओं का भरपूर आनंद प्राप्त होता है, जो उसकी समृद्धि और सुखद जीवन का प्रतीक है।
रोग, ऋण व शत्रु भाव में चतुर्थेश : जब चतुर्थेश छठे भाव में स्थित होता है, जिसे दुःस्थान माना जाता है, तो जातक की प्रवृत्तियाँ ओछी और झगड़ालू हो जाती हैं। ऐसे जातक में असामाजिक व्यवहार की प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं, जिससे वह कुविचारों और कुत्सित इच्छाओं से ग्रसित होता है। उसकी जीवन यात्रा भटकावों से भरी होती है, और वह मातृपक्ष की सम्पत्ति को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है।
कलत्र (दाम्पत्य) भाव में चतुर्थेश : यदि चौथे भाव का स्वामी सातवें भाव में स्थित हो, तो जातक सामान्यतः सुखी जीवन व्यतीत करता है। ऐसे जातक के पास भूमि और भवन की सम्पत्ति होती है। यदि सातवें भाव में चर राशि होती है, तो जातक अपने घर से काफी दूर जाकर बसता है, जबकि स्थिर राशि होने पर वह अपने जन्म स्थान से अधिक दूर नहीं जाता है।
जातक का जीवन साथी प्रायः समझदार होता है और जातक के माता-पिता की सेवा में तत्पर रहता है। इस प्रकार, दाम्पत्य जीवन में संतोष और सहयोग की भावना बनी रहती है, जो जातक के जीवन को सुखद बनाती है। इस स्थिति में जातक का पारिवारिक जीवन समृद्ध और संतुलित होता है।
आयु भाव में चतुर्थेश: आयु भाव का सुख भाव के स्वामी के साथ संबंध यदि कुंडली के आठवें भाव में स्थित हो, तो यह संकेत करता है कि जातक के पिता का निधन जल्दी हो सकता है। इसके अतिरिक्त, जातक स्वयं भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर सकता है। ऐसे जातक के लिए यह संभव है कि वह दुष्कर्मों के कारण नपुंसकता का सामना करे या किसी अन्य बीमारी के चलते यौन जीवन से वंचित रह जाए।
इस स्थिति में जातक को विवादों और कानूनी मामलों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे वह अपनी संपत्ति भी खो सकता है। इसके अलावा, वह कभी-कभी हत्या की योजनाएं बनाने की प्रवृत्ति भी दिखा सकता है। इस प्रकार, यह स्थिति जातक के जीवन में अनेक कठिनाइयों और चुनौतियों का कारण बन सकती है।
धर्म भाव में चतुर्थेश: चतुर्थेश यदि भाग्य और धर्म का प्रतीक भाव में स्थित हो, तो जातक को अपार सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक को अपने पिता से सुख और संपत्ति दोनों का भरपूर लाभ मिलता है। वह विद्वान और समाज में प्रतिष्ठित होता है, साथ ही आत्मनिर्भरता की भावना भी उसमें विद्यमान होती है। जातक पारिवारिक विरासत को धन के रूप में नहीं, बल्कि मर्यादाओं और संस्कारों के रूप में ग्रहण करना चाहता है। उसे बिना किसी प्रयास के सभी आवश्यक चीजें प्राप्त होती हैं। वह अपने धर्मनिष्ठ पिता के धार्मिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेता है और उनकी सेवा में तत्पर रहता है।
यदि इस भाव में चतुर्थेश क्रूर, कमजोर या दुष्प्रभावित हो, तो जातक अपने पिता से किसी भी प्रकार की सहायता की आशा नहीं कर सकता। (चतुर्थेश की विभिन्न भावों में स्थिति) ऐसे में वह सामान्यतः अपने पिता से अलग हो जाता है, लेकिन फिर भी विरासत प्राप्त करने की संभावना उसके लिए बनी रहती है। इस स्थिति में जातक को अपने पिता से दूर रहकर भी अपनी पहचान और संपत्ति को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार, चतुर्थेश की स्थिति जातक के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो उसके भाग्य और धर्म के साथ गहराई से जुड़ी होती है।
कर्म भाव में चतुर्थेश: चौथे भाव का स्वामी यदि दसवें भाव में स्थित हो, तो वह चाहे कितना भी कठोर या सौम्य क्यों न हो, राजयोग का निर्माण करता है। इस स्थिति में जातक अपने शत्रुओं और प्रतिद्वंद्वियों को समाप्त कर देता है। उसकी प्रसिद्धि की सीमाएँ भौगोलिक बाधाओं को पार कर जाती हैं, और उसका व्यक्तित्व वैश्विक स्तर पर प्रभाव डालता है। जातक एक कुशल औषधि विशेषज्ञ या रसायनज्ञ हो सकता है, साथ ही एक सफल और लोकप्रिय नेता भी बन सकता है। यदि चौथे भाव का स्वामी कठोर स्वभाव का हो, तो जातक के उत्थान और पतन की घटनाएँ अप्रत्याशित होती हैं।
जातक का पारिवारिक जीवन और बचपन की परिस्थितियाँ अक्सर संतोषजनक नहीं होती हैं। यदि चौथे भाव का स्वामी क्रूर है, तो जातक और उसकी माता को उसके पिता द्वारा त्याग दिया जा सकता है। दूसरी ओर, यदि वह सौम्य है, तो भी पिता का संबंध जातक और उसकी माता के साथ ठीक नहीं रहता, हालाँकि परिवार की बाहरी छवि एकजुट बनी रहती है। इस प्रकार, चौथे भाव का स्वामी जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है।
लाभ भाव में चतुर्थेश: ग्यारहवें भाव में चौथे भाव के स्वामी की स्थिति होने पर जातक आत्मनिर्भर और खुले विचारों वाला होता है, लेकिन उसका स्वास्थ्य सामान्यतः अस्वस्थ रहता है। ऐसे जातक जमीन-जायदाद और पशुधन के व्यापार में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करते हैं। (चतुर्थेश की विभिन्न भावों में स्थिति) यदि चौथे भाव का स्वामी शुभ प्रकृति का है, तो जातक अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है और उसका स्वास्थ्य भी संतोषजनक बना रहता है। इसके अलावा, वह कला या साहित्य के क्षेत्र में भी प्रमुखता हासिल कर सकता है। यदि चौथे भाव का स्वामी क्रूर स्वभाव का है, तो जातक असामाजिक प्रवृत्तियों की ओर बढ़ सकता है। ऐसे जातक धन, सम्पत्ति और वाहनों का भरपूर उपयोग करते हैं, और उनकी माता भी सौभाग्यशाली होती है। हालांकि, यदि चौथे भाव का स्वामी क्रूर है, तो जातक का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है, जबकि शुभ स्वभाव का होने पर वह दीर्घजीवी और रोगमुक्त रहता है।
व्यय भाव में चतुर्थेश: चौथे भाव का स्वामी यदि बारहवें भाव में स्थित हो, तो जातक की वित्तीय स्थिति सामान्यतः संतोषजनक नहीं रहती और उसे जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में जातक के माता-पिता में से किसी एक का, विशेषकर माता का, निधन जल्दी हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप जातक को संपत्ति और सुख की कमी का सामना करना पड़ता है।
यदि चौथे भाव का स्वामी अशुभ गुणों वाला है, तो यह संकेत कर सकता है कि जातक का जन्म पाप कर्मों के फलस्वरूप हुआ है। इस प्रकार की ज्योतिषीय स्थिति जातक के जीवन में अनेक बाधाओं और संघर्षों का कारण बन सकती है, जिससे उसकी समृद्धि और सुख की संभावनाएँ प्रभावित होती हैं।
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