जन्म कुंडली में धनेश की 12 भावों में स्थिति जानें-Dhanesh in 12  houses

जन्म कुंडली में धनेश की 12 भावों में स्थिति

धनेश यानि की धन भाव (दूसरा भाव) का स्वामी जब जन्म कुंडली के सभी 12 भावों में बैठा होगा तब उसके कैसे प्रभाव होंगे या ऐसे समझ लें की इस स्तिथि में दूसरे भाव के स्वामी के क्या परिणाम मिल सकते है। आइये आज की इस पोस्ट में जन्म कुंडली में धनेश की 12 भावों में स्थिति जानें

धनेश प्रथम भाव में

धनेश की विभिन्न भावों में स्थिति का विश्लेषण करते समय, यदि धन भाव का स्वामी लग्न भाव में उपस्थित हो, तो जातक अपने व्यक्तिगत प्रयासों, बुद्धि और ज्ञान के माध्यम से धन अर्जित करता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में उसे विरासत के रूप में भी धन प्राप्त हो सकता है। हालांकि, वह अपने जीवन में धनवान तो बन जाता है, लेकिन उसके संस्कारों में कमी रह जाती है। उसकी धन-सम्पन्नता का अहंकार उसके स्वभाव में समा जाता है, जिससे वह विनम्रता और शिष्टता को भुला देता है। इसके परिणामस्वरूप, वह अधीर हो जाता है और अपने परिवार, रिश्तेदारों और कुल जनों से दूर हो जाता है।

धनेश दूसरे भाव में

जब धनेश धन भाव में स्थित होता है, तो जातक में अहंकार की प्रवृत्ति प्रबल होती है। वह धन की अधिकता के बावजूद अक्सर संतानहीन रहता है और उसकी वैवाहिक स्थिति भी एक से अधिक विवाहों तक सीमित हो सकती है। उसकी कटुता और सच्चाई के प्रति झुकाव उसे दूसरों के साथ संवाद में कठिनाई पैदा करता है। इस प्रकार, धन की प्रचुरता के बावजूद, जातक के जीवन में संतोष और संबंधों की गहराई की कमी बनी रहती

धनेश तीसरे भाव में

पराक्रम भाव में यदि धनेश तीसरे भाव में स्थित हो, तो जातक साहसी, बुद्धिमान और अच्छे स्वभाव का होता है, लेकिन उसके चरित्र पर दाग भी हो सकते हैं। वह भौतिक सुख-सुविधाओं का आदी हो जाता है और अपने जीवन के अंतिम चरण में आर्थिक समस्याओं का सामना कर सकता है। यदि धनेश की प्रवृत्ति शुभ है, तो जातक को अपनी बहनों से लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा, वह ललित कलाओं में रुचि रखता है और संगीत तथा नृत्य की ओर आकर्षित होता है। हालांकि, वह अंधविश्वास में भी विश्वास करता है और भूत-प्रेत तथा जादू-टोने के प्रति उसकी धारणा होती है। यदि धनेश की प्रवृत्ति क्रूर है, तो जातक की आय के स्रोत संदिग्ध हो सकते हैं।

धनेश चौथे भाव में

सुख भाव में यदि धनेश चौथे भाव में स्थित हो, तो जातक सत्यनिष्ठ, दयालु और दीर्घायु होता है, साथ ही उसे विरासत भी प्राप्त होती है। उसका स्वभाव अच्छा होता है और वह अच्छे संस्कारों से युक्त होता है। इसके अलावा, वह ललित कलाओं में रुचि रखता है और भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में भी सक्रिय रहता है। उसकी साहसिकता उसे जीवन में कई अवसर प्रदान करती है, जिससे वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
धन के लेन-देन के संदर्भ में वह व्यक्ति संकीर्ण और स्वार्थी होता है, जो केवल अपनी खुशियों पर ही धन व्यय करता है। वह कमीशन एजेंट, वाहन विक्रेता, जमींदार या किसान के रूप में अच्छी आय अर्जित कर सकता है। उसे मातृ पक्ष से भी लाभ प्राप्त होता है। यदि चौथा भाव दुष्प्रभावित और कमजोर हो या चतुर्थेश कमजोर और दुष्प्रभावित हो, तो जातक को धन-सम्पत्ति में हानि होती है और उसकी दीर्घायु भी प्रभावित होती है।

धनेश पांचवें भाव में

यदि धन का स्वामी पांचवें भाव में स्थित हो, तो जातक अत्यधिक संवेदनशीलता, परिवार के प्रति नकारात्मकता और अपने बच्चों पर खर्च करने में कंजूसी का अनुभव करता है। इस जातक में व्यावहारिकता और शिष्टाचार की कमी होती है, जिससे वह विलासिता की ओर आकर्षित होता है। सामान्यतः, वह कठिन कार्यों को करने में साहसी होता है और इस प्रकार की गतिविधियों में उसकी पहचान होती है।
यदि पांचवें भाव में धन का स्वामी सकारात्मक और मजबूत स्थिति में हो, तो जातक को शासन से सहायता, पुरस्कार, पहेलियों के समाधान के लिए इनाम या लॉटरी के रूप में आकस्मिक धन की प्राप्ति हो सकती है। इस स्थिति में जातक की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उसे अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होते हैं, जो उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

धनेश छठे भाव में

रोग भाव का महत्व अत्यधिक होता है, क्योंकि यह रोगों और शत्रुओं के संकेतक के रूप में कार्य करता है। यदि इस भाव में धनेश की स्थिति कमजोर है, तो जातक गुदा और कूल्हे के रोगों से ग्रसित हो सकता है। इसके अलावा, उसकी आय और व्यय का मुख्य स्रोत अक्सर उसके शत्रु होते हैं। इस स्थिति में, जातक काले धंधों के माध्यम से धन अर्जित करने और संदेहास्पद गतिविधियों में लिप्त होने की प्रवृत्ति रखता है, जिससे वह अपने मित्रों और संबंधियों को गलतफहमी में डालता है और उन्हें कष्ट में डालता है।
दूसरी ओर, यदि धनेश इस भाव में मजबूत और शुभ प्रभाव में है, तो जातक धनवान बन सकता है और विभिन्न तरीकों से धन संचय कर सकता है। वह अपने शत्रुओं को पराजित करने में सक्षम होता है और विभिन्न संपत्तियों का मालिक बनता है, जैसे कि भूमि, भवन और वाहन। हालांकि, इसके बावजूद, वह मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं होता। यदि धनेश कमजोर और दुष्प्रभावित है, तो जातक आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे धोखाधड़ी और कानूनों की अवहेलना के लिए सजा भी मिल सकती है।

धनेश सप्तम भाव में

दाम्पत्य संबंधों में धनेश की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। यदि यह सातवें भाव में स्थित हो, तो जातक चिकित्सा और सेवा के क्षेत्र में कार्यरत होता है, जो दयालु और सेवा भाव से भरा होता है। हालांकि, जातक और उसका जीवन साथी दोनों ही नैतिकता के मामले में मजबूत नहीं होते। जातक अपनी इच्छाओं की पूर्ति में अधिकांश धन खर्च करता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
यदि धनेश सातवें भाव में हो और इस भाव का स्वामी कुंडली में मजबूत स्थिति में हो, तो जातक की आमदनी का मुख्य स्रोत विदेश होता है। ऐसे जातक विदेश यात्रा करते हैं और व्यापार में लाभ प्राप्त करते हैं। उनका जीवन साथी धन संचय में अत्यधिक रुचि रखता है और स्वार्थी होता है। इसके विपरीत, यदि धनेश कमजोर या अशुभ स्थिति में हो, तो जातक का जीवन साथी संतानोत्पत्ति में असमर्थता का सामना करता है।

धनेश अष्टम भाव में

अष्टम भाव, जिसे आयुर्भाव कहा जाता है, में यदि धन भाव का स्वामी उपस्थित हो, तो जातक को दाम्पत्य सुख या तो बहुत कम मिलता है या फिर बिल्कुल नहीं मिलता। इसके अलावा, जातक के बड़े भाइयों के साथ संबंध भी सामान्यतः अच्छे नहीं होते। हालांकि, जातक को धन-सम्पदा विरासत में मिलती है, लेकिन वह उसे लंबे समय तक नहीं रख पाता। प्रसिद्ध ज्योतिषियों हरजी और यवनाचार्य ने अष्टम भाव में धनेश की स्थिति के प्रभावों पर विचार करते हुए यह बताया है कि जातक आत्मघाती प्रवृत्तियों का शिकार होता है और उसकी धन-सम्पदा तथा मान-प्रतिष्ठा का विनाश होता है।
अक्सर यह देखा गया है कि जब धनेश मजबूत होता है, तब जातक पर धन-सम्पदा की वर्षा होती है, लेकिन यह धन भी जल्दी ही नष्ट हो जाता है। इस प्रकार, जातक की कमाई वास्तव में लगभग शून्य के बराबर रह जाती है। इसके परिणामस्वरूप, जातक विरासत में मिली और संचित धन-सम्पदा को भी खो देता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो जाती है। इस प्रकार, अष्टम भाव में धनेश की स्थिति जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

धनेश नवम भाव में

धर्म और भाग्य का संबंध: जब धन भाव का स्वामी शुभ और सौम्य स्वभाव का होता है, तब जातक का जीवन सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि से परिपूर्ण होता है। वह अपने कार्य, व्यवसाय या व्यापार में दक्षता प्राप्त करता है। इसके साथ ही, वह दान देने वाला, परोपकारी और धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। यदि धन का स्वामी नौवें भाव में मजबूत स्थिति में हो, तो जातक को विरासत में धन और संपत्ति प्राप्त होती है, साथ ही उसे विभिन्न स्रोतों से आय भी होती है।

धनेश दशम भाव में

कर्म भाव का प्रभाव: जब धनेश दसवें भाव में होता है, तो जातक को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करता है। इस स्थिति में, बड़े बुजुर्ग और वरिष्ठ अधिकारी उसकी सराहना करते हैं। जातक विद्या और संपत्ति में समृद्ध होता है, और उसे शासन द्वारा मान्यता और सम्मान प्राप्त होता है। वह अपने माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरी जिम्मेदारी से निभाता है।
जातक की बहुआयामी प्रतिभा उसे विभिन्न व्यवसायों में सफलता दिलाने में सक्षम बनाती है। वह व्यापार या कृषि में संलग्न हो सकता है, साथ ही दर्शन और ज्योतिष जैसे विषयों में भी गहरी रुचि रख सकता है। इसके अतिरिक्त, वह पत्रकारिता या साहित्य के क्षेत्र में भी अपने रुचियों के अनुसार कार्य कर सकता है।

धनेश ग्यारहवें भाव में

ग्यारहवें भाव में धन के स्वामी की स्थिति के कारण जातक महाजन, बैंकर, छात्रावास या कामकाजी लोगों के लिए होस्टल जैसे व्यवसायों से लाभ प्राप्त करता है। हालांकि, वह पर्याप्त धन-संपत्ति अर्जित कर लेता है, लेकिन समाज में उसकी छवि अवांछित कार्य करने वाले व्यक्ति के रूप में स्थापित हो जाती है। इसके अलावा, उसे बचपन में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि इस भाव में धन के स्वामी का प्रभाव नकारात्मक और कमजोर हो, तो जातक का जीवन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भरा रहता है।
ऐसे जातक पक्षियों के व्यापार में भी संलग्न हो सकते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति भले ही मजबूत हो, लेकिन समाज में उनकी पहचान नकारात्मक बन जाती है। इस प्रकार, जातक को अपने स्वास्थ्य और सामाजिक छवि दोनों के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो उसके जीवन को चुनौतीपूर्ण बना देता है। इस स्थिति में, जातक को अपने व्यवसायिक और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है।

धनेश बारहवें भाव में

व्यय भाव, जिसे हानि या व्यय भाव के रूप में जाना जाता है, बारहवें भाव में धन भाव के स्वामी की स्थिति होने पर जातक सरकारी सेवा में कार्यरत होता है। इस स्थिति में जातक का बड़ा भाई या तो नहीं होता है या फिर उसे अपने भाई का स्नेह नहीं मिल पाता। जातक की प्रतिष्ठा भले ही ऊँची हो, लेकिन उसे जीवन में कई बार गंभीर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
यदि धन के स्वामी ग्रह की स्थिति पाप ग्रहों के साथ हो या दुष्प्रभावित होकर बारहवें भाव में उपस्थित हो, तो जातक को कृपणता और धन की कमी का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, यदि शुभ ग्रह इस भाव में होते हैं, तो जातक को लाभ और हानि दोनों के अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।

साथियों जन्म कुंडली में धनेश की 12 भावों में स्थिति किस प्रकार से अपने प्रभाव दे सकती है यह आपने जाना। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो और अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तो कमैंट्स करें। अगर आप लक्ष्मी नारायण से अपनी कुंडली पर परामर्श प्राप्त करना चाहते है तो व्हाट्सप्प पर संपर्क करें। धन्यवाद

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